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धूल-रेत बन रही वैश्विक आपदा: हर साल 200 करोड़ टन धूल से 380 करोड़ लोग प्रभावित, 150 देश चपेट में

विश्व मौसम विज्ञान संगठन : धूल और रेत से उठता संकट अब किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित नहीं रहा। हर साल वातावरण में प्रवेश कर रही 200 करोड़ टन धूल से 380 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं, जिनमें से कई वर्षों तक इसके संपर्क में रहे। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की ताजा रिपोर्ट इस वैश्विक चुनौती की भयावहता उजागर करती है। डब्ल्यूएमओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में रेत और धूल भरी आंधियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जिससे लगभग 150 देशों के 33 करोड़ से अधिक लोग सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं। हर साल करीब 200 करोड़ टन धूल वातावरण में घुल रही है जिसका कुल भार मिस्र के गीजा स्थित 307 पिरामिडों के बराबर है। यह धूल हवा, स्वास्थ्य, कृषि और वैश्विक अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है। यह रिपोर्ट 12 जुलाई को ‘रेत और धूल के तूफानों से मुकाबले के अंतरराष्ट्रीय दिवस’ के अवसर पर जारी की गई। इस दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 में की थी, ताकि इन तूफानों के खतरनाक असर को कम करने और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देने के प्रयासों को मजबूती मिल सके। 2024 में धूल की औसत मात्रा भले ही 2023 के मुकाबले थोड़ी कम रही हो, लेकिन क्षेत्रीय असर अधिक घातक रहा। रिपोर्ट के मुताबिक वातावरण में पहुंचने वाली 80 फीसदी से ज्यादा धूल उत्तर अफ्रीका और मध्य पूर्व के रेगिस्तानों से आती है, जो हवा के जरिये हजारों किलोमीटर दूर तक फैलती है।

डब्ल्यूएमओ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के साझा आंकड़ों के अनुसार:  2018 से 2022 के बीच 380 करोड़ लोग धूल के खतरनाक स्तर के संपर्क में आए  जो 2003-2007 की तुलना में 31 फीसदी अधिक है। कुछ क्षेत्रों में लोग पांच वर्षों में 1,600 से अधिक दिनों तक धूल के प्रभाव में रहे। लैंसेट की रिपोर्ट बताती है कि यह समस्या केवल अस्थायी नहीं, बल्कि दीर्घकालिक खतरा बन चुकी है। एक अमेरिकी अध्ययन के अनुसार वर्ष 2017 में सिर्फ अमेरिका में धूल और हवा से हुए कटाव से 154 अरब डॉलर का नुकसान हुआ, जो 1995 के मुकाबले चार गुना अधिक था। 2024 में आए प्रमुख धूल तूफानों में स्पेन के कैनरी द्वीप, पूर्वी एशिया के 14 तूफान और मंगोलिया से उठे तूफान शामिल रहे, जिनसे बीजिंग में पीएम10 का स्तर 1,000 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक पहुंच गया और दृश्यता घटकर मात्र एक किलोमीटर रह गई।

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