न्यूज वाणी ब्यूरो
लखीमपुर खीरी- कोरोना वायरस को लेकर पूरी दुनिया में एक डर का माहौल बनाकर बिजनेस मॉडल तैयार करने की कोशिश की जा रही है, इस खेल के पीछे इंटरनेशनल व्यापारियों की चाल है, आज नहीं तो कल इस महा खेल का भांडा जरूर फूटेगा, ये बात इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड एजुकेशन के चेयरमैन डॉ नजर अंसारी ने कोरोना महामारी के संबंध में बात चीत के दौरान कही। उन्होंने बताया कि नोबेल कोरोना पुराने कोरॉना का नया वर्जन यानी नई पीढ़ी का वायरस है जो कि पुराने कोरोणा से कमजोर होता है, जिस प्रकार पुराने जमाने के लोग नई पीढ़ी के लोगों से ज्यादा ताकतवर होते थे नई पीढ़ी के लोग देखने में तो ज्यादा स्मार्ट लगते है पर पुराने वालों से बहुत कमजोर होते है ठीक इसी प्रकार से नोबेल कॉरोना पुराने कारोना से कमजोर है, साइंटिफिक स्टडी भी यही बताती है कि पुराना कॉरॉना में चार लोगों में फैलने की ताकत थी यानी एक को अगर होता तो वह चार लोगों को बीमार कर सकता था पर नोबेल कोरोना सिर्फ दो ही लोगो को फैल सकता है यानी अगर किसी को हो जाए तो वोह सिर्फ दो ही लोगों में फैला सकता है। मृत्यु दर कोरॉना और नोबेल कारोना में सेम ही है यानी 0.2ः, आइये जानते है कि क्या है कोरिना क्रोना एक सिम्पल फ्लू यानी जुकाम खांसी का वायरस है जो कि मौसम बदलने पर हमेशा ही होता है, नवंबर से अप्रैल तक इसका सीजन रहता है, ये कोई नई बात नहीं है हमेशा हमलोग जुकाम खांसी बुखार से पीड़ित होते ही रहते हैं।वयस्कों में साल में एक बार और बच्चो में साल में लगभग छ बार जुकाम होना आवश्यक है।और हमेशा ही लोग ठीक होते ही रहे है ।80ः प्रतिशत लोगों को पता ही नहीं चलता है कि उन्हें कोरोना हुआ है वह तो स्वतः ही ठीक ही जाता है। सिर्फ 20ः लोगों में जुकाम खांसी के लक्षण होते है उनमें भी मात्र 2ः लोग ही ज्यादा बीमार हो पाते है जिनकी इम्यूनिटी बहुत ही कमजोर या जीरो होते है। उनमें भी मात्र0.2ः ही लोगो की मृत्यु होती है जो उम्रदराज होते है और कोई दूसरी बीमारी भी जैसे सुगर ब्लड प्रेशर हार्ट की बीमारी होती है। दर असल कॉरोना या कोई भी वाइरस नया वायरस बिल्कुल भी नहीं है ऐसे हजारों की तादाद में वायरस जबसे दुनिया बनी है तभी से हमारे आस पास रहेते है और हम पर और जानवरों पर हमला भी करते रहे है, हमेशा ही हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता ही हमें हर प्रकार के वायरस से बचाती रहती है, जरूरत तो सिर्फ इतनी है कि हम अपना खान पान रहेन सहन बेहतर रखे ताकि हमारी इम्यूनिटी मजबूत बनी रहे, फिर वोह कोई भी वयरस हो हमें उसका नाम जानने की जरूरत नहीं है किसी भी अपतने के लिए कोई दवा अभी तक नहीं बनी है और ना ही बन सकती है, तो वायरस का नाम करण करने से कोई लाभ हो ही नहीं सकता अगर कोई नाम करण करता है तो वोह बिजनेस मॉडल ही होगा। नोबेल कोरोना का नाम करण करके जो पूरी दुनिया में दहशत का माहौल पैदा किया गया है ये सिर्फ व्यापारिक प्लेट फार्म ही तैयार किया जा रहा है इसका भंडा फूटेगा आज नहीं तो कल क्यों की सच्चाई को ज्यादा दिनों तक छुपाया नहीं जा सकता। 2009 में स्वाइन फ्लू का भंडा फुट ही चुका है इसका भी होगा आज नहीं तो कल। इसी तरह का डर 1984 में भी एच आई वी का फैलाया गया था जबकि आजतक किसी के शरीर में एच आई वी पाया ही नहीं गया। एच आई वी के अविष्कारक का भी कहना है कि एच आई वी इंसान के शरीर में किसी भी तरह से जा ही नहीं सकता, तो मतलब साफ है कि एचआईवी भी एक बिजनेस मॉडल था और कॉरोना भी। लेकिन चूंकि लॉक डाउन व सोसल दिस्टेंसिंग का आदेश सरकार का है तो जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम सब को राज धर्म निभाते हुए सरकारी आदेश का पालन करना हमारा कर्तव्य है। हालांकि ू ीव और आई सी एम आर ने पाऊ पीछे करने शुरू कर दिए ींप। मै सिर्फ इतना कहना चाहता हूं की डरने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है क्यों की डर अक्सर अज्ञानता से फैलता है। सही जानकारी जरुर प्राप्त करे अफवाहों से दूर रहे, सोसल मीडिया टी वी से जितना बचेंगे उतना ही सुरक्षित रहेंगे इसके अलावा अपनी दिनचर्या में व्यायाम धूप और खान पान में सलाद फल आदि ज्यादा शामिल करे, एनिमल फूड व प्रोसेस फूड से बचे।चूंकि इलाज अभी तक बना नहीं है अगर कुछ इलाज करने लगेंगे यानी वायरस की तो दवा नहीं बनी है कोई दूसरी दवा देने का मतलब दवा का प्रयोग इंसानों पर करने लगेंगे तो पक्का ही मृत्यु दर.2ः से ज्यादा हो सकती है नहीं बल्कि हो ही जाएगी ही।चिंता का विषय कोरोना नहीं बल्कि दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें हार्ट अटैक से होती है जिसका 60ः मौते अकेले भारत में होती है सबसे ज्यादा शुगर के मरीज भारत में है बल्कि भारत को डायबिटीज कैपिटल भी कहा जाने लगा है, हर मिनट एक मौत टी बी से होती है हर तीसरा चैथा व्यक्ति डायबिटीज से पीड़ित है। इसके लिए न ही सरकार को चिंता है और न ही मीडिया दिखाता है। जबकि टी बी का एक मरीज 14 लोगों को बीमार कर सकता है कोरॉना तो दो को ही , हर साल भारत में टी बी से 4 से पांच लाख लोग मरते है पर कोई लॉक डाउन नहीं सोसल डिस्टेंसिंग का आदेश नहीं मुझे लगता है कि चिंता तो इसकी होनी चाहिए ।