– विधायक नागेन्द्र सिंह के करीबी ठेकेदारों को जबरन काम दिलाने का दबाव, ग्राम प्रधानों मे आक्रोश
– गावों में करवा दी गई पार्टी बंदी, हर विरादरी मे दो फाड़
फर्रुखाबाद: कमालगंज ब्लॉक में मनरेगा योजना के नाम पर संगठित भ्रष्टाचार का एक बड़ा मामला सामने आया है, जहां ग्राम पंचायतों में कार्य कराने वाले प्रधानों से जबरन कमीशन वसूला जा रहा है। कई ग्राम प्रधानों ने आरोप लगाया है कि ब्लॉक स्तर के कर्मचारी उनसे खुलेआम रिश्वत की मांग करते हैं, और मना करने पर विकास कार्यों को रोकने की धमकी देते हैं।
प्रधानों ने बताया कि मनरेगा कार्यों की स्वीकृति पर 2 प्रतिशत, एमआईएस फीडिंग पर 2 प्रतिशत और कार्य पूर्णता के बाद अतिरिक्त पैसा लिया जाता है। यही नहीं, नए कार्यों की मांग फीड करानी हो तो उसकी भी अलग से ‘फीस’ तय होती है। इस पूरी व्यवस्था में नियम-कानून से अधिक महत्व रिश्वत को दिया जा रहा है।
प्रधानों का कहना है कि एक कर्मचारी खुलेआम एक जनप्रतिनिधि और मंत्री का नाम लेकर कहता है कि “हिस्सा ऊपर तक जाता है, इसलिए सवाल मत करो।” इससे प्रधानों में भय और असहायता का माहौल है। इस भ्रष्टाचार से त्रस्त होकर कुछ प्रधानों ने एंटी करप्शन टीम से संपर्क किया है। सूत्रों के मुताबिक, एक कर्मचारी की गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है और जल्द ही बड़ी कार्रवाई की संभावना जताई जा रही है।
नाम न छापने की शर्त पर कई ग्राम प्रधानों ने यह भी आरोप लगाया है कि उन्हें जबरन कुछ ठेकेदारों को काम देने के लिए कहा जा रहा है, जो भोजपुर विधायक नागेंद्र सिंह राठौर के करीबी बताए जाते हैं। इससे पंचायतों में कार्यों का चयन लोकतांत्रिक प्रक्रिया से हटकर राजनीतिक दबाव में किया जा रहा है।
40% से ज्यादा पंचायतों में विकास कार्य विधायक समर्थित ठेकेदारों को दिलवाए गए।
17 ग्राम पंचायतों में भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच आपसी संघर्ष की स्थिति, 12 से ज्यादा प्रधानों ने सीधा हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया।
ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि शीलचंद्र राजपूत ने कहा,“यदि प्रधान साथ चलने को तैयार हैं तो हम जिलाधिकारी से मिलकर इस भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करेंगे। प्रधानों का शोषण किसी कीमत पर नहीं होने दिया जाएगा।”
पार्टीबंदी से बंटे गांव, विकास हुआ ठप
सूत्रों का कहना है कि कई गांवों में भाजपा कार्यकर्ताओं को आपस में लड़ाया गया, जिससे विकास कार्य बाधित हुए। पंचायतों में योजनाएं फाइलों में ही दब गईं और स्थानीय स्तर पर गुटबाजी ने प्रशासनिक कार्यों को पंगु बना दिया।
ग्राम प्रधानों और आम जनता में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इतने लंबे समय से यह भ्रष्टाचार कैसे फलता-फूलता रहा? क्या प्रशासन ने जानबूझकर आंखें मूंद रखी थीं या किसी उच्चस्तरीय संरक्षण में यह वसूली चक्र संचालित हो रहा था?
अब सबकी निगाहें जिला प्रशासन और एंटी करप्शन टीम पर हैं कि क्या वे इस मामले में सख्त कार्रवाई करेंगे या यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह फाइलों में दबा दिया जाएगा?
यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भ्रष्टाचार पूरे जिले में फैल सकता है। जरूरत है पारदर्शिता, ईमानदार जांच और कड़ी सजा की — तभी ग्राम पंचायतों की साख और ग्रामीण विकास की उम्मीदें बचाई जा सकती हैं।