लखनऊ, गणतंत्र दिवस पर इस बार राजपथ पर यूं तो देश की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली काशी की समृद्ध संस्कृति का वैभव दिखेगा, लेकिन इसमें ‘या वारिस’ की सदाओं से गूंजने वाली देवां शरीफ दरगाह के भी दीदार हो सकेंगे। नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस के मौके पर निकलने वाली परेड में उत्तर प्रदेश की झांकी में काशी में गंगा की निर्मल धार में यहां की सांस्कृतिक विरासत के अविरल प्रवाह की झलक तो दिखेगी ही, सूबे के सूफियाना मिजाज का अहसास भी होगा।
देश की राजधानी नई दिल्ली में 26 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने वाली सूबे की झांकी की थीम ‘उप्र का सांस्कृतिक एवं धार्मिक पर्यटन’ है। झांकी के केंद्र में भारत की सनातन संस्कृति को प्रतिबिंबित करने वाली काशी होगी जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी है। सहायक निदेशक सूचना राम मनोहर त्रिपाठी के अनुसार झांकी के अगले हिस्से में बने प्लेटफॉर्म पर भारतीय शास्त्रीय संगीत से जुड़े वाद्य यंत्रों को प्रदर्शित किया जाएगा।
यह प्लेटफार्म गोल-गोल घूमता रहेगा। प्लेटफार्म के नीचे काशी में बहती निर्मल गंगा और यहां की संस्कृति का नजारा देखने को मिलेगा। झांकी में काशी की संगीत परंपरा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले प्रख्यात शहनाई वादक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, तबला सम्राट पंडित समता प्रसाद मिश्र उर्फ गुदई महाराज और स्वर साम्राज्ञी विदुषी गिरिजा देवी की प्रतिकृतियां भी प्रदर्शित की जाएंगी।
कथक नृत्य करते कलाकार झांकी को सजीव बनाएंगे। नृत्य में तल्लीन कलाकारों के पीछे काशी की संत परंपरा को विशिष्ट पहचान देने वाले संत कबीर, संत रविदास और महात्मा गौतम बुद्ध की प्रतिकृतियां होंगी। वहीं झांकी के पाश्र्व में बाराबंकी की मशहूर देवां शरीफ दरगाह का नजारा देखने को मिलेगा जो सूबे की सूफियाना तासीर और यहां की गंग-जमुनी तहजीब का संकेत देगी। झांकी के बैकग्राउंड में पहले बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार को प्रदर्शित करने का इरादा था लेकिन डिफेंस कमेटी के सुझाव पर इसकी बजाय देवां शरीफ को प्रदर्शित करने का निर्णय हुआ।