मोदीराज: कच्चे तेल की कीमत 75% गिरी, और जनता पेट्रोल की आग में जलती रही!

नई दिल्ली: मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी सत्ता की चार साल पूरे होने की जश्न मना रही है। जबकि जनता महंगाई की मार और तपतपाती भीषण गर्मी की तपिश में जल रही है। इस बीच पिछले चार साल से लगातार बढ़ते पेट्रोलियम पदार्थों के दामों ने गर्मी की तपिश को और बढ़ा दी है। आज हम 2014 में आयी मोदी सरकार के बाद से लगातार बढ़ते पेट्रोलियम पदार्थों की चर्चा करेंगे। हकीकत यह है कि 2014 के बाद दो साल में कच्चे तेल की कीमत में 75% सस्ता हुआ और मोदी सरकार ने दो साल में पेट्रोल के दामों में बड़ी ही मामूली कमी की। 2014 के बाद पेट्रोल के दामों में मोदी सरकार ने सिर्फ 10-17 प्रतिशत तक की कमी की जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 75-से 80 प्रतिशत तक कच्चे तेल के कीमतों में कमी आयी। वर्तमान में 77.83 रुपए लीटर पेट्रोल में 46% सिर्फ कर के रूप में जनता से कर के रूप में वसूली हो रही है।

मई 2014 में जब भाजपा सत्ता में आयी तो तो कच्चे तल की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 111 डॉलर प्रति बैरल था, जो घटकर अब 80 डॉलर रह गया है। कच्चे तेल की कीमत की ये स्थिति तब है, जब हाल ही के महीनों में महंगा हुआ है। फिर भी 2014 के 111 डॉलर प्रति बैरल से 28% नीचे है। 2014 में पेट्रोल 71 रुपए था, जो आज 77 रुपए प्रति लीटर के पार चला गया है। यह दर दिल्ली में है जबकि अलग-अलग राज्यों में पेट्रोल और डीजल के अलग-अलग दाम है। सरकार विपक्ष की मांग और नीति आयोग के सुझाव पर अमल करते हुए पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाती है तो पेट्रोल प्रति लीटर 25 रुपए तक सस्ता हो सकता है।

मई 2014 के बाद एक मौका ऐसा भी आया जब कच्चा तेल तेजी से सस्ता हुआ। 7 महीने में जनवरी 2015 तक कच्चा तेल 111 से घटकर 46 डॉलर/बैरल तक पहुंच गया। गिरावट का सिलसिला यहीं नहीं थमा। जनवरी 2016 में तो ये 29 डॉलर तक फिसल गया। इस दौरान कच्चा तेल 75% लुढ़का, लेकिन पेट्रोल सिर्फ 17% सस्ता हुआ। हम बता दें कि पेट्रोल डीजल के दाम मंहगा होने की बड़ी वजह एक्साइड ड्यूटी, कंपनियों की कमाई और 46 प्रतिशत का कर लगना है। इस दौरान मोदी सरकार ने 9 बार से ज्यादा एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई। यानि जनता पेट्रोल की आग में जलती रही है और सरकार कमाई करती रही।

केंद्र के कुल एक्साइज रेवेन्यू में 85% हिस्सा और कुल टैक्स रेवेन्यू में 19% हिस्सा पेट्रोल-डीजल का होता है। पिछले चार साल में तेल कंपनियों की जमकर कमाई हुई। इस दौरान  2017-18 में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन का शुद्ध मुनाफा 21,346 करोड़ रुपए रहा, जो अब तक का सबसे ज्यादा है। इस दौरान 5.06 लाख करोड़ का टर्नओवर रहा। 2014-15 के 5,272 करोड़ रुपए की तुलना आईओसी का मुनाफा चार गुना से भी ज्यादा बढ़ा। 2018 की मार्च तिमाही में 40% ज्यादा मुनाफा हुआ। रिफायनिंग मार्जिन और इन्वेंट्री यानी पुराने स्टॉक से कंपनी ने फायदा कमाया। शुद्ध मुनाफा 5,218 करोड़ रुपए रहा। पिछले साल की इसी तिमाही में प्रॉफिट 3,720.62 करोड़ था। 2018 की मार्च तिमाही में एचपीसीएल का मुनाफा 4% घटा, लेकिन पूरे वित्त वर्ष में 6,357 करोड़ का मुनाफा रहा। ये अब तक का सबसे ज्यादा है। 2014-15 के 2,733 करोड़ तुलना में 2017-18 में कंपनी को दोगुने से भी ज्यादा प्रॉफिट हुआ।

कच्चा तेल सस्ता होने से जितना फायदा जनता को मिलना चाहिए था, उसका एक चौथाई भी नहीं मिला। ऐसा इसलिए, क्योंकि नवंबर 2014 से जनवरी 2016 के दौरान सरकार ने 9 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई। एक्साइज ड्यूटी से सरकार की कमाई 2013-14 में 88,600 करोड़ रुपए थी। 2016-17 में यह बढ़कर 2.42 लाख करोड़ रुपए हो गई। 4 साल में पेट्रोल पर 105% और डीजल पर 330% बढ़ी एक्साइज ड्यूटी लगाई गयी। एक दिलचस्प बात यह है कि सरकार की 100 रुपए की आमदनी में 19 रुपए पेट्रोल-डीजल से आते हैं मोदी सरकार ने 2016-17 में पेट्रोलियम पदार्थों पर 2.73 लाख करोड़ रुपए का टैक्स के रूप में कमाया। यह सरकार को टैक्स से हुई कुल आय (19.46 लाख करोड़) का 14 प्रतिशत का हिस्सा था।

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