प्रेमनगर, फतेहपुर। सुल्तानपुर घोष कस्बे में चली आ रही ऐतिहासिक रामलीला में जो लगभग चार वर्षों से भी अधिक पुरानी रामलीला के छठवें दिन शनिवार को भगवान राम की वनवास लीला का मंचन किया गया। भगवान की आरती के बाद लीला की शुरुआत हुई है, सीता स्वयंवर के बाद सभी जनकपुर से अयोध्या वापस पहुंचे। गुरु विश्वामित्र, राजा दशरथ, भगवान राम, सीता, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तथा पूरी बारात का भव्य स्वागत अयोध्या नगरी में किया जाता है। इधर महाराज दशरथ को यह आभास होता है कि उनका चैथापन आ गया है और तभी महाराज दशरथ विचार करते हैं और कहते हैं कि इस राजगद्दी पर राम के अलावा और कोई बैठने के योग्य नहीं है और वह मंत्री को बुलाकर आदेश देते हैं कि पूरे नगर में घोषणा कर दी जाए कि जल्द ही राम को अयोध्या का राजा बनाया जाएगा, घोषणा होते ही पूरे अयोध्या नगरी में चारों ओर उत्सव ही उत्सव मनाया जाता है। सभी लोग राम के राज्याभिषेक की तैयारी शुरू कर देते हैं, चारों ओर मंगल गीत गाए जाते हैं। इधर राम की राज्याभिषेक की बात जब कैकेई की सबसे प्रिय दासी मंथरा को पता चलती है तो वह व्याकुल हो जाती है और वह महारानी कैकई से कहती है यही सही समय है राजा दशरथ से अपने दोनों वचन मांग लो और पहले वचन में राम की जगह भरत का राज्याभिषेक तथा दूसरे वचन में राम को 14 वर्षों का वनवास। पहले तो रानी कैकेई थोड़ा संकोच करती हैं फिर वह बात मान लेती है और जाकर कोपभवन में लेट जाती हैं यह बात जब महाराज को पता चलती है तो वह मिलने जाते हैं और राम की सौगंध खाने के बाद कैकई उनसे दोनों वचन मांगती है वचन सुनते ही महाराज दशरथ मूर्छित होकर गिर जाते हैं और अंत में दोनों वचन दे देते हैं। पिता की आज्ञा पाकर राम वन के लिए तैयार हो जाते हैं उनके साथ सीता और लक्ष्मण भी वन जाने के लिए तैयार होते हैं। यह बात जब अयोध्या वालों को पता चलती है तो पूरी अयोध्या में शोक की लहर दौड़ जाती है सभी सभी भगवान राम के साथ-साथ चल देते हैं, गंगा किनारे पहुंचने के बाद भगवान राम विश्राम करते हैं इधर राजा दशरथ मंत्री सुमंत को राम को वापस लाने के लिए भेजते हैं सुमंत राम के पास पहुंचते हैं और आग्रह करते हैं कि वन में आपने अपने चरण रख दिए हैं अब वापस राजमहल चलिए लेकिन राम कहते हैं कि पिता की आज्ञा है और वह 14 वर्षों के बाद ही राजमहल वापस आएंगे। 14 वर्षों तक किसी भी नगर में अपने कदम नहीं रखेंगे क्योंकि रघुकुल की रीति सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई। सुमंत अपनी सैनिकों के साथ वापस राजा दशरथ के पास राजमहल आते हैं और पूरी बात बताते हैं, यह सुनकर राजा दशरथ बार-बार पुत्र राम राम कहकर मूर्छित हो जाते हैं यह देखकर दर्शक भी अधिक भावुक हो जाते हैं और राम के जयकारे के साथ लीला समाप्त होती है। राम जी के अभिनय में ऋतुराज तिवारी, लक्ष्मण के रुप में रौनक शुक्ला, दशरथ जी के अभियान पर गुरू प्रसाद चैरसिया, केकई के अभियान पर शिव पूजन प्रजापति आदि कलाकारों ने मंचन किया। कमेटी अध्यक्ष ऋषि गुप्ता, उपाध्यक्ष दशरथ सिंह, कोषाध्यक्ष राजन तिवारी ने बताया कि इस प्राचीन रामलीला में गांव के ही कलाकार अभिनय करते हैं।