शरद पूर्णिमा और शनिवार का संयोग इस बार बन रहा हैइसदिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा कहते हैं। इसदिन चन्द्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है।
शरद पूर्णिमा और शनिवार का संयोग इस बार बन रहा है। इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन चन्द्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है। आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है।
वैदिक ज्योतिष विज्ञान में मन का स्वामी चन्द्रमा को माना गया है। ज्योतिष विज्ञान की खोजें भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि चन्द्रमा यदि दोषयुक्त है तो व्यक्ति का मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है।
कैलिफोर्निया विश्वविद्द्यालय के शोधार्थियों ने जेल में बंद कुछ मानसिक रोगियों पर जो अनुसंधान किए हैं उनके नतीजे चौंकाने वाले हैं। उनका कहना है महीने में दो बार उन कैदियों की गतिविधियों में अभूतपूर्व बदलाव देखने में आता है उनमे से कुछ अत्यधिक उग्र और उत्पाती हो जाते हैं जबकि कुछ एकदम शांत और शालीन।
जब इन तिथियों को भारतीय पंचांग से मिलाया गया, तो ये तिथियां अमावस्या और पूर्णिमा या उनसे एक दो दिन आगे पीछे की तिथियां थी। स्त्रियों का मासिक चक्र भी चन्द्रमा की गतियों से ही निर्धारित होता है।
यदि मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्ति के जीवन में चन्द्रमा और अमावस्या इन दो तिथियों पर विशेष ध्यान देकर उसके व्यवहार को आंका जा सके, तो विज्ञान कहता है ऐसे मानसिक रोगियों को सदा के लिए ठीक किया जा सकता है।
किसी भी जन्म-पत्रिका का विश्लेषण करते समय चंद्रमा का अध्ययन अति आवश्यक है क्योंकि संसार में सबका पार पाया जा सकता है परन्तु मन का नहीं। संसार के सारे क्रिया-कलाप मन पर ही टिके हुए हैं।
सामान्यतः हम सुनते आए है कि हमारा मन नहीं लग रहा अथवा हमारा मन तो बस इसी में लगता है। जन्म-पत्रिका में यदि चन्द्रमा शुभ ग्रह से सम्बन्ध करता है तो उसमें अमृत-शक्ति का प्रादुर्भाव होता है तथा यदि वह अशुभ ग्रह अथवा पाप ग्रह से सम्बन्ध करता है तो विभिन्न विकार उत्पन्न करता है।
यह सम्बन्ध किसी भी रूप में हो सकता है यथा युति सम्बन्ध, दृष्टि सम्बन्ध, राशि सम्बन्ध या नक्षत्र सम्बन्ध। विष यानि जहर। विष का जीवन में किसी भी प्रकार से होना मृत्यु अथवा मृत्यु तुल्य कष्ट का परिचायक है।
जन्म-पत्रिका में चन्द्रमा तथा शनि के सम्बन्ध से विष योग का निर्माण होता है। दूसरे शब्दों में चन्द्रमा पर शनि का किसी भी रूप से प्रभाव हो चाहे दृष्टि सम्बन्ध या अन्य, यह योग जीवन में विष योग के परिणाम देता है।
विष योग को पुनर्फू योग भी कहते हैं। किसी भी जन्म-पत्रिका में यह युति सर्वाधिक रूप से बुरे फल प्रदान करती है। इसमें चन्द्रमा तथा शनि दोनों से संबन्धित शुभ फलों का नाश होता है।
युति सम्बन्ध केवल शनि तथा चन्द्रमा के साथ-साथ बैठने से ही नहीं होता है। हालांकि दोनों का दीप्तांशों में समान होने पर ही यह युति होती है। दोनों ग्रह जितने अधिक अंशानुसार साथ होंगे उतना ही यह योग प्रभावशाली होगा साथ ही उसी अनुपात में नकारात्मक भी।