संसार के प्रत्येक कर्म की एक निर्धारित समय सीमा होती है जो कार्य विशेष के अनुरूप कम-ज्यादा रहती है। हर काम समय पर होना चाहिए, इसके साथ ही यह जरूरी है कि इसके संपादन के लिए दी गई तयशुदा समय सीमा में ही पूर्ण होना चाहिए।
प्रत्येक मनुष्य के लिए हर काम की समयावधि निश्चित की हुई है। अलग-अलग प्रकार के लोग इनके संपादन में न्यूनाधिक समय लगाते हैं। कुछ लोग तय समय सीमा में काम कर गुजरते हैं और फिर मस्त रहते हैं। कुछ लोग धीरे-धीरे काम करने के आदी होते हैं और जैसे-तैसे काम को कर पाते हैं। बहुत से लोग पड़े-पड़े खाना-पीना और कमाना चाहते हैं और कोई काम नहीं करते। इनसे काम लेना ही बड़ा भारी काम होता है।
ये लोग हमेशा अपनी ही मौज-मस्ती और मनोरंजन में रमे रहना चाहते हैं। इनके लिए न कार्यस्थल की साख और काम का कोई महत्व होता है और न ही समाज, अपने क्षेत्र या देश से कोई सरोकार। अपने क्षणिक भोग-विलास और आनंद के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं। इन खुदगर्जों को कभी कोई शरम नहीं आती। जिन्दगी भर येए महा बेशर्म बने रहते हैं।
तीसरे प्रकार के लोग सभी कामों को निर्धारित समय सीमा में पूरा कर सकते हैं मगर उनका समय प्रबन्धन इतना बिगड़ा हुआ होता है कि कोई भी काम समय पर पूरा नहीं हो पाता और इसके लिए इनके पास खूब सारे बहानों का अक्षय भण्डार होता है जिसका वे पूरा-पूरा उपयोग कर लिया करते हैं।
इन लोगों की कार्यस्थलों, काम-धन्धे के स्थलों और दुकानों-कंपनियों में पर्याप्त समय मिलता है और इनकी पूरे कार्यसमय में नियमित बैठक भी होती है लेकिन दायित्व कर्म के समय ये दूसरे कामों, गप्पों और टाईमपास फालतू के लोगों के साथ बिताते हुए मनोरंजन की दुनिया में खोए रहते हैं अथवा अपनी बतरसिया और दुनिया भर की हलचलों को सुनने-जानने व देखने में भटक जाते हैं।
इसलिए इनके काम समय पर नहीं हो पाते और विवश होकर दुःखी मन से अतिरिक्त समय निकालना पड़ता है और इसका मलाल रोज इन लोगों को होता भी है लेकिन आदत ही ऎसी पड़ जाती है कि इनका बस नहीं चल पाता और यही क्रम जिन्दगी भर चलता रहता है।
इस श्रेणी के लोगों के पास पुराने से पुराने समय का अधूरा काम लम्बित पड़ा हुआ होता है। ये लोग कभी पुराने कामों से मुक्ति पाने का अहसास कर ही नहीं पाते कि नए-नए काम इनके पास आते हुए पुराने कामों की सूची में शामिल हो जाया करते हैंं।
हमारे इलाके में समाज-जीवन के सभी क्षेत्रों में ऎसे लोगों की भारी भीड़ विद्यमान है जो समय पर काम नहीं कर पाते। ऎसे लोग अपने निकम्मेपन की वजह से ढेर होते जा रहे लम्बित कामों की वजह से दबावों में जीने के आदी हो जाते हैं और ऎसे में तनावों का उनके साथ ऎसा संबंध स्थापित हो जाता है जो मरने तक साथ बना रहता है।
पुराने कामों के बोझ से उत्पन्न तनावोें का ही परिणाम है कि ये लोग नए कामों को भी तय समय सीमा में नहीं कर पाते और इसी प्रकार उत्तरोत्तर इनका बोझ बढ़ता रहता है तो आने वाले समय में पहाड़ की तरह अड़िग रहकर इनके जीवन और कर्मयोग दोनों की राह में आड़े आ जाता है।
बात सरकारी क्षेत्र की हो या निजी क्षेत्र की अथवा आधे-आधे सरकारी-गैर सरकारी क्षेत्र की। हर कहीं जमा है ऎसे लोगों की भीड़ जिनके लिए जीवन भर काम का बोझ बना रहता है और इस बोझ के मारे खुद तो परेशान रहते ही हैं, दूसरों के काम भी समय पर नहीं कर पाने की वजह से लोगों की बद्दुआओं के तीर भी इनके जिस्म में चुभते रहते हैं।
ऎसे लोगों के कामों को देखा जाए तो उन्हें रोजाना इतना समय मिलता ही है कि ये आसानी से अपने रोजमर्रा के कामों को निपटा सकें लेकिन इनकी मानसिक शिथिलता और समय प्रबन्धन की कमी के कारण ये समय का पूरा उपयोग नहीें कर पाते और रोजाना कुढ़ते रहने के आदी हो जाते हैं।
समय पर काम नहीं कर पाने वाले इन लोगों को पूछा जाए तो यही बहाना होता है कि काम बहुत है, क्या करें। जबकि उन्हीं की तरह दूसरे लोग भी हैं जिनके पास भी उतना ही काम होता है मगर वे उसी समय सीमा में पूरा कर लिया करते हैं जितना समय निर्धारित होता है।
सौंपी गई अवधि में काम नहीं कर पाने वाले लोग फिर अवकाशों के दिनों में या अतिरिक्त समय में अपने कार्यस्थलों में डटे रहने की विवशता या शौक से जुटे रहते हैं और उन सभी बहुमूल्य क्षणोें को यों ही बरबाद करते रहते हैं जो क्षण उन्हें मौज-शौक या घर-गृहस्थी और सामाजिक एवं उत्सवी आनंद के लिए हुआ करते हैंं। इन लोगों के परिवारजन भी इन्हें पसन्द करना छोड़ दिया करते हैं।
यह तय मान कर चलना चाहिए कि जो लोग निर्धारित अवधि में सामान्य कार्य नहीं कर पाते हैं वे इस लायक हैं ही नहीं कि उन्हें ये काम सौंपे जाएं। इन लोगों को नालायक नहीं भी कहा जाए तो यह तो मानना ही चाहिए कि इन्हें कोई सा काम सौंपे जाने का अर्थ यही है कि कहीं न कहीं चूक उन लोगों से ही हुई है जिनके द्वारा इन्हें काम सौंपा गया है। वरना इनकी बजाय दूसरे लोग होते तो समय पर और इनसे ज्यादा अच्छा काम करते।
जो जहाँ कहीं काम कर रहा है उसे चाहिए कि वह अपने कामों के लिए निर्धारित घण्टों का पूरा उपयोग करते हुए काम पूरा करे ताकि किसी भी क्षण अतिरिक्त समय की मांग की कल्पना उसके जेहन में कभी न आए। समय पर काम नहीं करने वालों और आलस्य बरतने वालों के लिए एक ही शब्द काफी है और वह है – दीर्घसूत्री। यह आलसी, प्रमादी, समय प्रबन्धन में विफल हो चुके नाकारा लोगों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जो कि कभी कोई काम समय पर नहीं कर सकते।