पीसीएफ को एफसीआई से नहीं मिल रहे सात करोड़ रुपये

न्यूज वाणी ब्यूरो
हमीरपुर। पीसीएफ के बकाया पड़े करीब सात करोड़ रुपये भारतीय खाद्य निगम द्वारा अदा न किए जाने से क्रय एजेंसी टूटने के कगार पर है। पीसीएफ ने शासन को पत्र भेज एफसीआई से धनराशि दिलाने की मांग की है। भुगतान न होने से पीसीएफ पर कर्ज का दबाव बढ़ता जा रहा है। जबकि उसे अपने संसाधन से ही वेतन सहित अन्य खर्चे निकालने होते हैं। ऐसे में पीसीएफ की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। वहीं एफसीआइ के कान में जू तक नहीं रेंग रही है। पीसीएफ द्वारा हर साल गेहूं खरीद केंद्र संचालित किए जाते हैं। जिनकी संख्या सबसे अधिक होती है। गेहूं क्रय के दौरान पीसीएफ शासन से कर्ज लेकर किसानों का गेहूं खरीदने के साथ उनका भुगतान भी करती है। जिसका भुगतान बाद में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) लाभांश के साथ मूलधन क्रय एजेंसी को अदा करती है। लेकिन एफसीआई द्वारा छह सालों से पीसीएफ को विभिन्न मदों की करीब सात करोड़ रुपये की धनराशि अदा नहीं की गई है। जबकि केंद्र सरकार एफसीआई को गेंहूं क्रय की पूरी धनराशि अदा कर चुकी है।
बकाया धनराशि पर नजर
पीसीएफ के जिला प्रबंधक शिवपाल सिंह ने बताया कि वर्ष 2013-14 का बकाया परिवहन शुल्क 11 लाख 69 हजार रुपये, वर्ष 2014-15 की परिवहन धनराशि 14 लाख 26 हजार 866 रुपये, वर्ष 2016-17 के मंडी शुल्क के 11 लाख 90 हजार 646 रुपये व परिवहन शुल्क नौ लाख 49 हजार 219 रुपये के अलावा कमीशन के सात लाख 80 हजार 934 रुपये बकाया है। पूरक भुगतान की 31 लाख 24 हजार 945 रुपये के साथ वर्ष 2018-19 का एमएसपी का भुगतान 39 लाख रुपये व समिति कमीशन भुगतान का 92 लाख 35 हजार 582 रुपये की धनराशि बकाया है। वहीं वर्ष 2019-20 का प्रशासनिक व्यय का भुगतान एक करोड़ 47 लाख 12 हजार रुपये व मंडी शुल्क का भुगतान एक करोड़ 23 लाख 770 रुपये बकाया है। इसके अलावा करीब दो साल से दस लाख रुपये का भुगतान पीपी बोरों का नहीं प्राप्त हुआ है। मूलधन का भुगतान न होने से लगातार कर्ज बढ़ता जा रहा है। वहीं अपने संसाधनों से ही कर्मचारियों के वेतन समेत अन्य खर्चों का वहन करना मुश्किल हो रहा है। गेहूं खरीद के समय अधिकारियों के दबाव में काम हो जाने के बाद फिर बकाए दारी का मामला बना रहता है।
तगादे के चलते होते शर्मसार
पीसीएफ जिला प्रबंधक के अनुसार मंडी व परिवहन का बकाया होने के चलते संबंधित अधिकारी रोजाना तगादे करते है। जिससे कर्मचारियों को शर्मसार होना पड़ता है।

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