नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से टॉस को अलविदा कह देना चाहिए, ताकि दोनों टीमों में से कोई फायदे में न रहे? टॉस का क्रिकेट से शुरू से नाता रहा है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) की क्रिकेट समिति की मुंबई में 28 और 29 मई को होने वाली बैठक में इसकी प्रासंगिकता और निष्पक्षता पर चर्चा की जाएगी। आइसीसी के एक अधिकारी ने कहा कि टेस्ट क्रिकेट से मूल रूप से जुड़े टॉस को खत्म किया जा सकता है। आइसीसी की क्रिकेट समिति इस पर चर्चा करने के लिए तैयार है कि क्या मैच से पहले सिक्का उछालने की परंपरा खत्म की जाए, जिससे कि टेस्ट चैंपियनशिप में घरेलू मैदानों से मिलने वाले फायदे को कम किया जा सके। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सिक्का उछालने यानी टॉस करने की परंपरा इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच 1877 में खेले गए पहले टेस्ट मैच से ही चली आ रही है। इससे यह तय किया जाता है कि कौन सी टीम पहले बल्लेबाजी या गेंदबाजी करेगी। सिक्का घरेलू टीम का कप्तान उछालता है और मेहमान टीम का कप्तान ‘हेड या टेल’ बोलता है, लेकिन हाल में इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठाए जाने लगे हैं। आलोचकों का कहना है कि इस परंपरा के कारण मेजबान टीमों को अनुचित लाभ मिलता है। समिति के सदस्यों को भेजे पत्र में लिखा गया है कि टेस्ट पिचों की तैयारियों में घरेलू टीमों के हस्तक्षेप के वर्तमान स्तर को लेकर गंभीर चिंता है और समिति के एक से अधिक सदस्यों का मानना है कि प्रत्येक मैच में मेहमान टीम को टॉस पर फैसला करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। हालांकि, समिति में कुछ अन्य सदस्य भी हैं, जिन्होंने अपने विचार व्यक्त नहीं दिए हैं। काउंटी चैंपियनशिप में 2016 में टॉस नहीं किया गया और यहां तक कि भारत में भी घरेलू स्तर पर इसे हटाने का प्रस्ताव आया था, लेकिन उसे नकार दिया गया था। इंग्लैंड एवं वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने दावा किया कि इस कदम के बाद मैच लंबे चले और बल्ले और गेंद के बीच अधिक प्रतिस्पर्धा देखने को मिली। आइसीसी क्रिकेट समिति में पूर्व भारतीय कप्तान और कोच अनिल कुंबले, एंड्रयू स्ट्रॉस, महेला जयवर्धने, राहुल द्रविड़, टिम मे, न्यूजीलैंड क्रिकेट के मुख्य कार्यकारी डेविड वाइट, अंपायर रिचर्ड केटलबोरोग, आइसीसी मैच रेफरी प्रमुख रंजन मदुगले, शॉन पोलाक और क्लेरी कोनोर शामिल हैं।