सात साल की उम्र में काट दिए गए थे दोनों हाथ, आज अबू हमजा के जज़्बे को हर कोई करता है सलाम

इटावा, खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं, धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं, ये कैंचियां खाक हमें उडऩे से रोकेंगी, हम परों से नहीं, हौसले से उड़ा करते हैं…। मानो यह शेर महज सात साल की उम्र में नियति के हाथों अपने हाथ गंवाने वाले अबू हमजा के लिए लिखा गया हो। वह अबू, सात वर्ष की उम्र में करंट की चपेट में आ जाने के बाद जिसके दोनों हाथ कंधे से काटने पड़ गए थे। डर के उम्र में अपने को हमजा (शेर) साबित करने वाला वह बच्चा, जिसके पैर उसके हौसले की इबारत लिख रहे हैं। यह बच्चा, अब 13 वर्ष का है, दिव्यांगता पर खुद हावी है। कंधे के सहारे अकेले साइकिल चलाकर स्कूल जाता है, मोबाइल और कंप्यूटर पैरों से चलाता है। यह सब देखकर आज हर कोई उसके जज़्बे को सलाम करता है।

इसलिए गंवाने पड़े थे दोनों हाथ

कटरा शमशेर खां निवासी ट्रांसपोर्टर पिता लईकउद्दीन और मां परवीन बेगम के पुत्र सात मार्च 2007 को जन्मे अबू को कक्षा दो में गए महज सात दिन हुए थे। सात अप्रैल 2014 को घर की बालकनी से सटकर जा रही हाईटेंशन लाइन की चपेट में आ गया। दोनों बाजू बेजान होकर नासूर बनने लगे। जयपुर में इलाज के दौरान डॉक्टरों ने पहले अंगुली, फिर कलाई में चीरा लगाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ और दोनों हाथ कंधे से काटकर अलग करने पड़े।

दिल पर पत्थर रखकर मां-पिता ने बेटे की जान बचने पर खुदा का शुक्रिया कर उसे गढऩा शुरू किया। हिम्मत मिली तो वह हादसे के दो माह बाद ही नियमित रूप से स्कूल जाने लगा। हौसले यहीं से हमजा बनना शुरू हुआ और हाथ के काम पैरों से करना शुरू कर दिया। लिखावट भी इतनी साफ कि एक कार्यक्रम में एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी उसकी पीठ थपथपाए बिना नहीं रह पाए। चम्मच से खाई जा सकने वाली चीज अबू खुद खाता है।

खुद तैयार कराई अपनी साइकिल

रॉयल ऑक्सफोर्ड पब्लिक स्कूल में पढ़ रहे अबू ने स्कूल जाने के लिए वर्ष 2015 में बड़े भाई जीशान को सलाह देकर अपनी साइकिल खुद तैयार कराई। हैंडल पर लगे स्टेयरिंगनुमा व्हील को सीने से कमांड कर वह साइकिल चलाता है। तीन साल की बहन हयात भाई के साथ खूब खेलती है।

बनाया लोकोमोटिव इंजन

वर्ष 2018 के इटावा महोत्सव में हुए विज्ञान मेले में अबू ने लोकोमोटिव इंजन का मॉडल प्रदर्शित किया। हालांकि वह चला नहीं लेकिन अबू ने हार नहीं मानी। वर्ष 2019 में उसे बिजली से चलाकर दिखाया।

जज्बे को सलाम करती बस्ती

अबू हमजा की मेधा और जज्बे को पूरी बस्ती सलाम करती है। नवी मंसूरी कहते हैं, अबू हालात से लडऩे का जीवट सिखाता है। गौसिया मदरसा के संचालक कारी सरफराज आलम कहते हैं, फूल सी उम्र में अबू जिंदगी के कांटे निकालकर सभी के लिए आदर्श है।

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