वाराणसी, जीवन की उत्पत्ति और विकास के क्रम में दक्षिण अफ्रीका से निकल कर हजारों साल पहले मानव भारत होते हुए चीन और फिर ऑस्ट्रेलिया पहुंचा। भारत, म्यांमार में कुछ हद तक शोध कार्य जरूर हुए, लेकिन बीच का बांग्लादेश का महत्वपूर्ण हिस्सा पूरी तरह अछूता रहा। अब भारत व एस्टोनिया के वैज्ञानिक इस अछूते हिस्से के लोगों के आनुवंशिक डाटा बेस तैयार कर रहे हैं, जिसमें बांग्लादेशी विशेषज्ञों की भी मदद ली जा रही है। इसी कड़ी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, ढाका विश्वविद्यालय व एस्टोनियन जीनोम सेंटर की टीम ने 13 दिसंबर को सिलहट और 14 दिसंबर को ढाका में सैकड़ों नमूने एकत्र किए।
दल पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि यह भारत व म्यांमार के बीच की आबादी है या बहुत पुरानी जनजाति है, जो उसी समय से इस क्षेत्र में रह रही है जब मानव इधर आया। वैज्ञानिकों के मतानुसार दक्षिण अफ्रीका, पश्चिम एशिया से होता हुआ मानव पलायन भारत में हुआ। बाद में समुद्री किनारा पकड़ते हुए मानव बांग्लादेश, म्यांमार, चीन और ऑस्ट्रेलिया तक पहुंचा।
इस तरह हुई शुरुआत
बीएचयू के डॉ. ज्ञानेश्वर चौबे, ढाका विवि की डॉ. गाजी नूरुन नहर सुल्ताना व एस्टोनिया के डॉ. माइट मैट्सपालू ने नेशनल जियोग्राफी को प्रस्ताव भेजा। एस्टोनिया इस तरह के अध्ययन के लिए आदर्श है, इसलिए नेशनल जियोग्राफी ने प्रस्ताव स्वीकारने में जरा भी देरी नहीं की और 25 लाख का ग्रांट स्वीकृत किया।
65 जिले और 5000 नमूने
शोध के क्रम में बांग्लादेश के नौ राज्यों के 65 जिलों को कवर करते हुए कुल 5000 डीएनए नमूने जुटाने हैं। अब तक करीब 1000 नमूने लिए जा चुके हैं, जिनमें जनजातियों के साथ ही स्थानीय निवासी भी शामिल हैं।
मिश्रित है जबड़ों की बनावट
दंत चिकित्सक डॉ. पवन दुबे के मुताबिक, ऑब्जर्वेशन में स्थानीय जन जातियों के जबड़ों की बनावट में विविधता पाई। मानव विकास के क्रम में जबड़ों की संरचना भौगोलिक परिस्थितियों के हिसाब से विकसित हुई। भारत में ऊपरी जबड़ा आगे की ओर या अधिक आगे की ओर जबकि चीन, तिब्बत एवं पूर्वी एशिया में निचला जबड़ा बाहर की ओर होता है। सिलहट के बेनी बाजार क्षेत्र में इनका मिश्रण पाया गया है।
प्रकृति ने मलेरिया से की रक्षा
मलेरिया से बचाने के लिए प्रकृति ने इनके शरीर में बदलाव किए। हीमोग्लोबिन औसत से कम होना इनमें से एक है। वैज्ञानिक इस बात से हैरान थे कि हीमोग्लोबिन कम होने के बावजूद ये लोग सामान्य रूप से काम कर रहे हैं।
बीमारियों से बचाएगी जीनोमिक कुंडली
डीएनए या जीनोमिक स्ट्रक्चर की जानकारी होने पर डायबिटीज, कैंसर सहित हृदय संबंधी बीमारियां समय से पहले डायग्नोस की जा सकती हैं। यानी कुडली की तरह जीनोमिक कुंडली एक बच्चे में बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारियों की सटीक जानकारी देता है। समय से पूर्व कुछ सावधानियां बरतने पर कई तरह के रोगों से बचा भी जा सकता है। डॉ. ज्ञानेश्वर के मुताबिक, किसी बीमारी में जीनोमिक स्ट्रक्चर के आधार पर यदि व्यक्ति को दवा दी जाए तो वह सबसे कारगर साबित होगा। आने वाला समय पर्सनलाइज मेडिसिन का है।