विश्व पर्यावरण दिवस पर युगधारा फाउंडेशन की ओर से वृक्षारोपण एवं पर्यावरण संरक्षण विचार संगोष्ठी का आयोजन।

विश्व पर्यावरण दिवस पर युगधारा फाउंडेशन की ओर से वृक्षारोपण एवं पर्यावरण संरक्षण विचार संगोष्ठी का आयोजन।

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर युगधारा फाउंडेशन की ओर से जिला बाराबंकी एवं लखनऊ में 50 पौधे रोपकर वृक्षारोपण किया गया एवं साथ ही दि कॉपरेटिव इंडियन कॉफ़ी हाउस , हज़रतगंज में परिवार संरक्षण विचार संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें कई प्रबुद्धजीवियों ने प्रतिभाग किया। विचार संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो विश्वम्भर शुक्ल , गोष्ठी की शुरुआत शारदे की वंदना से हुई , जिसे मुकेश मिश्र ने स्वर दिया। कुमुद श्रीवास्तव कुमुदनी, प्रियांश वात्सल्य , वंदना श्रीवास्तव, रेखा बोरा, ओम जी मिश्र अभिनव, डॉ उमाशंकर शुक्ल शितिकण्ठ , ओ पी तिवारी एवं सौम्या मिश्रा अनुश्री ने अपने अपने विचार काव्यात्मक रूप में व्यक्त किए।
काव्य विचार संगोष्ठी में जहां पर्यावरण सुधार के लिए अनेकों सुझाव मिले, वहीं काव्यात्मक अभिव्यक्ति ने अन्य कवियों और श्रोताओं को बहुत प्रभावित किया।

इसी कड़ी में प्रियांशु वात्सल्य जी यह पंक्तियां – जो भी लिख दूं राष्ट्रगान हो जाए, और चच्चा हमरे विद्यायक हैं।

अंधियारे को छोड़ चले हम, सारे बन्धन तोड़ चले हम – ओ पी तिवारी जी की पंक्तियां सुन सभी के नयन अश्रु से भर आए।

वहीं मुकेश मिश्र ने यह पंक्ति सुना राष्ट्र जागरण की बात की – क्या कमी आ गयी राष्ट्र में शेर की बिल्लियां आज आंखें दिखाने लगीं और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए कुमुद श्रीवास्तव कुमुदनी ने कहा – एक वृक्ष सौ पुत्र समाना – अर्थात हमें पेड़ों की रक्षा पुत्र समान करनी है। वहीं रेखा बोरा ने उत्तम सन्देश देते हुए कहा कि मात्र एक दिन पर्यावरण दिवस मनाने से क्या लाभ।
काव्य संवर्धन की अगली कड़ी में शिक्षिका वंदना श्रीवास्तव वान्या ने कहा –
धुंए धूल में खांसती हुई, धुंए को पीती हुई जिंदगी।
आज कर बैठती है स्वयं से एक सवाल।

वहीं सौम्या मिश्रा अनुश्री ने अत्यधिक पेड़ों की कटाई से उतपन्न होने वाले दुष्परिणामों को इंगित करते हुए काव्य रचना के रूप में धरा की व्यथा को व्यक्त करते हुए कहा –
पाप, पुण्य का सिला मिला स्वरूप में यहां।
पेड़ जो कटे धरा फकीर हो गए सभी।।

वहीं ओम अभिनव ने अपनी इन पंक्तियो के माध्यम से प्रकृति के प्रति जागरण की बात कही –
यह है भारत भूमि जहां है , पतित पावनी पावन गंगा।
देख प्रकृति की सुंदरता को रोगी मन हो जाता चंगा।।

इसके उपरांत कार्यक्रम मुख्य अतिथि डॉ उमाशंकर शुक्ल शितिकण्ठ ने विचार संगोष्ठी में उपस्थित सभी प्रबुद्ध जीवियों को सम्बोधित करते हुए पर्यावरण सुरक्षण का संदेश दिया और कहा –
रसा नीर हो रही दोहन से,
भृकुटि है निसर्ग भी ताने हुए।

अंत में कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो विश्वम्भर शुक्ल द्वारा सभी प्रबुद्ध जीवी साहित्यकारों के वक्तव्य की समीक्षा की गई, और कई लोगों के वक्तव्य से प्रभावित हो उन्होंने कहा कि –
कलुष हटा दें, उज्ज्वल कर दें भोर ,दोपहर,शाम,
निखरे जीवन ,हँसें रश्मियाँ ,खिले स्वर्ण सा घाम,
धुआँ -धुआँ हो गई ज़िंदगी,व्योम तिमिर से क्लांत,
आओ एक सूर्य लिख डालें परिवर्तन के नाम !
विचार संगोष्ठी में वृक्षों का हमारे जीवन में कितना महात्म्य है इस पर चर्चा हुई, साथ ही नहरों नदियों के किनारे अधिक से अधिक वृक्षारोपण करने का संकल्प लिया गया । अंत में युगधारा फाउंडेशन की सचिव सौम्या मिश्रा अनुश्री द्वारा सभी का धन्यवाद ज्ञापित विचार संगोष्ठी का समापन किया गया

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