पंजाब में ड्रग एडिक्ट पति और बेटा मर न जाएं, इसलिए जेलों में मां, पत्नी और रिश्तेदार नशा पहुंचा रहे

चंडीगढ़. नशे की लत में पड़कर राज्य के कई युवा नशेड़ी और तस्कर बनकर जेलों में हैं। वे जेल में नशे की तलब से न मरें, इसके लिए उनकी मां, पत्नी और रिश्तेदार जेलों में नशा पहुंचाने को मजबूर हो रहे हैं। जेलों में नशे के कारण बढ़ती आत्महत्याओं और मौतों के बाद भास्कर ने प्रदेशभर में जेलों में नशा सप्लाई करते पकड़े गए लोगों का आंकड़ा जुटाया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।

3 साल में जेल में नशा सप्लाई के 101 केस दर्ज हुए। इनमें आरोपियों को सजा भी हो चुकी है। ये हालात इसलिए हैं, क्योंकि प्रदेश की पूर्व और मौजूदा सरकारों ने नशे के खिलाफ अभियान तो छेड़े, लेकिन उनमें कोई बड़ा तस्कर नहीं, बल्कि नशेड़ियों को ही जेल में डाल दिया गया। जबकि इन्हें नशामुक्ति व पुर्नवास की जरूरत थी।

फरीदकोट जेल में 600 नशेड़ी

सूबे की 24 जेलों में 3 मॉडर्न जेलों में एक फरीदकोट की है। जब यहां हालात जाने तो पता चला यहां 1850 कैदी हैं। इनमें 600 नशेड़ी हैं, जिन्हें जेल में चलते ओट सेंटर से बुप्रिनोरफिन टेबलेट रोजाना दी जाती है ताकि वे शांत रहें। स्थाई मनोचिकित्सक न होने से यही उपचार का तरीका है। वहीं, 270 कैदी एचआईवी पॉजिटिव हैं। इनमें भी कई नशेड़ी हैं। 2019 में इस जेल में 8 कैदियों ने दम तोड़ा व 1 ने आत्महत्या की। 3 माह पहले अमृतसर जेल से यहां 200 नशेड़ी कैदी शिफ्ट हुए। इससे यह जेल सबसे संवेदनशील हो चुकी है।

यही हालात अमृतसर, फिरोजपुर, कपूरथला जेल के भी हैं। वहीं, 270 कैदी एचआईवी पॉजिटिव हैं। इनमें भी कई नशेड़ी हैं। 2019 में इस जेल में 8 कैदियों ने दम तोड़ा और 1 ने खुदकुशी की। 3 महीने पहले अमृतसर जेल से यहां 200 नशेड़ी कैदी शिफ्ट हुए। इससे यह जेल सबसे संवेदनशील हो चुकी है। यही हालात अमृतसर, फिरोजपुर, कपूरथला जेल के भी हैं।

सिस्टम भी जिम्मेदार

प्रदेश की 24 जेलों में से 9 में नशामुक्ति केंद्र हैं, जिनमें से मात्र 3 ही फंक्शनल हैं, बाकी में स्टाफ नहीं है। यहां साइकोलॉजिस्ट नहीं है, मनोचिकित्सक हफ्ते में दो दिन ही बैठते हैं। हालांकि, हाइकोर्ट के निर्देश के बाद नशामुक्ति केंद्र की बजाय 13 जेलों में ओट क्लीनिक खोल दिए गए, यहां कैदियों को बुप्रिनोरफिन की टेबलेट देकर शांत तो रखा जाता है, मगर यह पर्याप्त इलाज नहीं है।

सरकारों के ये हाल

  • 19 मई 2014 को शिअद सरकार ने नशा मुक्ति अभियान चलाया। तस्करों की बजाय ज्यादातर नशेड़ी पकड़े। 3 महीने में ढाई हजार युवाओं को एनडीपीएस एक्ट के तहत नामजद किया गया।
  • 2014 में ही एनसीआरबी की प्रिजन स्टैटिक्स रिपोर्ट आई तो पता चला कि जेलों में 230 कैदियों ने दम तोड़ा, जिनमें से 88 नशे के केसों से संबंधित थे।
  • 2015 में भी यही प्रक्रिया जारी रही और पूरे साल में 178 कैदियों व हवालातियों की मौत हुई, जिनमें मरने वाले 86 नशे के केसों से संबंधित थे।
  • 2017 में कांग्रेस सरकार ने नशे के खिलाफ अभियान तो छेड़ा, मगर नशेड़ियों के लिए जेल में नशे के उपचार के लिए पर्याप्त प्रबंध नहीं कर पाए।

देश में सर्वाधिक सुसाइड पंजाब की जेलों में

नेशनल क्राइम रिकाॅर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के प्रिजन स्टैटिक्स इंडिया सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 3 साल में देश की जेलों में सर्वाधिक आत्महत्याएं और एचआईवी से मौतें पंजाब की जेलों में हुई हैं। यह आंकड़ा कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा है। वहीं, जेलों में सामान्य मौतों में भी पंजाब देश में पिछले 3 साल में दूसरे व तीसरे नंबर पर रहा।

पंजाब की जेलों में सामान्य और असामान्य तौर पर मरने वाले कैदी और हवालातियों में ज्यादातर एनडीपीएस एक्ट यानी नशे से संबंधित थे। पंजाब जेल प्रबंधन ने जेलों में बढ़ रहीं आत्महत्याओं और मौत के रुझान की माइक्रो स्टडी करने के लिए आईसीपी (इंस्टीट्यूट ऑफ क्रेक्शनल एडमिनिस्ट्रेशन) को पत्र भी लिखा है।
परिवारों की बर्बादी के 101 मामले

नशे में फंसे परिवारों की बर्बादी का हाल जानने के लिए जब भास्कर ने जेलों का रिकॉर्ड खंगाला तो 101 केस सामने आए। इनमें नशे के केसों में बंद कैदियों और हवालातियों को नशा पहुंचाने के चक्कर में उनकी मां, पत्नी और भाई जेल में हैं।

Leave A Reply

Your email address will not be published.