नई दिल्ली । ईरान और अमेरिका के बीच तनाव के भविष्य में कम होने की संभावना बनती दिखाई दे रही है। इसके पीछे भारत में मौजूद ईरानी राजदूत का वो बयान है जिसमें उन्होंने कहा है कि तनाव कम करने के लिए भारत द्वारा की गई कोशिशों का ईरान स्वागत करेगा। वहीं अब अमेरिका की तरफ से भी इसी तरह की बात कही गई है। इन दोनों ने ही भारत को केंद्र में रखते हुए यह बयान दिए हैं। इसका अर्थ साफतौर पर यही है कि मध्यपूर्व समेत पूरी दुनिया में जारी तनाव को कम करने में भारत अहम भूमिका निभा सकता है। यह बात इसलिए भी खास है क्योंकि कुछ समय पहले दैनिक जागरण से बात करते हुए विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ने भी यही बात कही थी। उनका कहना था कि क्योंकि भारत ईरान और अमेरिका का करीबी सहयोगी है इसलिए वह इस क्षेत्र में शांति के लिए अहम भूमिका अदा कर सकता है।
अमेरिकी सदन में ईरान के मुद्दे पर वोटिंग
यह बात और खास इसलिए भी हो जाती है क्योंकि एक दिन पहले ही अमेरिकी संसद में ईरान के खिलाफ जंग छेड़ने से राष्ट्रपति ट्रंप को रोकने के लिए वोटिंग हुई है। न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक इसमें ज्यादातर सांसदों ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ईरान को जवाब देने की मंशा पर पानी फेर दिया है। इसमें जहां प्रस्ताव के समर्थन में 224 वोट गिरे वहीं विपक्ष में करीब 194 वोट पड़े हैं। प्रस्ताव के पास होने के बाद इस मुद्दे पर ट्रंप की शक्तियां भी सीमित हो गई हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के लिए सदन में यह दूसरी हार की तरह है। इससे पहले दिसंबर में सदन मेंं उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के समर्थन में वोटिंग हुई थी।
लेनी होगी इजाजत
इसमें सांसदों ने पार्टी लाइन से हटकर भी वोट किया है। सांसदों का कहना था कि राष्ट्रपति ट्रंप इस मुद्दे पर सदन को विश्वास में लिए बिना ईरान पर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। आपको यहां पर ये भी बता दें कि ईरानी टॉप कमांडर और देश के दूसरे सबसे बड़े नेता कासिम सुलेमानी की अमेरिकी ड्रोन हमले में मौत के बाद कई अमेरिकी सांसदों ने ट्रंप के इस फैसले की कड़ी आलोचना की थी। सांसद और स्पीकर नैंसी पेलोसी भी इन सांसदों में शामिल थीं। इन सांसदों का कहना था कि राष्ट्रपति ट्रंप ने ये फैसला लेकर अमेरिका और अमेरिकियों की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है। ये सांसद इसलिए भी खफा थे क्योंकि इस फैसले से पहले राष्ट्रपति ट्रंप ने सदन को किसी भी तरह से विश्वास में नहीं लिया था।
प्रस्ताव के ऊपरी संसद में पास होना बाकी
प्रस्ताव के पास होने के बाद अब राष्ट्रपति ट्रंप को ईरान के खिलाफ युद्ध का एलान करने से पहले कांग्रेस की मंजूरी जरूरी होगी। हालांकि अभी इस प्रस्ताव का ऊपरी सदन में पास होना बाकी है। इस प्रस्ताव को सीआईए की पूर्व एनालिस्ट एक्सपर्ट और कांग्रेस की नेता एलिसा स्लॉटकिन ने पेश किया। इसके अलावा अमेरिका में ट्रंप की ईरान में हुई कार्रवाई के खिलाफ कई जगह जबरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। यूं भी अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव इसी वर्ष होने हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि ट्रंप अपनी जनता की मंशा के खिलाफ जाने की कोशिश नहीं करेंगे
नहीं चाहते सत्ता परिवर्तन
यहां पर एक बात और गौर करने वाली ये भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने बीते वर्ष कहा था कि वह ईरान में सत्ता परिवर्तन नहीं चाहते हैं। वह सिर्फ ईरान को परमाणु ताकत नहीं बनने देना चाहते हैं। दो दिन पहले जब ट्रंप ने ईरानी हमले के बाद प्रेस को संबोधित किया तब भी उन्होंने यही बात दोहराई थी। उन्होंने ये भी कहा था कि ईरान के साथ पूर्व में हुआ परमाणु समझौता बड़ी गलती थी। लिहाजा रूस, चीन समेत अन्य देशों को चाहिए कि वे ईरान को अमेरिका के साथ दूसरा समझौता करने पर मनाने के लिए काम करें। हालांकि चीन ने ट्रंप की इस अपील को सिरे से खारिज कर दिया है। वहीं अमेरिका की तरफ से ये बात भी सामने आई है कि वह ईरान से बिना किसी पूर्व शर्त के बात करने को राजी है। यह बात यूएनएससी में अमेरिकी दूत केली क्राफ्ट ने कही है। ये सभी इस बात की तरफ संकेत दे रहा है कि भविष्य में बनने वाली खाड़ी युद्ध की स्थिति को रोका जा सकता है।
ईरानी जवाब
हालांकि इन सभी के बीच ईरान द्वारा अमेरिकी ठिकानों पर किए हमले ने माहौल में कुछ तनाव बढ़ाने का काम जरूर किया है। ईरान की तरफ से ये हमले देश के सर्वोच्च नेता अली हुसैनी खामेनेई के उस बयान के बावजूद किए गए जिसमें उन्होंने कहा था कि ईरान ने कासिम की मौत का बदला ले लिया है। उन्होंने ये भी कहा था कि ईरान युद्ध नहीं चाहता है। गौरतलब है कि अमेरिका और ईरान के बीच बढ़े तनाव का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। कासिम की मौत का असर दुनियाभर के शेयर बाजारों से लेकर कच्चे तेल के भाव पर देखने को मिला था। इसके बाद हुई ईरानी कार्रवाई का भी असर पूरी दुनिया पर देखा जा रहा है।