नई दिल्ली । पिछले कुछ साल में फेक न्यूज को लेकर दुनियाभर में बवाल मचा है। खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार फेक न्यूज शब्द का इस्तेमाल करते हैं। ऐसा भी नहीं है कि फेक न्यूज जैसा शब्द सिर्फ पश्चिमी जगत के मीडिया में ही हो। भारत में भी इसका इस्तेमाल खूब धड़ल्ले से होता है। दरअसल फेक न्यूज एक बड़ी समस्या है। जिसके तहत किसी की छवि को धूमिल करने या अफवाह फैलाने के लिए झूठी खबर पब्लिश की जाती है। ऐसी झूठी खबरों पर रोक लगाने की पहल दुनियाभर में चल रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। पहले जानते हैं फेक न्यूज क्या है…
क्या है फेक न्यूज
अगर आप मीडिया इंडस्ट्री से हैं या नजदीक से जुड़े हैं तो आप जानते ही होंगे कि फेक न्यूज क्या है। यह एक तरह की पीत पत्रकारिता (येलो जर्नलिज्म) है। इसके तहत किसी के पक्ष में प्रचार करना व झूठी खबर फैलाने जैसे कृत्य आते हैं। किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को नुकसान पहुंचाने या लोगों को उसके खिलाफ झूठी खबर के जरिए भड़काने को कोशिश फेक न्यूज है। सनसनीखेज और झूठी खबरों, बनावटी हेडलाइन के जरिए अपनी रीडरशिप और ऑनलाइन शेयरिंग बढ़ाकर क्लिक रेवेन्यू बढ़ाना भी फेक न्यूज की श्रेणी में आते हैं। फेक न्यूज किसी भी सटायर (व्यंग) या पैरोडी से अलग है। क्योंकि इनका मकसद अपने पाठकों का मनोरंजन करना होता है, जबकि फेक न्यूज का मकसद पाठक को बरगलाने का होता है।
पीएम ने दिशा-निर्देश वापस लेने की बात कही
दरअसल फेक न्यूज पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आईबी मिनिस्ट्री) ने सोमवार शाम पत्रकारों के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किए थे। इन दिशानिर्देशों के तहत फेक न्यूज का प्रकाशन करने पर पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही गई। इसके तहत उनकी मान्यता को निलंबित और रद करने तक के प्रावधान थे। मंत्रालय की ओर से जारी इन दिशा-निर्देशों के खिलाफ मीडिया में माहौल बिगड़ता कि इससे पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन दिशा-निर्देशों को वापस लेने की बात कही। उन्होंने मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह अपने दिशा-निर्देशों को वापस ले लें और इस मामले को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया पर ही छोड़ दिया जाए।
लोकतंत्र की हत्या का प्रयास
इससे पहले दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस मामले में कूद पड़ीं। शीला ने आईबी मंत्रालय के सोमवार के दिशा-निर्देशों पर सवाल उठाते हुए फेक न्यूज की परिभाषा पूछी। उन्होंने कहा, लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया पर प्रतिबंध लगाना लोकतंत्र की हत्या जैसा है। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, आज हम केवल ऐसी खबरें देखते हैं जो सरकार समर्थित हैं। भारत स्वतंत्र मीडिया में विश्वास रखता है और यह जारी रहना चाहिए।
क्या कहा गया था आईबी मंत्रालय की प्रेस रिलीज में
आईबी मंत्रालय ने सोमवार को जो प्रेस रिलीज जारी की थी, उसमें कहा गया कि प्रिंट व टेलीविजन मीडिया के लिए दो रेगुलेटरी संस्थाएं हैं- प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA), यह संस्थाएं तय करेंगी कि खबर फेक है या नहीं। दोनों को यह जांच 15 दिन में पूरी करनी होगी। एक बार शिकायत दर्ज कर लिए जाने के बाद आरोपी पत्रकार की मान्यता जांच के दौरान भी निलंबित रहेगी। दोनों एजेंसियों द्वारा फेक न्यूज की पुष्टि किए जाने के बाद पहली गलती पर छह माह के लिए मान्यता रद की जाएगी, दूसरी बार में एक साल के लिए मान्यता रद हो जाएगी और तीसरी बार में स्थायी रूप से पत्रकार की मान्यता रद हो सकती है।
डिजिटल मीडिया में ज्यादा फेक न्यूज
हालांकि मंत्रालय ने जो दिशा-निर्देश जारी किए थे उसमें डिजिटल मीडिया की बात नहीं कही गई थी। लेकिन इससे पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी कह चुकी हैं कि सरकार डिजिटल मीडिया के लिए भी दिशा-निर्देश जारी करेगी। फेक न्यूज पर रोकथाम लगाने की कोशिशें वैश्विक स्तर पर जारी हैं। खासतौर पर डिजिटल मीडिया में फेक न्यूज को लेकर तमाम सरकारें अलर्ट हैं। माना जाता है कि 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस ने फेसबुक पर फेक न्यूज का इस्तेमाल कर लोगों का मत बदलने की कोशिश की थी। ऐसा ही कुछ भारत में भी होने का खतरा है। जो आने वाले दिनों में कई राज्यों व केंद्र सरकार के लिए होने वाले चुनावों पर असर डाल सकता है।
क्या कहते हैं मीडिया से जुड़े लोग
न्यूज24 ब्रॉडकास्ट इंडिया लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर और चेयरपर्सन अनुराधा प्रसाद फेक न्यूज पर रोकथाम लगाने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के इस कदम को सही मानती हैं। उन्होंने कहा, फेक न्यूज के कारण मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं और मीडिया में सभी इस कदम का स्वागत करेंगे। उधर इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनंत गोयंका का कहना है कि न्यूज इंडस्ट्री में हाइपर कॉमर्सलाइजेशन के चलते फेक न्यूज का चलन बढ़ा है। उन्होंने कहा, ज्यादातर फेक न्यूज ऑनलाइन माध्यम से आ रहे हैं और सरकार के दिशा-निर्देश प्रिंट और टीवी माध्यम के लिए जारी हुए हैं। कहा कि किसी भी सरकार को प्रेस की आजादी में दखल नहीं देना चाहिए, बल्कि इंडस्ट्री को खुद ही फेक न्यूज से पार पाना चाहिए। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यही बात कही है।
मलेशिया ने पास किया कानून
मलेशिया ने सोमवार 2 अप्रैल को ही एक कानून पास किया है। इस कानून के तहत कोई भी व्यक्ति या डिजिटल मीडिया जो सोशल मीडिया पर फेक न्यूज का प्रसार करेगा उसे 1 लाख 23 हजार डॉलर (करीब 80 लाख रुपये) का जुर्माना और 6 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। प्रधानमंत्री नजीब रजाक के नेतृत्व में एंटी फेक न्यूज बिल संसद में पास हुआ, हालांकि विपक्ष ने इसका विरोध किया है। ड्राफ्ट बिल में तो इसके लिए 10 साल की सजा का प्रावधान था, लेकिन सरकार ने इसे 6 साल कर दिया।