अंबेडकरनगर । आखिरकार ग्लैंडर्स फर्सी नामक गंभीर संक्रामक बीमारी से ग्रस्त चार घोड़ों को सजा-ए-मौत दे दी गई। इनमें दो घोड़ों एक घोड़ी व एक खच्चर है। पशु चिकित्सकों की पांच सदस्यीय टीम ने उन्हें बिना दर्द का इंजेक्शन लगाकर मौत के आगोश में पंहुचा दिया। एक-एक करके मौत के मुंह में पंहुचाये गये चारों घोड़ो को तमसा नदी के किनारे एक विशालकाय गड्ढे में रासायनिक पदार्थां के साथ दफना दिया गया ताकि उनका संक्रमण किसी भी प्रकार से फैल न सके। जिस समय घोड़ों को मौत के मुंह में जाने के लिए अन्तिम प्रक्रिया चल रही थी उस समय उनके पालकों के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था।
गौरतलब है कि लगभग एक माह पूर्व पशुपालन विभाग ने जिले में बीस घोड़ों के खून के सेम्पल लेकर उन्हें जांच के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान प्रयोगशाला हिसार हरियाणा में भेजा था। जांच में दो घोड़े एक घोड़ी व एक खच्चर में ग्लैंडर्स की पुष्टि होने के बाद विभाग में सनसनी फैल गई। इस संक्रामक बीमारी को कोई इलाज न होने के कारण प्रभावित घोड़ों को मौत के आगोश में पंहुचाना ही एकमात्र विकल्प था। संयोगवश इस बीमारी से प्रभावित सभी घोड़े भीटी विकास खण्ड के चतुरी पट्टी गांव में स्थित एक ही भट्ठे पर काम करते थे। पशुपालन विभाग के चिकित्सकों की टीम ने शनिवार को भट्ठे पर पंहुचकर उन्हें चिन्हित किया था। साथ ही उनके पालकों से इलाज की बात कही थी लेकिन हकीकत में पशुपालन विभाग इन्हें मारना ही एक विकल्प मानता था।पहले घोड़ों को सजा-ए-मौत देने के लिए सोमवार का दिन चुना गया था लेकिन शनिवार रात उच्चाधिकारियों के दबाव में इसे रविवार को ही कर दिया गया। उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी संजय शर्मा की अगुवाई में गये चिकित्सकों व उनकी टीम ने सभी घोड़ों को सजा-ए-मौत दे दी। इसके पूर्व भट्ठा मालिक ने मुआवजे की रकम के लिए सम्बन्धित अधिकारी से लिखित रूप में ले लिया। घोड़े व घोड़ी को मौत दिये जाने पर सरकार पालक को 25 हजार तथा खच्चर पर 16 हजार रूपये का अनुदान प्रदान करती है। डॉ. संजय शर्मा ने बताया कि अनुदान की यह धनराशि उनके खाते में भेज दी जायेगी।