जज्बा है परिवर्तन का जिन्दगी में इसलिए सफर जारी है!

न्यूज वाणी ब्यूरो/अफसाना खातून
मऊ। परिवर्तन आज फीर एक बार नर्तन कर रहा है। हर तरफ हाहाकार है। अस्पतालों में कारूणिक चित्कार है सीमा पर चैकसी है सैनिकों की ललकार हो। आम आदमी दहशत में है बन्द हो गया विदेशी व्यापार है। गरीब दो जून की रोटी के लिये तरस रहा है वहीं धनपशुओ की व्यवस्था सदा बहार है। करोना में सब कुछ तबाह हो गया। घर गृहस्थी का त्याग हो गया। शिक्षा दिक्षा का परित्याग हो गया। स्कूल कालेज बन्द है! घरों पर ही शिक्षा लेने को मजबूर हुनरमन्द है। करोना ने शिक्षा की तिजारत करने वालों की कमर तोङ दिया। यह बीसवीं सदी बरबादी की नई ईबारत इतिहास के पन्नो में जोङ दिया। महंगाई, बेरोजगारी, खेती बारी, काम सरकारी सब में दहशत पैदा कर दी है। करोना की महमारी मे हर तरफ कायम है लाचारी। प्रदेश का पुलिसीया तापमान इस समय उफान पर है। कल तक जिस गुर्गे की रकम पर भारी भरकम थाने की ब्यवस्था संचालित होती थी गरीब जनता न्याय के लिये रोती थी। पुलिस की मनमानी की शिकार गरीब जनता कुख्यात बदमास के चलते आहे भरती थी और उसी बदमास को पुलिस संरक्षण देती थी। आज पागलों की तरह जंगल झाङ में तलाश कर रही है। गदहे की सींग के तरह गायब हो गया है। इसमें भी किसी वर्दी वाले का सहभागिता काम कर रही होगी। विकास दुबे पुलिस के लिये विनाश दुबे बन गया है। इसका कारण भी था जिस पुलिस को विकास दुबे रूपयो से माला माल करता था वही पुलिस रात के अन्धेरे में दबिश ङालने चली गयी। भला किसको नागवार नहीं लगेगा। कोई भी आग बबूला हो जायेगा। साल में दर्जनो फर्जी मुकदमो में फसाकर वसूली करने वाली पुलिस पर दांव उल्टा पङ गया। गजब का परिवर्तन है! कभी बदमाश पुलिस के नाम पर बीहङ पकङ लेते थे। आज गांव में ही जबाब दे रहे है। ये तो होना ही था, एक दिन तो रोना ही था। वर्दी मे मन मर्जी करने की जो आदतबन गयी है! आज उसी का नतीजा कानपुर की घटना है। वर्ना विकास दुबे की क्या औकात पुलिस पर गोली चलवा देता, वर्दी लहुलूहान कर देता लेकिन इसके पीछे भी पुलिस का ही दिमाग काम कर रहा था। नमक हलाली करने वाले दबिस पार्टी के साथ साथ चल रहे थे। फील हाल मामला गम्भीर है। विकास दुबे की पुलिस के हाथ ही लिखी मौत तकदीर है। आज नहीं तो कल फैसला होना ही है। सबसे बङा आश्चर्य तो तब हो रहा है घटना कोअन्जाम देकर बेखौफ गायब हो गया विकास दुबे पन्द्रह सौ पुलिस के दरोगा खाक छान रहें है। बहादुर एसटीएफ के जवान जो साधारण से लेकर अपराधी तक का किङनैप कर हाँथ बांधकर एनकाउन्टर करने की महारत हासिल कर लिये है आज फेल हो गये। साथ रहने वाले नौकर चाकर ङ्राराईबर को खेतों मे दौङाकर बहादुरी का तगमा लेने के लिये मार रहें है लेकिन विकास दुबे की भनक तक उनके पास नही है। जब की चर्चा है विकास दुबे किसी सफेद पोश के पास दिल्ली में कही है।खैर इस बात पर बहस करने का कोई मतलब भी नही है। बस सवाल यह है कि क्या गद्दारो की पहचान कर पुलिस मोहकमा उनका काऊन्टर कर देगा। जो वर्दी को कलंकित कर दिये है विकास दुबे से ज्यादे खतरनाक कानून के रखवाले वर्दी की आङ मे अपराध करने वाले दरोगा है सिपाही है, सबसे पहले तो उन्ही का काम तमाम होना चाहिये। क्या विकास दुबे से अपराध इनका कम है। अगर ये राज की बात चन्द द सिक्को के ऐवज मे नही बताते तो क्या। इस तरह का नरसंहार हो पाता। आखिर विकास दुबे को ललकारने वाले। उसके भीतर के शैतान को जगाने वाला कौन है? जो आधे घन्टे तक बिकाश दूबे को पुलिस कार्वायी की सारी रिपोर्ट बता रहा था।यह इस पुलिस बिभाग की लचर ब्यवस्था का दुष्परिणाम है! जब तक सियासत में अपराधियों का महिमा मंङन होता रहेगा! शहादत की राह पर देश भक्तों का खून बहता रहेगा। बर्तमान सरकार मे भी पुरानी परम्परा कायम है! आज भी उसी रफ्तार में हो रहा जरायम है! बल्कि आकङे घटने के बजाय बढते ही जा रहे हैं।कहीक पीसीयस अफसर भरष्ट्चार की चपेट मे आकर आत्म हत्या कर रहें है! कही दरोगा सिपाही बे मौत मारे जा रहे हैं! तो कहीं लोकतन्त्र के चैथे स्तम्भ पत्रकारों की हत्या हो रही है! कही फर्जी मुकदमो मे फँसाये जा रहे है। गजब का बदलाव हर इन्सान सियासत का झेल रहा है घाव ! चारो तरफ भरष्ट सियासतदारो का दबाव! मौत का खेल इन्सानी बस्तीयो में दोनो तरफ से हो रहा है! कहीं प्राकृतिक आपदा है! तो कहीं करोना की बिपदा है! हर तरफ माहौल बन गया गम जदा है। वतन की राह पर शहीद होने वाले रण बाकुरो के परिवार को सरकार चाहे जितना भी सहयोग कर ले लेकीन जो दर्द जमाने ने दिया है वह उस परिवार को बराबर टिसता रहेगा! जब तक इस धरती पर गद्दार पलते रहेंगे! इन्सानियत चित्कार करती रहेगी! मानवता लहु लुहान होती रहेगी। शराफत तार तार होती रहेगी औरअपराधी रक्त बीज के तरह बढते रहेगे? जो लोग चले गये वो लोग और थे का फंसाना जमाना सुनाता रहेगा! वक्त बदल जायेगा गद्दारों की गाथा जब जब इस तरह की घटना होगी याद आता रहेगा! आखिर इस सरकार की ब्यवस्था मे इतना लोच क्यो! चाहे जितने भी इस सरकार के बिकाश और बहादुरी के कशीदे पढें जाय! वास्तविकता के धरातल पर सब हवा हवाई है। लोकतन्त्र के समुद्र में अन्दर ही अन्दर हलचल है!सब कुछ बदल रहा पल पल है ! अन्दरूनी तुफानी लहरें चल रही है!लेकीन उपर से शान्त दिख रहा है! जिस दिन लोकतन्त्र के समुद्र में ज्वार भाटा उठा दूर तक सुनामी की शक्ल अख्तियार करती बदलाव की लहरें बदलाव की इबारत तहरीर कर जायेगी !।आम आदमी तबाह है! गरीब आह भर रहा है! महंगाई मुस्करा रही है! भरष्टाचार की सुनामी चल रही है!अफसरशाही उफान पर है!लूट खसोट चरम पर है।लेकीन इसका कोई असर नहीं इस सरकार बेशरम पर है! हिटलर शाही !नादीर शाही! का बोलबाला है! जो लूट रहा है वही लोकतन्त्र का रखवाला है। भला हो इस कोरोना का जिसने सबकी औकात को बता दिया है! सबको एक ही घाट पर पानी पिला दिया है ! जिन्दगी की जंग लङती मानवता भले बिनाश के मुहाने पर खङी है फीर भी मायाबी दुनियाँ में वही हो रहा है जो पहला से होता आया है! न कुछ बदला है! न बदलने के आसार है! चाहे कितना भी ढपोरशंखी बयान कर रही सरकार है। गमो की स्याह चादर मे लिपटी ब्यवस्था में आस्था घायल है! बस देखते जाईये इफ्तदाये इश्क है रोता है क्या! आगे आगे देख अभी होता है क्या?

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