नहीं लौट सका लॉकडाउन के चलते घर, हताशा में गुजरात के मंदिर में काटी जीभ

गुजरात-मध्य प्रदेश के रहने वाले एक प्रवासी शिल्पकार ने गुजरात के बनासकांठा जिले के एक मंदिर में शनिवार को अपनी जीभ काट ली। वह संभवत: लॉकडाउन के कारण हताश था और घर वापस जाना चाहता था। हालांकि, पुलिस ने उन खबरों से इनकार किया है कि शिल्पकार ने मंदिर में देवी को चढ़ावा चढ़ाने के लिए अपनी जीभ काटी।

मुरैना जिला निवासी विवेक शर्मा (24) पेशे से शिल्पकार है। उन्हें शनिवार को सुई गाम तहसील के नादेश्वरी गांव के नादेश्वरी माता मंदिर में खून से लथपथ बेहोश स्थिति में पाया गया। पुलिस उपनिरीक्षक एच.डी. परमार ने बताया, ‘जब वह हमें मिला उसने अपनी जीभ हाथ में पकड़ी हुई थी। हम उसे तुरंत सुई गाम अस्पताल ले गए।’ जिस मंदिर में यह घटना हुई, उसकी देखभाल सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) करता है, जबकि शर्मा वहां से करीब 14 किलोमीटर दूर एक दूसरे मंदिर में काम करता था। प्रारंभिक जांच के अनुसार, लॉकडाउन के कारण राज्यों की सीमाएं सील होने के बाद शर्मा को घर की बहुत याद सता रही थी और वह व्याकुल हो गया था।

कोरोना जांच के बाद प्रवासी मजदूरों को घर लौटने दें

उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर देशभर में प्रवासी कामगारों की आवश्यक कोरोना जांच के बाद उन्हें घर लौटने की अनुमति देने की मांग की गई है। याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से अधिकारियों को प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित यात्रा का इंतजाम करने का निर्देश देने का भी आग्रह किया है।

आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व प्रभारी निदेशक जगदीप एस छोकर और वकील गौरव जैन की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के विस्तार के मद्देनजर सर्वाधिक प्रभावित लोगों में शामिल प्रवासी कामगारों को कोविड-19 जांच के बाद अपने घर लौटने की अनुमति दी जाए। जिन प्रवासी कामगारों में कोरोना संक्रमण की पुष्टि नहीं हो, उन्हें उनकी मर्जी के बगैर आश्रय स्थलों में या उनके घर-परिवार से दूर न रखा जाए।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि जब देश में 15 अप्रैल से तीन मई तक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू हुआ है तो अपने गांवों और गृहनगर जाने के इच्छुक कामगारों के लिए राज्य के अधिकारियों को यात्रा का सुरक्षित प्रबंध करना चाहिए। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि काफी संख्या में प्रवासी कामगार अपने गांवों को जाना चाहते हैं। 24 मार्च को 21 दिन के लिए घोषित लॉकडाउन के बाद कई स्थानों पर अचानक उमड़ी भीड़ से यह पता चलता है। राज्य सरकारें पर्याप्त संख्या में आवश्यक परिवहन सेवाएं उपलब्ध करा सकती हैं, ताकि भौतिक दूरी बनाए रखने का उद्देश्य विफल न हो।

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