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मवई बुजुर्ग गांव के प्राचीन गोसाईं तालाब में विसर्जन की गई कजलियां

 

बांदा। रक्षाबंधन: प्यार, सुरक्षा और वचन का प्रतीक भाई बहन के अटूट प्रेम और विश्वास को दर्शाने वाले पवित्र त्योहार रक्षाबंधन विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। आपको बताते चलें कि शहर मुख्यालय जनपद बांदा से सटे हुए ग्राम पंचायत मवई बुजुर्ग में सर्वप्रथम कजलियां विसर्जन के लिए सज-धज कर माताएं बहनें अपने सिर पर कजलियां रख कर गाजे बाजे के साथ गांव के प्राचीन गोसाईं तालाब में कजलियां विसर्जन करती हैं तत्पश्चात घर आकर सभी बहनें अपने अपने भाइयों की कलाइयों में विधिवत रक्षासूत्र बांधने की रश्म अदा करतीं हैं , और भाई अपनी अपनी बहनों को उपहार देकर आजीवन रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षाबंधन पर्व की शुरुआत के बारे में कई कथाएं और ऐतिहासिक तथ्य हैं। यह पर्व भाई-बहन के पवित्र बंधन का जश्न मनाता है, इस त्योहार के पावन अवसर पर भाई बहनों का अटूट प्रेम और विश्वास छलकता है। रक्षाबंधन की उत्पत्ति रक्षाबंधन की उत्पत्ति के बारे में एक प्रसिद्ध कथा महाभारत से आती है, जिसमें द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई पर अपनी साड़ी का एक टुकड़ा बांधा था, जब उन्होंने खुद को घायल कर लिया था। बदले में, कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा करने का वचन दिया। ऐतिहासिक प्रमाण एक अन्य ऐतिहासिक कथा रानी कर्णावती और मुगल सम्राट हुमायूं से जुड़ी है। जब रानी कर्णावती को अपने राज्य पर हमले का खतरा था, तो उन्होंने हुमायूं को राखी भेजकर उनकी रक्षा की गुहार लगाई। हुमायूं ने उनकी रक्षा की और उनके राज्य को बचाया। प्राचीन काल रक्षाबंधन का इतिहास 6000 वर्ष पूर्व से शुरू होता है, जब आर्यों ने सिंधु घाटी सभ्यता का निर्माण किया था। उस समय यह पर्व फसल कटाई के मौसम में मनाया जाता था। समय के साथ, यह पर्व भाई-बहन के प्यार और रक्षा के बंधन का प्रतीक बन गया। आधुनिक समय आजकल, रक्षाबंधन का पर्व न केवल भाई-बहन के बीच मनाया जाता है, बल्कि दोस्तों और पड़ोसियों के बीच भी मनाया जाता है। यह पर्व पारिवारिक मूल्यों और सामाजिक बंधनों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है इस मौके पर गांव के सैकड़ो माताओं बहनों के साथ बच्चों की उपस्थित रहीं

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