करीब 22,000 करोड़ रुपये के बैंक ट्रांजेक्शंस होंगे प्रभावित, 20 करोड़ लोगों के हिस्सा लेने का दावा

नई दिल्ली, केंद्रीय कर्मचारियों की कई यूनियनें आज बुधवार को देशव्यापी हड़ताल कर रही हैं। इस कारण आज आपके कई सारे काम रुक सकते हैं। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार की श्रम सुधार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और निजीकरण जैसे नीतियों के खिलाफ इस राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। इस हड़ताल से करीब 22,000 करोड़ रुपये के बैंक ट्रांजेक्शंस, रोड ट्रांसपोर्ट, कोल प्रोडक्शन और दूसरी जरुरी सेवाएं प्रभावित होंगी।

इस हड़ताल में बैंकिंग, कोयला, ऑयल, डिफेंस, पब्लिक सेक्टर और ट्रांसपोर्ट जैसे सेक्टर्स के करीब 200 मिलियन (20 करोड़) कर्मचारियों के शामिल होने का दावा किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि ये लोग सरकार की “जनविरोधी और कर्मचारी विरोधी” नीतियों का विरोध करेंगे।

ऑल इंडिया बैंक एंप्लॉय एसोसिएशन के जनरल सेकेट्री सी. एच. वेंकटाचलम ने बताया कि हड़ताल के कारण 22,000 से 25,000 के करीब कैश और चेक ट्रांजेक्शंस प्रभावित होंगे। वेंकटाचलम ने बताया कि 5,00,000 से अधिक बैंक कर्मचारी हड़ताल में हिस्सा लेंगे, जिससे हजारों बैंक ब्रांचों में बैंकिंग सेवाएं प्रभावित होंगी। साथ ही उन्होंने बताया कि बैंकों से एटीएम में नकदी नहीं जाने से सरकारी पेमेंट्स और एटीएम सेवाएं भी प्रभावित होंगी।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के जनरल सेकेट्री अमरजीत कौर ने कहा है कि इस हड़ताल से करीब 15 राज्यों (मुख्य रूप से गैर-भाजपा शासित) के पूरी तरह प्रभावित रहने की आशंका है। कौर ने कहा कि बाकी राज्य हड़ताल से आंशिक रूप से प्रभावित रह सकते हैं।

वहीं, कोयला यूनियनों के प्रतिनिधियों का कहना है कि कोल खदानों के करीब 600,000 स्थायी और अस्थायी कर्मचारी इस हड़ताल में हिस्सा लेंगे।

हालांकि, दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों के अधिक प्रभावित होने की आशंका नहीं है, क्योंकि यह हड़ताल औद्योगिक बेल्ट में केंद्रित है।

ये हैं कर्मचारियों की मुख्य मांगें

1. 21 हजार रुपये हो न्यूनतम वेतन।

2. निजीकरण, वैश्वीकरण और उदारीकरण को रोका जाए।

3. जो श्रम कानून मजदूर विरोधी हैं, उन्हें हटाया जाए।

4. पुरानी पेंशन बहाल हो।

5. उत्तर प्रदेश में बिजली कंपनियों का एकीकरण किया जाए।

6. आउटसोर्सिंग, संविदा और ठेकेदारी प्रथा पर रोक लगायी जाए।

7. बैंक, इंश्योरेंस और रेलवे क्षेत्र में विदेशी पूंजी निवेश पर रोक लगे।

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