डा. कफील के भाई पर जानलेवा हमले में पुलिस की भूमिका पर उठ रहे हैं सवाल

गोरखपुर। डा. कफील के भाई काशिफ जमील पर जानलेवा हमले की घटना में पुलिस की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। पुलिस द्वारा घटना का संदिग्ध बताना, घायल पर पुलिस को सूचना न देने का आरोप लगाना, घायल का दो बार मेडिको लीगत कराने के लिए स्टार हास्टिपल से जिला अस्पताल और फिर मेडिकल कालेज ले जाना और इस चक्कर में घायल के आपरेशन में तीन घंटे से ज्यादा देरी होने को लेकर पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं। डा. कफील ने भी इस बारे में सार्वजनिक रूप से पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया है।

सबसे पहले तो पुलिस ने बिना जांच पड़ताल किए ही घटना को संदिग्ध बताना शुरू किया। मीडिया को भी इस तरह के इनपुट दिए गए। पुलिस के हवाले से 11 जून के अधिकतर अखबारों ने घटना को संदिग्ध बताते हुए खबरें लिखीं। घटना को संदिग्ध बताने के लिए पुलिस ने कहा कि घटना स्थल से बुलेट नहीं मिला, घायल और उसके परिजनों ने घटना की सूचना पुलिस को देने के बजाय मीडिया को पहले क्यों दी ?  पुलिस के इस इनपुट के आधार पर एक अखबार ने यह खबर लगाई कि ‘ कहीं प्री प्लांड घटना तो नहीं ’।  इस खबर में कहा गया था कि ‘ गोलियां सिर्फ छूकर निकल गईं, बदमाश आसानी से फरार हो गए, पुलिस के बजाय मीडिया को पहले खबर दी गई । इससे शक की सुई परिवार की ओर घूमने लगी है। ’

इस खबर में जो ब्योरे दिए गए थे, तथ्य के बजाय कपोल कल्पित थे। गोलिया सिर्फ शरीर को छूकर नहीं गईं थी बल्कि गले में जाकर धंस गई थी और एक गले को चीरते हुए बाहर निकल गई थी।

घटना को संदिग्ध बताने की पुलिस की थ्योरी औंधे मुंह गिर गई है। घटना स्थल के आस-पास रहने वाले कई लोगों ने मीडिया को बताया कि उन्होंने गोली चलने की आवाज सुनी थी और स्कूटी सवार बदमाशों को भागते देखा था। भगते समय स्कूटी सवार एक बार गिर भी गए थे लेकिन बदमाश फिर उठ कर भाग खड़े हुए।

यह घटना हुमायूंपुर दक्षिणी निवासी मुन्नीलाल गुप्ता के मकान के सामने हुई थी। मुन्नीलाल ने बताया कि पड़ोस में रहने वाले पट्टीदार के घर जन्मदिन की पार्टी चल रही थी। गोली चलने की आवाज सुनकर बाहर निकले बच्चों ने दरवाजे पर बाइक लेकर गिरे व्यक्ति को देखकर सूचना दी। गोली मारने वाले स्कूटी सवार भागते समय मोड़ पर गिर गए थे। दोबारा स्कूटी उठाकर दुर्गाबाड़ी की तरफ निकल गए। कुछ देर बाद घायल व्यक्ति भी बाइक छोड़कर चला गया।

पुलिस के हवाले से अखबारों में छपा है कि घायल काशिफ ने घटना के बारे में पुलिस को जानकारी नहीं दी थी जबकि सचाई यह है कि घायल काशिफ ने घटना के बारे में अपने भाई को बताने के साथ-साथ पुलिस को भी घटना की जानकारी दी थी। घायल ने गोरखनाथ पुलिस, सीओ गोरखनाथ और 100 नम्बर पर फोन किया था लेकिन उधर से कोई रिस्पांस नहीं मिला। तब उसने इंस्पेक्टर कैंट को फोन किया और उन्होंने मोबाइल उठाया भी। स्टार हास्टिपटल में काशिफ के भर्ती होने के बाद उनके बड़े भाई अदील अहमद खान ने एसएसएसी के कैंप आफिस फोन कर घटना की जानकारी दी।

पुलिस घटना को पहले से संदिग्ध मान बैठी थी, इसलिए उसने बुरी तरह से घायल काशिफ के इलाज के बजाय मेडिकोलीगल कराने पर ज्यादा जोर दिया। वह स्टार हास्टिपल से जिला अस्पताल ले गई और वहां चिकित्सकों ने मेडिको लीगल कर दिया। इसके बाद पुलिस कहने लगी कि वह एक और मेडिको लीगत कराएगी और यह मेडिकोलीगल बीआरडी मेडिकल कालेज में होगा। परिजनों ने विरोध किया और कहा कि चिकित्सक तुरंत आपरेशन करने के लिए कह रहे हैं और इसलिए प्राथमिकता घायल की जान बचाने की है। इस पर सीओ गोरखनाथ ने पुलिस बल पर जबर्दस्ती करते हुए घायल को बीआरडी मेडिकल कालेज ले गए।

इस कारण घायल काशिफ के इलाज में तीन घंटे की देरी हुई। एक ऐसे व्यक्ति को जिसे तीन गोलियां लगी हों, एक गोली गले में फंसी हो, उसे मेडिको लीगल कराने के लिए 20 किलोमीटर तक चक्कर लगवाना, परिजनों से जोर जबर्दस्ती करना, घायल के जान के साथ आपराधिक रूप से खिलवाड़ करना था।

पुलिस की इस हरकत को रिटायर्ड पुलिस अधिकारी और अधिवक्ताओं ने भी कानून सम्मत नहीं माना है। दैनिक अखबार ‘ न्यूज फाक्स ’ में आज सेवानिवृत्त अपर पुलिस अधीक्षक परेश पाण्डेय और एडवोकेट अभिनव त्रिपाठी की मेडिको लीगत पर राय प्रकाशित हुई है। सेवानिवृत्त अपर पुलिस अधीक्षक परेश पांडेय ने कहा कि प्राइवेट प्रैक्टिशनर के बनाये गये मेडिकोलीगल पर सिर्फ सरकारी अस्पताल के चिकित्सक द्वारा काउंटर साइन कराना जरूरी होता है। यदि एक जगह से मेडिकोलीगल हो गया तो दूसरा मेडिकोलीगल कराना कोई जरूरी नहीं है। मरीज की जान बचाने के लिए उसे कहीं भी इलाज के लिए ले जाया जा सकता है।

एडवोकेट अभिनव त्रिपाठी ने कहा कि गंभीर रूप से घायल मरीज की जान बचाना पहले जरूरी होता है। मरीज को कहीं भी इलाज के लिए सरकारी हो या प्राइवेट प्रैक्टिशनर किसी के यहां भी ले जाया जा सकता है। प्राइवेट प्रैक्टिशनर का भी मेडिकोलीगल मान्य होता है बशर्ते उस पर सरकारी अस्पताल के चिकित्सक द्वारा काउंटर साइन किया गया हो। यदि पुलिस एक मेडिकोलीगल बनने के बाद या डॉक्टरों द्वारा मरीज की हालत गंभीर बताये जाने के बाद भी इलाज में बाधा बनी तो यह पूरी तरह से गलत है। इतनी जानकारी तो पुलिस एक्ट में भी है जो पुलिस को जानना चाहिए।

घायल काशिफ पहले इलाज के लिए जेपी हास्पिटल पहुंचा था

बदमाशों की गोली से घायल होने के बाद काशिफ जमील इलाज के लिए सबसे पहले जेपी हास्टिपल पहुंचा था। खून से लथपथ काशिफ जमील ने अस्पताल के चिकित्सकों और कर्मचारियों से इलाज की गुहार लगाई लेकिन उन्होंने पुलिस केस का हवाला देते हुए इलाज करने से मना कर दिया। इसके बाद काशिफ आटो कर स्टार हास्पिटल पहुंचा। घायल काशिफ का इलाज नहीं करने के बारे में जेपी अस्पताल प्रबंधन ने चुप्पी साध ली है। उसने मीडिया के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया।

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