भोजपुरी के पावर स्टार पवन सिंह ने चुनाव मैदान में उतरने के पहले ही हथियार डाल दिए। क्यों? क्या फिल्म अभिनेता से राजनेता बने बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा से मुकाबला की नौबत से बचने के लिए! या, 2022 के उपचुनाव में तृणमूल कांग्रेस की भाजपा प्रत्याशी पर बड़ी हार का डर समझने के बाद यह फैसला लिया। या, 2022 के उपचुनाव में तृणमूल के अकेले लड़ने और इस बार वामदल और कांग्रेस समेत इंडी एलायंस के साझा उम्मीदवार के सामने खुद को अकेला पाने के डर से यह निर्णय लिया। पवन सिंह ने लिखा- “पार्टी ने मुझ पर विश्वास करके आसनसोल का उम्मीदवार घोषित किया, लेकिन किसी कारणवश मैं आसनसोल से चुनाव नहीं लड़ पाऊंगा।” मतलब, यह तो पक्का है कि उन्हें आसनसोल से ही संकट है। वह भी तब, जबकि उनका नाम आने के बाद भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री रह चुके बाबुल सुप्रियो ने तृणमूल में होने के बाद भी लिखा था- “आसनसोल को पवन सिंह मुबारक हो”।
आसनसोल में बिहारी और खासकर भोजपुरी लोगों की आबादी ठीकठाक मानी जाती है। बिहार से जुड़ाव के कारण यह इलाका खांटी बंगाली स्वभाव का नहीं है। यहां बिहारियों के खिलाफ शेष बंगाल जैसा भाव नहीं है। भोजपुरी फिल्मों का भी यहां ठीकठाक क्रेज है और हिंदी का तो पहले से है। इसी कारण शत्रुघ्न सिन्हा के सामने पवन सिंह को लाया गया था। लेकिन, एक तो शत्रुघ्न सिन्हा की पहचान बिहारी बाबू के रूप में है और फिल्मी जगत में भी पवन सिंह उनके सामने बच्चा हैं। इसके अलावा दोनों बिहारी हैं और एक बिहारी दिग्गज अभिनेता के सामने उतरना पवन सिंह को उचित नहीं लगा हो। हालांकि, पवन सिंह की उम्मीदवारी वापसी के फैसले से यह साबित हो गया कि उनकी शत्रुघ्न सिन्हा से भी बात हुई और यह भी पक्का है कि इस सीट पर तृणमूल फिर उन्हीं को उतारने वाली है।
भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह ने आसनसोल सीट से चुनाव लड़ने से इनकार किया तो कहीं न कहीं एक वजह पिछले चुनाव के आंकड़े भी होंगे। 2019 की बात होती तो कोई भी पांच साल में बदलाव का हिसाब समझता। लेकिन, अभी दो साल भी नहीं हुए यहां उप चुनाव के। अप्रैल 2022 के लोकसभा उपचुनाव में आसनसोल सीट से बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा ने बड़ी जीत हासिल की थी। वह तृणमूल के प्रत्याशी थे और भाजपा उम्मीदवार अग्निमित्रा पॉल को बड़े अंतर से हराया था। शत्रु को साढ़े छह लाख वोट मिले थे, जबकि अग्निमित्रा को साढ़े तीन लाख मत ही मिले थे। पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ बने विपक्षी गठबंधन की रही-सही एकता भी कायम रह गई तो भाजपा के लिए यह सीट आसान नहीं होगी। भाजपा प्रत्याशी को 2022 के उप चुनाव में शत्रुघ्न के मुकाबले तीन लाख वोट कम आए थे, जबकि तब वामपंथी और कांग्रेसी प्रत्याशी ने एक लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे। करीब दो साल पहले के आंकड़ों को मिलाकर विपक्षी एकता की ताकत देखें तो साढ़े सात लाख के मुकाबले भाजपा के खाते में साढ़े तीन लाख वोट हैं।