वॉशिंगटन, शोधकर्ताओं ने प्रोस्टेट कैंसर की पहचान और ग्रेडिंग के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) आधारित एक नई विधि विकसित की है। इस एआइ सिस्टम से इस बीमारी की सटीक पहचान और उपचार के बारे में बेहतर निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, प्रोस्टेट कैंसर की पहचान और ग्रेडिंग में एआइ सिस्टम को दुनिया के अग्रणी यूरो-पैथोलॉजिस्ट जितना ही बेहतर पाया गया है। यह हालांकि प्रारंभिक नतीजा है। इस पर अभी और शोध की जरूरत है। स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के एसोसिएट प्रोफेसर मार्टिन एक्लुंद ने कहा, ‘हमारे अध्ययन के नतीजों से जाहिर होता है कि प्रोस्टेट कैंसर की पहचान और इसकी ग्रेडिंग करने के लिए एआइ सिस्टम को उसी स्तर पर तैयार करना संभव है, जिस स्तर पर अग्रणी विशेषज्ञ अपने काम को अंजाम देते हैं। इससे यूरो-पैथोलॉजिस्ट के काम का बोझ कम होगा और वे दूसरे गंभीर मामलों पर अपना ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
ऑटिज्म पीडि़त हर चौथे बच्चे का नहीं हो पाता उपचार
एक नए अध्ययन में पाया गया है कि आठ साल से कम उम्र के ऑटिज्म पीडि़त हर चौथे बच्चे का उपचार नहीं हो पाता। ऑटिज्म पीडि़तों को दूसरे लोगों से बातचीत और घुलने-मिलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
अमेरिका के रटगर्स न्यूजर्सी मेडिकल स्कूल के एसोसिएट प्रोफेसर वाल्टर जाहोरोडनी ने कहा कि ऑटिज्म के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद अश्वेत लोगों में कई मामलों का उपचार नहीं हो पाता। वर्ष 2014 में शोधकर्ताओं ने आठ साल के दो लाख 66 हजार बच्चों के चिकित्सा और शिक्षा रिकार्ड का विश्लेषण किया था।
इसमें यह पता लगाने की कोशिश की गई थी कि चिकित्सा के नजरिये से कितने बच्चों में ऑटिज्म विकार की पहचान और उपचार नहीं हुआ था। इसमें पाया गया कि करीब 25 फीसद बच्चों में इस विकार की पहचान तक नहीं हुई थी। इनमें ज्यादातर अश्वेत थे