6 अप्रैल 1980, जनता पार्टी से अलग होकर जनसंघ ने BJP बनाई। चार साल बाद यानी, 1984 में लोकसभा चुनाव हुए। 229 सीटों पर लड़ने वाली BJP को अपने पहले चुनाव में सिर्फ 2 सीटें मिलीं। एक गुजरात के मेहसाणा में और दूसरी आंध्र प्रदेश के हनमकोंडा में।
BJP के जंगा रेड्डी ने हनमकोंडा में कांग्रेस के कद्दावर नेता नरसिम्हा राव को हराया था। BJP को यहां 51% वोट मिले थे।
ये चुनाव इंदिरा गांधी की हत्या के करीब एक महीने बाद हुए थे। देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी। अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज नेता भी चुनाव हार गए।
ऐसे में हिंदी पट्टी की पार्टी माने जानी वाली BJP का दक्षिण भारत से खाता खुलना बड़ी बात थी, लेकिन उसके बाद इस सीट पर BJP कभी नहीं जीत सकी।
दक्षिण भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और केरल को मिलाकर कुल 129 लोकसभा सीटें हैं। फिलहाल BJP के पास यहां कुल 29 यानी 22% सीटें हैं।
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में BJP का एक भी सांसद नहीं है। कर्नाटक को छोड़ दें, तो सिर्फ 3% सीटें ही दक्षिण में BJP के पास हैं। दूसरी तरफ हिंदीभाषी राज्यों में BJP के पास 85% लोकसभा सीटें हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बार दक्षिण भारत में कामयाबी के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। 19 मार्च को PM ने तमिलनाडु के सलेम जिले के गजलाइकनपट्टी इलाके में रैली की थी। एक हफ्ते बाद भास्कर उस ग्राउंड पर पहुंचा, जहां प्रधानमंत्री की सभा हुई थी। ग्राउंड में हेलिपैड के निशान और BJP के कुछ फटे हुए पोस्टर बिखरे मिले।
यहां हमारी मुलाकात 55 साल के सक्तिवेलू से हुई, जो कंस्ट्रक्शन का काम करते हैं। हमने सक्तिवेलू से पूछा- कुछ दिन पहले यहां मोदी की रैली हुई थी। आप उसमें शामिल हुए थे?
सक्तिवेलू जवाब देते हैं- ‘वे बाहरी लोग हैं, मैं उनकी रैली में क्यों जाऊंगा.. BJP के पास राम मंदिर, हिंदू-मुस्लिम और गौ हत्या के अलावा कोई मुद्दा ही नहीं। PM को लगता है कि वो यहां हिंदुत्व पर भाषण देंगे, तो हिंदीभाषी राज्यों की तरह हम भावनाओं में बह जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं होगा।’
आपके लिए राम मंदिर मुद्दा नहीं है?
सक्तिवेलू जवाब देते हैं- ‘राम हमारे दिल में हैं, मंदिर बनने की खुशी है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम महंगाई और विकास के मुद्दे को भूल जाएंगे।’
वे अपनी जेब से बीड़ी और माचिस निकालते हुए कहते हैं, ‘ये बीड़ी पहले 10 रुपए में मिलती थी, आज 25 रुपए लगता है। माचिस 50 पैसे में खरीदता था, आज 2 रुपए में मिलती है। जो गैस सिलेंडर 500 रुपए में मिलता था, वो आज 1100 रुपए में मिल रहा, लेकिन प्रधानमंत्री इस पर कभी बोलते ही नहीं।’
15 साल से ऑटो चला रहे साहुल हामिद, PM का नाम सुनते ही कहते हैं- ‘मुझे तो डर है कि यहां BJP आ गई, तो हम अपनी बोली, संस्कृति… सब कुछ खो देंगे।’
तमिलनाडु में BJP ने पूर्व IPS अन्नामलाई कुप्पुसामी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। अन्नामलाई युवाओं के बीच पॉपुलर हैं, उनकी साफ-सुथरी छवि है। वे 80% हिंदू आबादी वाले कोयंबटूर से चुनाव लड़ रहे हैं।
इस बार BJP, अन्नामलाई के जरिए तमिलनाडु में सेंधमारी करना चाहती है। हालांकि, पॉलिटिकल एनालिस्ट और दक्षिण की राजनीति को लंबे समय से कवर कर रहे डॉ. सुमंत रमण को लगता है कि BJP तमिलनाडु में इस बार भी कुछ खास नहीं कर पाएगी।
वे बताते हैं- ‘BJP ने AIADMK से गठबंधन तोड़ लिया है। अन्नामलाई लगातार जयललिता के खिलाफ बयान दे रहे हैं। इससे लोगों में नाराजगी है। दूसरी तरफ अन्नामलाई के प्रेसिडेंट बनने से पार्टी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता खुश नहीं हैं। BJP को इसका नुकसान भी हो सकता है।’
केरल और आंध्र प्रदेश भी कमोबेश तमिलनाडु की तरह ही BJP के लिए चुनौती हैं।
केरल के कोझिकोड से मलप्पुरम की तरफ बढ़ने पर साफ-सुथरी सड़कें, दोनों तरफ किसी फार्म हाउस की तरह बने घर और नारियल के पेड़ दिखते हैं।
मलप्पुरम में 70% से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। रास्ते में हर एक-दो किलोमीटर पर मस्जिद दिखाई देती है। सड़कें यहां के दो बड़े एलायंस LDF और UDF के झंड़ों से पटी हैं, लेकिन BJP का झंडा एक-दो जगह ही दिखा।
किराने की दुकान चलाने वाले अब्दुल रहमान कहते हैं- ‘मैं कभी उत्तर भारत नहीं गया, लेकिन टीवी पर देखता हूं कि वहां हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बनाया जाता है। मुस्लिम इलाकों को अलग नजर से देखा जाता है, लेकिन यहां ऐसा नहीं है। यहां धर्म के नाम पर दंगे नहीं होते। BJP का कोई नेता यहां आकर हिंदू-मुस्लिम करेगा, तो उसे कामयाबी नहीं मिलेगी।’
मलप्पुरम जिले के रहने वाले सिद्दीकी कप्पन बताते हैं- ‘यहां के लोग पढ़े-लिखे हैं। हर रोज अखबार पढ़ते हैं। कहां क्या होता है, उसके बारे में जानते हैं। यहां के लोगों को जाति-धर्म के नाम पर भड़काया नहीं जा सकता। BJP जिन मुद्दों पर हिंदी पट्टी में जीतती है, वो मुद्दे यहां नहीं चलेंगे।’
BJP के बनने के बाद अब तक 10 लोकसभा चुनाव हुए। इन 10 चुनावों में BJP केरल और पुडुचेरी में कभी खाता नहीं खोल पाई। तमिलनाडु में 7 बार तो आंध्र प्रदेश में 5 बार, BJP को बिना किसी सीट के संतोष करना पड़ा।
1. धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण मुश्किल, यहां मुस्लिम आक्रांता के रूप में नहीं आए
पॉलिटिकल एनालिस्ट सुमंत सी रमण बताते हैं- ‘केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में BJP का हिंदुत्व कार्ड लोगों को उस तरह अट्रैक्ट नहीं कर पाता, जैसा हिंदी पट्टी के राज्यों में होता है। यहां के लोगों को धर्म के आधार पर बांटना मुश्किल है, क्योंकि यहां इस्लाम आक्रांता के रूप में नहीं आया। यहां हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच वो मतभेद नहीं हैं, जैसे नॉर्थ इंडिया में हैं। इसलिए यहां राम मंदिर मुद्दा नहीं है।’
2. गरीब राज्यों में BJP का प्रदर्शन बेहतर, दक्षिण में गरीबी कम
2019 के नीति आयोग के गरीबी दर के आंकड़े और लोकसभा चुनाव के नतीजों का एनालिसिस करने पर पता चला कि जहां गरीबी ज्यादा है, वहां BJP मजबूत स्थिति में है। जबकि जहां गरीबी दर कम है, खासकर दक्षिण के राज्यों में, वहां BJP कमजोर है।
दिल्ली और हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य अपवाद हैं। यहां गरीबी दर कम होने के बाद भी BJP का स्ट्राइक रेट 100% है। इसी तरह मेघालय और नागालैंड जैसे छोटे राज्यों में गरीबी दर ज्यादा होने के बाद भी BJP की स्थिति अच्छी नहीं है।
अब गरीबी दर भी समझ लेते हैं…दरअसल भारत के शहरों में जिनकी मंथली इनकम 1286 रुपए और गांवों में 1059 रुपए से कम है, वे गरीबी रेखा से नीचे यानी BPL माने जाते हैं। गरीबी दर यानी हर 100 में से कितने लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। जैसे बिहार में गरीबी दर करीब 33% है। इसका मतलब है कि बिहार में हर 100 में से 33 लोग गरीब हैं।
3. भाषा और कल्चर की वजह से BJP पर बाहरी पार्टी का तमगा
बेंगलुरु के गीतम यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर अरुण कुमार एक मीडिया इंटरव्यू में बताते हैं- ‘BJP और RSS के बड़े नेता हिंदी का फेवर करते रहे हैं। उनके दबाव में स्थानीय BJP नेता भी लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं कि हिंदी के इस्तेमाल से तमिल पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। इससे यहां के लोगों को लगता है कि BJP बाहरी पार्टी है।’
वहीं, अभय दुबे कहते हैं- ‘PM मोदी या अमित शाह दक्षिण भारत में आते हैं, तो हिंदी में भाषण देते हैं। BJP के पास एक भी बड़ा नेता नहीं है, जो यहां के लोगों से उनकी भाषा में बात करे, उनके मुद्दे उनकी बोली में उठाए। BJP के बड़े नेताओं के मैसेज जनता के बीच मजबूती से नहीं पहुंच पाते।’
4. दक्षिण में BJP के पास कोई बड़ा लीडर नहीं, पार्टियां तोड़ना मुश्किल
अभय दुबे बताते हैं- ‘नॉर्थ ईस्ट में BJP ने दूसरी पार्टियों के स्थानीय नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कराके सरकार बनाई है। चाहे असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा हों या मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह, दोनों BJP या RSS के कैडर से नहीं हैं।
BJP के साथ दिक्कत है कि ऐसी कामायाबी उसे साउथ में नहीं मिल रही। यहां वो दूसरे दलों के बड़े नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करा पा रही है। एकमात्र कर्नाटक में BJP मजबूत है, तो इसके पीछे येदुरप्पा जैसे बड़े नेता हैं।
सुमंत सी रमण कहते हैं- ‘ नॉर्थ ईस्ट में पार्टियां छोटी हैं। किसी के 5 विधायक, तो किसी के 10 विधायक BJP में शामिल हो गए, लेकिन दक्षिण में दूसरी पार्टियों को तोड़ना मुश्किल है, क्योंकि ये राज्य बड़े हैं।’
2021 में BJP ने केरल में मेट्रोमैन ई श्रीधरन को CM फेस बनाया था, लेकिन वो प्रयोग सफल नहीं हुआ। श्रीधरन अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। अब BJP ने तमिलनाडु में युवा IPS अन्नामलाई को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इसका BJP को कितना फायदा मिलेगा, यो तो नतीजों के बाद ही पता चलेगा।
6. द्रविड़ वर्सेज आर्यन्स की लड़ाई, सनातन पर जाति का मुद्दा हावी
दक्षिण भारत, खासकरके तमिलनाडु में द्रविड़ वर्सेज आर्यन्स के बीच सालों से संघर्ष रहा है। द्रविड़ यानी यहां के लोग खुद को मूल निवासी मानते हैं और आर्यन्स यानी उतर भारत के लोगों को बाहरी। द्रविड़ों का कहना है कि आर्यों ने आक्रमण करके उन्हें विंध्य के पार पहुंचा दिया।
आर्यन्स, वैदिक पूजा पद्धति को फॉलो करते थे और खुद को श्रेष्ठ बताते थे। NCERT की किताब ‘Our India’ के मुताबिक आर्यों ने 1500 ईसा पूर्व में वेदों की रचना की और समाज को चार वर्णों में बांट दिया। जिसका द्रविड़ों ने विरोध किया।
1940 के दशक में ब्राह्मणवादी सोच के खिलाफ द्रविड़ आंदोलन की शुरुआत हुई। तमिलनाडु के समाज सुधारक ईवीके रामास्वामी ‘पेरियार’ की इसमें अहम भूमिका रही थी। उन्होंने मनुस्मृति को जला दिया था।
प्रोफेसर अरुण कुमार बताते हैं, ‘1950 के दशक में DMK ने आर्यन-द्रविड़ियन और तमिल आइडेंटिटी का मुद्दा उठाया। इन्हीं मुद्दों के बल पर उसने 1967 में कांग्रेस को हरा भी दिया। उसके बाद तमिलनाडु का राजनीतिक विमर्श बदल गया। BJP ना तो द्रविड़ियन पहचान के साथ खड़ी हो पाई, न ही तमिल आइडेंटिटी के साथ।’
वहीं, सुमंत सी रमण का कहना है कि तमिलनाडु के लोग BJP को ब्राह्मणवादी पार्टी मानते हैं। इसी वजह से BJP के सनातन का मुद्दा यहां काम नहीं आता। यहां कास्ट का मुद्दा ज्यादा हावी है।
दक्षिणी राज्यों में BJP के पास 3% सीटें, लेकिन कर्नाटक में 90% सीटें, ऐसा क्यों…?
इस सवाल का जवाब ढूंढने हम कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु पहुंचे। सड़कों और घरों के ऊपर भगवा झंडे लगे थे। कई घरों के ऊपर भगवान राम की फोटो वाले झंडे भी दिखे। हमें बताया गया कि अयोध्या के राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के वक्त पूरे शहर में भगवा झंडे लगाए गए थे।
कर्नाटक में जमीनी स्तर पर RSS, बाकी के दक्षिणी राज्यों के मुकाबले ज्यादा मजबूत नजर आता है। इसकी बड़ी वजह है कर्नाटक का महाराष्ट्र से सटा हुआ होना, जहां BJP-RSS का संगठन काफी मजबूत है।
अभय दुबे बताते हैं- ‘1990 में जब देशभर में BJP ने राम रथयात्रा निकाली, तो वह कर्नाटक भी गई। उससे BJP का हिंदुत्व कार्ड कर्नाटक में मजबूत हुआ, लेकिन बाकी दक्षिणी राज्यों में BJP ने ना तो रथयात्रा निकाली ना कोई मंदिर आंदोलन किया।’
वहीं, सीनियर जर्नलिस्ट कमल मंगलश्री कहते हैं- ‘BJP की कामयाबी के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि कर्नाटक में शहरी लोग हिंदी समझते हैं। PM के भाषणों को समझने के लिए उन्हें किसी ट्रांसलेटर की जरूरत नहीं पड़ती।’
कर्नाटक में BJP की कामयाबी के पीछे यहां की धार्मिक कम्युनिटी लिंगायत की भी बड़ी भूमिका रही है। ये कम्युनिटी OBC की मजबूत जातियों में आती है। यहां लिंगायत की आबादी 17% है।येदियुरप्पा लिंगायत कम्युनिटी से ही आते हैं। BJP को येदियुरप्पा के चेहरे का फायदा चुनावों में होता है।