लखनऊ। कैराना और नूरपुर की हार के बाद प्रदेश सरकार इस हार का ठीकरा प्रदेश के सूचना विभाग पर फोड़ना चाह रही है। सरकार का मानना है कि प्रदेश सरकार की एक वर्ष की उपलब्धियों का प्रचार प्रसार करने मे सूचना विभाग पूरी तरह से विफल रहा और इसका खमियाजा प्रदेश की भाजपा सरकार को कैराना और नुरपुर में भुगतना पड़ा। जबकि पार्टी के अन्दर ही अब इस बाॅत की चर्चा होने लगी कि इस हार के लिए सूचना विभाग कम सरकार ज्यादा दोषी है। भाजपा के कुछ नाराज लोगों का कहना है कि अगर सूचना विभाग इस हार के लिए बीस फीसदी जिम्मेदार है तो सरकार की जिम्मेदारी 80 प्रतिशत बनती है। उनका स्पष्ट कहना है कि पार्टी के सक्रिय कार्यकताओं की क्षेत्र की सफाई, क्षेत्र की सड़का की दुर्दशा जैसी शिकायतों पर जब कार्रवाई नही होगी तो विरोध होना लाजिमी है। बाॅत सूचना विभाग की करे तो सूचना विभाग हाईटेक होते हुए भी लेटलतीफ हो चुका है। कैबिनेट बैठक की विज्ञप्ति की बाॅत करे या फिर विभागीय बैठकों, समीक्षा बैठको, शासनादेशों की बाॅत करे या फिर किसी योजना और मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की बाॅत करे या फिर अन्य सरकारी कवरेजों की सभी लेट लतीफ जारी करना सूचना विभाग की कार्यशैली बनता जा रहा है। विभागीय मंत्री द्वारा समीक्षा न किये जाने और अत्याधिक स्टाफ की कमी ने विभाग को जरूरत से ज्यादा सुस्त बना दिया है।
सूत्रों की माने तो भाजपा सरकार भले ही हार के लिए सूचना विभाग को जिम्मेदार मान रही हो लेकिन यह सौ फीसदी सच नही है। सत्ता मिलने के बाद भाजपा के मंत्रियों और पदाधिकारियों का हावभाव पूरी तरह से बदला हुआ है। कार्यकर्ता अपनी उपेक्षा से काफी नाराज है। सहयोगी दल के मंत्रियों के सरकार विरोधी बयान और भाजप विधायकों के बयानों ने भी भाजपा की प्रदेश में फिजा खराब कर रखी है। जीरों प्रतिशत भ्रष्टाचार की आड़ भेें भ्रष्टाचार दूसरे तरीके से जारी है। पिछले दिनों नगर निगम अगारा में विधायक द्वारा कमीशन की सूची जारी करने के बाद नगर निगम लखनऊ के मुख्य लेखा एवं वित्त अधिकारी का आडियो इस बाॅत का सीधा उदाहरण है। दूसरी सरकारों में जातिवाद के आधार पर तैनाती का आरोप लगाने वाली भाजपा पर आज यही आरोप लग रहा है। ठाकुर संवर्ग से जुड़े अधिकारियों की तैनाती की चर्चा पार्टी के भीतर ही चर्चा का विषय बनी हुई है। सरकार के समय निर्धारित करने बावजूद सड़कों की गढ्ढा मुक्ति अभियान कागजों पर सिमटा है। विपक्ष में रहने के दौरान भ्रष्टाचारियों पर कार्रवा्र और जेल भेजने का दावा करने वाली सरकार अब तक साक्ष्यों के आधार पर शिकायतें और जाॅच में मिलने वाली खामियों के बावजूद उगली पर गिनने वाली कार्रवाईयाॅ कर पाई है। ऐसी और बहुत सी गल्तियाॅ है प्रदेश के भाजपा सरकार को जनता की नजर में साफ सुथरा होने के बावजूद बंदरंग दिखा रही है। ऐसे में अगर कैराना और नुरपुर के चुनाव परिणामों पर सूचना विभाग की नकेल कसने के साथ सरकार ने अपने तौर तरीके पर सुधार न किया तो 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता न चाहते हुए भी भाजपा को 73 की जगह 20-25 सीटों पर समेट देगी। क्योकि लाख भाजपा सरकार के केन्द्रीय मुखिया ‘‘ मोदी’’ और राज्य मुखिया ‘‘योगी’’ की भ्रष्टाचार के मामले में स्वच्छ छबि है लेकिन जनता को इससे कोई लेना देना नही, जनता चाहती है उसके काम आसानी से हो, भ्रष्टाचार मुक्ति के नाम पर अधिकारियो की मनमानी समाप्त हो, घोषणा और भाषणबाजी की जगह विकास कार्य धरातल पर नजर आए। रहा सूचना विभाग का हाल तो यह तो सौ फीसदी सच है कि किसी भी राज्य का सूचना विभाग राज्य सरकार के क्रिया कलापों का दर्पण होता है इस दर्पण में जनता जो कुछ देखती वही सच समझती है। लेकिन सरकार की उपलब्धियाॅ गिनाने की बाॅत छोड़ भी दे तो प्रदेश का सूचना विभाग अपने दायित्वों का ही निर्वहन नही कर पा रहा है। मुख्यालय से लेकर जनपदीय सूचना विभाग के कार्यालय अभाव ग्रस्त है। स्टेशनरी से लेकर संसाधनों का भारी अभाव है। सूचना विभाग के पक्षपात और दबाव की नीति के चलते लिखने पढ़ने वाले पत्रकार सूचना विभाग से नाराज है और इसका परिणाम सरकार को भुगतना पड़ रहा है।