जिले में मोदी-योगी का नहीं चला जादू, दौड़ी साइकिल

-स्थानीय मुद्दे, बेरोजगारी, मंहगाई, भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री के आडे़ आए
फतेहपुर। लोकसभा चुनाव का पांचवा मतदान पर्व फतेहपुर के भाजपाईयों पर मुस्कान नही बिखेर पाया। रामजन्मभूमि का मुद्दा भी खास असर नहीं छोड़ पाया। मोदी योगी का करिश्मा भी नही असर छोड़ पाया। महगाई बेरोजगारी भृष्टाचार जैसे मुद्दे शायद भाजपा पर भारी पड गए। हमागहमी जद्दोजहद के बीच अंततः लोकसभा का मतदान यहां पूरा हो गया। भीषण गर्मी के बीच 56.90 फ़ीसदी हुए मतदान को लेकर राजनीतिक दल अपने-अपने तरीके से मायने निकाल रहे हैं लेकिन जिस तरह से मतों के धु्रवीकरण के अलावा मतदाताओं ने अपने नए-नए ठिकाने ढूंढ निकाले वह जरा चैंकाने वाले हैं। ग्राउंड जीरो की आई रिपोर्ट कुछ ऐसी है जो भाजपाइयों के चेहरे पर सिकन देने के लिए काफी है। यहां चुनाव भाजपा प्रत्याशी एवं गठबंधन प्रत्याशी के बीच सीधे-सीधे तौर पर रहा। बसपा तो अपने मतों को बचाकर रखने की जुगत में ही लगी रही। सपा प्रत्याशी की घेरे बंदी को लेकर भाजपा के बड़े नेताओं का डेरा रहा और योगी-मोदी के जरिए भी कार्यकर्ताओं में जोश और जुनून पैदा करने की कोशिश रही लेकिन जिसकी उम्मीद थी वह करिश्मा और जादू मोदी भी यहां नहीं दिखा पाए।गठबंधन विकास एवं मुद्दों के साथ भ्रष्टाचार,बेरोजगारी,महंगाई रोजी-रोजगार को लेकर हमलावर रही और भाजपा नेताओं को निशाने पर रखा जबकि भाजपा कभी पाकिस्तान,कभी मुसलमान,कभी हिंदू,कभी सनातन को खतरा,कभी मंदिर,कभी मंगलसूत्र,कभी भैंस की बातें कर चुनावी फिजा को बनाने की कोशिश में लगी रही।लेकिन नेताओं की जनसभाएं वो जोश और जुनून कार्यकर्ताओं में पैदा नहीं कर पाईं जो 2014, 2019 के लोकसभा चुनाव में धूम मचाने वालीं थीं। पांचवें चरण में 49 फतेहपुर लोकसभा के लिए भीषण गर्मी के बीच मतदान शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया।राजनीतिक दल व नेता मतदाताओं के बीच हसीन सपने दिखा वोट की अपील करते रहे लेकिन मतदान का दिन जब आया तो मतदाताओं ने किया वही जो उन्होंने ठान कर रखा था। मुकाबला यहां सीधे-सीधे भाजपा व गठबंधन के प्रत्याशी के बीच आमने-सामने आकर खड़ा हो गया। जो खबर आ रही है उसमें 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खेवन हार रहे क्षत्रिय, ब्राह्मण, कुर्मी, लोधी, पाल मौर्या, वैश्य, पासी, खटीक सहित अन्य दलित मतदाताओं ने मतदान वाले दिन खूब उछल कूद मचाई। भाजपा के एक बड़े वोट बैंक ने गठबंधन का प्रत्याशी बिरादरी के होने के चलते पहले ही किनारा कर लिया था। ’समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के साथ बिरादरी के लोगों ने न केवल भरोसा जताया बल्कि हर तरह से चुनाव लड़वाया। दलित के अलावा लोधी, मौर्य, क्षत्रिय सहित ब्राह्मण मतदाता भी कुछ हद तक सेंधमारी कर अपना मन बदलता नजर आया। वोटों की कांट-छांट, विभाजन, धु्रवीकरण तथा पाला बदलने की खबरें अब मशीनों में पड़े वोटों तक सीमित नहीं रह गईं बल्कि ये आम हो गईं हैं। ’फिजाओं में मतों के ध्रुवीकरण की उड़ी यही हवाएं भाजपाइयों के टेंपरेचर को बढ़ाने का काम कर रही हैं। इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी के बड़े व कद्दावर नेताओं ने जनसभाओं,कार्यक्रमों में मंच पर बैठकर फोटो खिंचवाने का काम तो किया लेकिन बूथों तक मतदाता पूरी शिद्दत और निष्ठा के साथ भाजपा के लिए मतदान करने को जांए उसकी जहमत नहीं उठाई। बहुजन समाज पार्टी तो अपने मतों को सहेज कर रखने तक में सीमित हो गई और हकीकत तो यह है कि विकास एवं मुद्दे के साथ बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आरक्षण एवं नौकरी की बात लेकर आए गठबंधन ने दलित मतों में भी खूब सेंधमारी कर ली। ये खबरें जहां भारतीय जनता पार्टी को बेचैन कर रही हैं वहीं सपा को साइकिल से ही दिल्ली की राह आसानी से पा लेने की उम्मीद जगा रहीं हैं। परिणाम कुछ भी हो लेकिन जिस तरह से मतों में खूब खींचतान हुई है।वह भाजपा के लिए बड़े नुकसान के संकेत हैं और समाजवादी पार्टी ने मतों के विभाजन तथा मुस्लिम,यादव एवं कुर्मी मतदाताओं की एकजुटता के जरिए संसद की कुर्सी कब्जा करने की मंशा पाल ली है।अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान ष्श्री रामष् की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद तो भाजपा के सितारे सातवें आसमान पर थे। उन्हें यह यकीन था कि ष्रामष् पूरे देश में उनकी नैया के खेवन हार बन जाएंगे लेकिन पहले चरण से ही चुनावी फिजा ने जो करवट बदली वह पांचवें चरण तक आते-आते और तेज हो गई।जिन आशाओं एवं मंसूबों के साथ भाजपा चुनाव मैदान में उतरी थी उसमें अब तक उन्हें निराशा हांथ लगी है। पाकिस्तान, मुसलमान, सनातन, हिंदूमंगलसूत्र, संपत्ति बंटवारा, अकबर को भैंस दे देने जैसे मुद्दे व बतोलेबाजी को आम जनता के जेहन तक उतारने में भाजपा नाकाम रही और गठबंधन इन्हीं बातों को अपनी चुनावी सभा में उठाकर सीधे-सीधे जनता से जुड़ी समस्याओं, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, नौकरी एवं रोजी-रोटी की बात करती रही। आरक्षण के मुद्दे ने भी दलित मतदाताओं के एक बड़े खेमें को उठाकर गठबंधन के पाले में जोड़ने का काम कर दिया। अब देखना यह है कि मतों के हुए कतरब्योंत,ध्रुवीकरण एवं मतदाताओं की पाला बदली क्या गुल खिलाती है? परिणाम 4 जून को सामने आएगा लेकिन जो फिजा में हवा है उसने भाजपाइयों की गर्मी को शांत करने की बजाय बढ़ा कर रख दिया है।

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