पीडिता के पिता को जेल भिजवाने में था भाजपा विधायक कुलदीप सिंह हाथ

लखनऊ। उन्नाव कांड में पीडिघ्त किशोरी के पिता को फर्जी तरीके से तमंचे की बरामदगी दिखाकर जेल भेजने के षड्यंत्र के सूत्रधार भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ही थे। सीबीआइ जांच में यही तथ्य सामने आए हैं। विधायक सेंगर किशोरी के पिता की पिटाई से लेकर उनके खिलाफ माखी थाने में मुकदमा दर्ज कराए जाने के दौरान विधायक फोन पर सक्रिय थे। विधायक सेंगर ने उन्नाव की तत्कालीन एसपी पुष्पांजलि देवी से लेकर तत्कालीन एसओ माखी अशोक सिंह सहित अन्य को 20 से अधिक फोन कॉल की थी।
सीबीआइ जांच में सामने आया कि विधायक को पीडिघ्त किशोरी के पिता की पिटाई के दौरान की उसके गुर्गों ने मौके से फोन कर पूरी घटना की जानकारी दी थी। इसके बाद विधायक सेंगर ने पहला फोन सीधे तत्कालीन एसपी उन्नाव को किया था। इसके बाद अपने गुर्गों से बात कर घटना की जानकारी लेते रहे और इसी बीच मौके पर गए दारोगा से भी सीधे बात कर उसे उल्टी कार्रवाई के निर्देश दिए। विधायक ने तत्कालीन एसओ माखी से कई बार फोन पर बात की और पीडिघ्ता के पिता को तमंचे की बरामदगी दिखाकर जेल भेजे जाने का दबाव बनाया। पुलिस ने भी वही किया जो विधायक सेंगर की मर्जी थी। पीडिघ्त पक्ष की तहरीर को दरकिनार कर पुलिस ने पीडिघ्ता के घायल पिता को जेल भेजा। सीबीआइ ने माना कि बिना विधायक की मर्जी के बिना षड्यंत्र संभव नहीं था। यही वजह है कि केस में सीबीआइ ने विधायक को आरोपित बना चार्जशीट दाखिल की है।आरोपित उन्नाव विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और पीडिघ्ता के पिता की हत्या में आरोपित उनके भाई अतुल सिंह सेंगर के शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने पर प्रशासन गंभीर नहीं है। सीबीआइ ने बाकायदा इसके लिए प्रशासन को संस्तुति पत्र तक भी भेजा था। सीबीआइ की सिफारिश के बाद शुरू निरस्तीकरण की प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं की गई। सारी औपचारिकता हो जाने के बाद भी करीब एक माह से प्रकिया लंबित है। पीडिघ्ता का परिवार भी लगातार शस्त्र लाइसेंस निरस्त करने की मांग कर रहा है। डीएम देवेंद्र कुमार पांडेय ने कहा कि हाल ही में पदभार संभालने के कारण अभी तक मामला जानकारी में नहीं था। शस्त्र लाइसेंस के निरस्तीकरण की प्रक्रिया किस स्तर पर है, इसकी जांच कराने के बाद जल्द से जल्द निस्तारण किया जाएगा।पाक्सो आरोपित भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर के खिलाफ सीबीआइ ने चार्जशीट दाखिल कर दी है लेकिन प्रशासन की मेहरबानी अभी भी सत्ताधारी विधायक पर लगातार बनी हुई है। इससे कयास भी लगाए जा रहे हैं कि समर्थकों की तरह ही प्रशासन भी विधायक को क्लीन चिट मिलने की उम्मीद से ही उनके तीनों शस्त्र के लाइसेंस निरस्त करने की प्रक्रिया को टालने में लगा हुआ है जबकि यह काम अधिकतम एक सप्ताह में पूरा हो सकता है। विभागीय सूत्रों के मुताबिक विधायक के शस्त्र लाइसेंस की पत्रावली पुलिस व प्रशासन की अन्य रिपोर्ट आदि लगने के बाद डीएम न्यायालय में लंबित है। सवाल उठता है कि जो प्रक्रिया गिरफ्तारी के साथ पूरी हो जानी चाहिए थी, अब तक क्यों पूरी नहीं हुई।

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