जिंदगी का सफर है यह कैसा सफर इस सफर को भूल जाना चाहता है वह परदेश से लौटे एक कामगार की कहानी उसकी जुबानी एक ऐसा सफर जिसे हर हाल में भूल जाना चाहता है युवक
न्यूज़ वाणी ब्यूरो/ज्योति सिंह
बाँदा- वतन छोड़कर परदेश जाना ही किसी सजा से कम तो नहीं। लेकिन लाखों बुंदेली रोजी रोटी के लिए सालों से यह सजा भुगतते रहे हैं। लॉकडाउन के बाद उनकी जिस तरह घर वापसी हुई है, उस सफर को वो कतई याद नहीं करना चाहते हैं। हजार किमी. से ज्यादा का सफर कड़ी धूप में नंगे पांव, भूखे पेट तमाम दुश्वारियों के बीच तय करने वाले लोग आपबीती बताते हुए दहल जाते हैं। वहीं सीमाओं पर हिकारत से भरा गैरों जैसा व्यवहार तो वो याद भी नहीं रखना चाहते हैं। भाई साहब पैरों के छाले तो कुछ दिन में ठीक हो जाएंगे, लेकिन दिल के छाले कैसे ठीक होंगे। परदेश में अपने बनने वाले लोगों को भी लॉक डाउन के दौरान पराए होते देखा है। यह कहना है, बांदा जनपद के तहसील अतर्रा की ग्राम पंचायत ओरन ग्रामीण के पिपरी खेरवा के रहने वाले बाबू यादव का। उसने बताया कि परिवार के भरण-पोषण के लिए सूरत में मजदूरी का काम करता था। लॉक डाउन में काम बन्द होने के बाद कुछ दिन तो पास में जो रुपये बचे थे, उनसे काम चलाया। बाद में भूखों मरने की नौबत आई तो वापस गांव पैदल ही चलने की ठानी । इसी दौरान पड़ोसी गांव के लोगों से मुलाकात हुई। सभी सूरत से एक ट्रक में निकले लेकिन रास्ता न मालूम होने के कारण ट्रक सूरत के आसपास घूमता रहा है सुबह सूरत से दो सौ किलोमीटर दूर ट्रक वाले ने उत्तर दिया और रात में चलने के लिए बोला, बैग व अन्य सामान ट्रक में ही रखा था। शाम होने के पहले ही ट्रक सामान लेकर रफूचक्कर हो गया, फिर शुरू हुई दर्दनाक सफर की कहानी, किसी तरह उदयपुर पहुंचे। किसी के पास रुपये भी नहीं बचे थे। खाने की समस्या थी, पानी पीकर ही पैदल चल दिए । रास्ते में भूख से बेहाल, पैरों में छाले पड़ चुके थे। उधर पुलिस से नजर भी बचाते चलना पड़ रहा था। एक समय ऐसा आया कि दर्द के कारण पैर नहीं उठने लगे थे । पैर दर्द से कराह रहे थे। दर्द सहते हुए झांसी आये । हम यही सोच रहे थे कि लगता है कि घर नहीं पहुंच पायेंगे। यही सोचते हुए किसी तरह झांसी पहुंचे। झांसी पहुंचने के बाद कुछ उम्मीद बढ़ी कि घर पहुंच सकते हैं। वहां से बेलाताल से होते हुए अतर्रा पहुंचे। अतर्रा से फिर गांव पहुंचे। यह पन्द्रह से बीस दिन का सफर भूल जाने की कोशिश के बावजूद जिंदगी भर याद रहेगा। ऊपर वाले से यही प्रार्थना है कि ऐसा दिन किसी को न देखना पड़े। अब हम परदेश नहीं जायेंगे। अपने ही घर में रहेगे ।