सीरिया में अपनी फौज बनाए रखने के पीछे अमेरिका के हैं तीन खास मकसद

नई दिल्‍ली । सीरिया पर हुए ताजा हमले ने वहां पर शांति स्‍थापना की उम्‍मीद पर पानी फेर दिया है। अब अमेरिका ने सीरिया में अपनी फौज की स्थिति को यथावत रखने का फैसला करते हुए करीब दो सप्‍ताह पहले लिए फैसले को पूरी तरह से पलट दिया है। यूएन में अमेरिकी राजदूत निक्‍की हेली के मुताबिक सीरिया में अमेरिकी फौज की मौजूदगी पर फ्रांस के राष्‍ट्रपति इमैन्‍युल मैक्रान ने भी अपनी सहमति जताई है। इसके अलावा अमेरिका सीरिया समेत रूस के खिलाफ नए प्रतिबंध भी लगाने वाला है, जिसकी घोषणा जल्‍द ही कर दी जाएगी। यह प्रतिबंध रूस के सीरिया को लगातार समर्थन देने के खिलाफ लगाए जाने वाले हैं।

पहले फौज को वापस बुलाने का हुआ था ऐलान

गौरतलब है कि 4 अप्रैल को अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने ऐलान किया था कि वह अमेरिकी फौज को सीरिया से वापस बुला लेंगे। हालांकि इसी दौरान उन्‍होंने यह भी कहा था कि सीरिया में जब तक उनका मकसद पूरा नहीं हो जाता और वहां मौजूद आएस आतंकियों को खत्‍म नहीं कर दिया जाता है तब तक करीब दो हजार जवान वहां पर तैनात रहेंगे। ताजा फैसले की जानकारी देते हुए यूएन में अमेरिकी राजदूत निक्‍की हेली ने एक बार फिर से यह साफ कर दिया है कि अमेरिका का मकसद पूरा होने तक अब अमेरिकी फौज सीरिया में मौजूद रहेंगी। इसमें कोई कटौती नहीं की जाएगी।

रूस को अलग-थलग करने में यूएस कामयाब

सीरिया पर ताजा हमले के बाद बदले माहौल में रूस को अलग-थलग करने की भी पूरी कोशिश अमेरिका ने की है, जिसमें वह कामयाब भी रहा है। यूएन में सीरियाई हमले के खिलाफ रूस के प्रस्‍ताव का गिरना अमेरिका के लिए एक बड़ी कामयाबी है। वहीं संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में यह भी साफ कर दिया गया है कि यदि सीरियाई राष्‍ट्रपति बशर अल असद नहीं मानें तो इस तरह के हमले आगे भी किए जाएंगे। रूस के लिए यह दोनों ही बातें किसी बड़ी हार की तरह हैं। मौजूदा स्थिति में अमेरिका और रूस के बीच शीतयुद्ध का दूसरा दौर शुरू हो चुका है।

अमेरिका के तीन मकसद 

अमेरिका की तरफ से यूएन में उसके तीन मकसद भी बेहद साफ जाहिर कर दिए गए हैं। इसमें पहला मकसद सीरिया में केमिकल वैपंस का आगे इस्‍तेमाल न होना, दूसरा आतंकी संगठन आईएस का खात्‍मा और तीसरा ईरान पर नजर रखना है। हेली ने यह भी कहा है कि इन मकसद के पूरा होने के बाद सीरिया से अमेरिकी फौज वापस लौट जाएंगी। इस बातचीत के दौरान हेली का ये भी कहना था कि सीरिया अमे‍रिका के साथ वन-टू-वन टॉक के लिए पहले ही इंकार कर चुका है। उनका कहना था कि सीरिया बातचीत करना ही नहीं चाहता है। यह बातें उन्‍होंने एक चैनल से हुई वार्ता के दौरान कही हैं।

केमिकल अटैक के बाद बदले हालात

आपको बता दें कि सीरिया में हुए कथित केमिकल अटैक और इसके बाद हुए संयुक्‍त हमले से पूरी दुनिया में तनाव पैदा हो गया है। इसके चलते रूस के अमेरिका और उसके समर्थित देशों से संबंध जो पहले से ही काफी नाजुक हालात में थे अब और ज्‍यादा खराब हो गए हैं। खासतौर पर ब्रिटेन और फ्रांस के साथ। ताजा हमले में अमेरिका का साथ फ्रांस और ब्रिटेन ने ही दिया है। तीनों ने मिलकर सीरिया के दमिश्‍क और होम्‍स में करीब 103 मिसाइलें दागी थीं। इस हमले में सीरिया के कई महत्वपूर्ण ठिकानों को निशाना बनाया गया था। इस बीच सीरिया की तरफ से यह भी कहा जा रहा है कि यदि उसके पास केमिकल वैपंस होते तो इस हमले में कुछ लीकेज जरूर होती लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इसका अर्थ यही है कि सीरिया के पास केमिकल वैपंस नहीं हैं, जिनका जिक्र लगातार किया जा रहा है।

केमिकल वैपंस का इस्‍तेमाल

गौरतलब है कि वर्ष 2015 में कुर्द लड़ाकों ने दावा किया था कि इस्लामिक स्टेट ने उनके खिलाफ उत्तरी इराक में रासायनिक हथियार का इस्तेमाल किया था। वर्ष 1997 में रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए हुए समझौते में यह तय हुआ था कि लड़ाई में क्लोरीन गैस का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अमेरिका ने इराक पर केमिकल वेपंस रखने का आरोप लगाते हुए साल 2003 में इराक पर हमला कर दिया था। 30 दिसंबर 2006 को इराकी राष्‍ट्रपति सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा दे दी गई।

Leave A Reply

Your email address will not be published.