सत्याग्रह की शहादत का साक्षी चैरीचैरा काण्ड दिवस कार्यशाला आयोजित

हमीरपुर। जनपद के सिसोलर किशन बाबू शिवहरे महाविद्यालय में विमर्श विविधा के अंतर्गत जरा याद करो कुर्बानी के तहत सत्याग्रह की शहादत का साक्षी चैरी चैरा कांड दिवस कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें कालेज के प्रचार डॉक्टर भवानी दिन ने कहा कि चैरी चैरा के सत्याग्रह का आजादी के लिए संघर्ष स्वतंत्रता संघर्षों के लिए प्रेरणा का था गांधी जी द्वारा 1920 में पूरे देश में असहयोग आंदोलन चलाया गया था जो अंग्रेजों के विरुद्ध चलाया गया एक अहिंसक संग्राम था। जिसे विश्व में अपने तरह का चलाया गया पहला समर कहा जा सकता है 1919 ईस्वी से 1920 के बीच देश के लिए संघर्ष वेदी में अवधि देने वाली कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिन्होंने त्याग तपस्या और बलिदान की वह विषाद बिछाई जिसके कारण आगे चलकर अंग्रेजों का हर दाम या चाल करो खाने चित हो गए। इन वर्षों में ही चैरी चैरा कांड एक ऐसी घटना थी जिसे भारतीय आजादी के संघर्षी आलोक में व्यवस्थित नहीं किया जा सकता है। असहयोग आंदोलन के समय अंग्रेजों का आंदोलनकारियों के प्रति दमन चक्र मानवी था 17 नवंबर 1921 को मुंबई में प्रिंस आफ फेल वेल्स उतरे जिसका कांग्रेस ने हड़ताल और विरोध प्रदर्शन द्वारा स्वागत किया गांधी जी ने 1 फरवरी 1922 को वायसराय को पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि 7 दिनों के अंदर यदि सरकार ने दमन चक्र बंद नाक किए तो बारदोली और गुंटूर कि सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया जाएगा जिससे मैं करना दो कार्यक्रम में शामिल होगा 7 दिनों का समय पूरा होने के पूर्व घटी एक घटना ने पूरे पूरे ब्रिटिश हुकूमत को हिला कर रख दिया 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले में चैरीचैरा नामक गांव में सत्याग्रह थाने के सामने से शांतिपूर्वक जुलूस निकाल रहे थे जिसे तत्कालीन थानेदार ने अवैध घोषित कर दिया था एक सिपाही ने सत्याग्रही की गांधी टोपी को अपने पांव से रन दिया था जिसे सत्याग्रह में आक्रोश फैल गया इन्होंने पुलिस का विरोध किया पुलिस ने जुलूस पर फायरिंग कर दी जिसमें गेरा सत्याग्रही मारे गए और 50 सत्याग्रही घायल हुए गोलियां खत्म होने पर पुलिस वाले थाने की ओर भागे भीड़ ने एक दुकान से एक तीन केरोसिन तेल और मूंछ और सरपत का बोझ भी उठाया भीड़ ने थाने को घेर लिया और सरपत को थाने के पूरे परिसर में बिछा दिया और आग लगा दिया थानेदार ने भागने की कोशिश की जिस पर भीड़ ने उसे आग में डाल दिया इस अग्निकांड में 21 पुलिस वाले और एक दरोगा की मौत हो गई गांधीजी ने इस घटना को हिंसक मानकर दुख व्यक्त करते हुए चितरंजन दास मोतीलाल नेहरु लाल लाला लाजपत राय और सुभाष चंद्र बोस के मना करने पर भी असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया इस कांड को लेकर पुलिस ने सैकड़ों लोगों को अभियुक्त बनाया 9 जनवरी 1923 को 418 पेज का फैसला आया देश की ओर से मदन मोहन मालवीय मुकदमे लड़े इस केस में 172 लोगों को सजाएं मौत मिली अभियुक्तों की ओर से सरकार के पास अपील की गई 30 अप्रैल 1923 को फैसला सुनाया गया जिसमें 19 सत्याग्रह को मृत्युदंड मिला 16 को काला पानी 8 लोगों को बरी कर दिया गया यह घटना देशवासियों को यह संदेश देती है कि आजादी यूं ही नहीं मिली स्वाधीनता लिए लंबा संघर्ष किया गया है इसके लिए उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि तभी मानी जाएगी जब उनके आदर्शों और सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएं कार्यक्रम में डॉ श्याम नारायण रामप्रसाद प्रशांत आरती गुप्ता नेहा यादव देवेंद्र त्रिपाठी प्रत्यूष त्रिपाठी राकेश यादव हिमांशु सिंह आलोक राज सुरेश सोनी गणेश तिवारी राजकिशोर पाल आदि ने अपने-अपने विचार रखे संचालन डॉ रमाकांत पाल ने किया।

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