– गरीब बच्चों के लिए बनी योजना में 1.5 लाख से नीचे की फर्जी आय प्रमाण पत्र से हो रहा बड़ा घोटाला, केंद्र सरकार ने लिया संज्ञान
– अब तक के लाभान्वित लोगों के आय प्रमाण पत्रों की होगी जांच : मंत्री संदीप सिंह
लखनऊ: गरीब बच्चों को शिक्षा का हक दिलाने के लिए शुरू की गई केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘राइट टू एजुकेशन (RTE)’ उत्तर प्रदेश में मजाक बनकर रह गई है। इस योजना के तहत गरीब परिवारों के बच्चों को निजी स्कूलों में निःशुल्क दाखिला मिलना था, लेकिन अब इस पर सफेदपोशों और दलालों ने कब्जा कर लिया है। योजना का लाभ असली हकदारों की जगह फर्जी आय प्रमाण पत्र बनवाने वाले संपन्न परिवार उठा रहे हैं। बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार संदीप सिंह ने जानकारी जान दंग होते हुए कहा कि समान शिक्षा व्यवस्था हमारी सरकार की प्राथमिकता है,ऐसे प्रमाण पत्रों की जांच होगी।
2009 में लागू हुए RTE एक्ट के तहत, हर निजी स्कूल को अपनी कुल सीटों का 25% गरीब बच्चों के लिए आरक्षित रखना होता है। इस योजना में आवेदन के लिए माता-पिता की सालाना आय 1.5 लाख रुपये से कम दिखानी होती है। राज्य सरकार की वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन प्रणाली है, जिसे पारदर्शिता का माध्यम बताया गया था। लेकिन अब यही सिस्टम भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा जरिया बन गया है।
राजस्व विभाग के कर्मचारियों की मिलीभगत से हजारों परिवारों को 1.5 लाख से कम की आय प्रमाण पत्र उपलब्ध कराए गए, जबकि उनकी वास्तविक आय इससे कई गुना अधिक है। दस्तावेजों के सत्यापन की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों के पास थी, उन्होंने या तो आंख मूंदी या पैसे लेकर फर्जी दस्तावेजों पर मुहर लगा दी।
एक अनुमान के मुताबिक, अकेले लखनऊ, कानपुर, आगरा, प्रयागराज, वाराणसी और मेरठ जैसे बड़े शहरों में हर साल 20,000 से ज्यादा फर्जी आवेदन RTE पोर्टल पर स्वीकार किए जा रहे हैं। इन फर्जी प्रमाण पत्रों को स्कूलों द्वारा बिना वेरिफिकेशन के स्वीकार कर लिया गया। कई स्कूलों ने तो जानबूझकर अमीर घरों के बच्चों को दाखिला दिया ताकि उन्हें बेहतर प्रदर्शन और डोनेशन का लाभ मिल सके। RTE की फीस प्रतिपूर्ति की प्रक्रिया को भी इन्हीं बच्चों पर दिखाकर स्कूल सरकारी राशि भी डकार रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, इस पूरे खेल में प्रदेश के सभी जिलों के जिला शिक्षा अधिकारी (बीएसए), जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) और तहसील स्तरीय राजस्व कर्मचारी( लेखपाल,कानून गो, तहसीलदार) शामिल हैं। ये लोग दस्तावेज़ सत्यापन के नाम पर मोटा पैसा वसूलते हैं और फिर गलत पात्रता वाले बच्चों के अभिभावकों को योजना का लाभ दिलाते हैं। असली गरीब और जरूरतमंद परिवार आज भी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। कई बार तकनीकी कारणों या कागजों की कमी के नाम पर उनके आवेदन रद्द कर दिए जाते हैं, जबकि संपन्न वर्ग के आवेदन आसानी से स्वीकार हो जाते हैं।
एक जरूरतमंद जिनकी सालाना आय महज 70 हजार है, ने बताया, “तीन साल से हर बार आवेदन करती हूं, लेकिन कभी कागज पूरे नहीं होते, कभी सिस्टम फेल हो जाता है। अब तो समझ आ गया कि यह योजना सिर्फ नाम की है।”
योजना में बढ़ते फर्जीवाड़े को देखते हुए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से रिपोर्ट तलब की है। मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “हमारे पास लगातार शिकायतें आ रही थीं कि RTE की सीटों पर गलत बच्चों का एडमिशन हो रहा है। अब व्यापक स्तर पर जांच की जाएगी। दोषियों पर कार्रवाई होगी।”
1.2 लाख से अधिक आवेदन हर साल RTE पोर्टल पर आते हैं।
इनमें से लगभग 35% फर्जी आय प्रमाण पत्रों के आधार पर होते हैं।
हर साल लगभग 300 करोड़ रुपये सरकार निजी स्कूलों को प्रतिपूर्ति के रूप में देती है। इस राशि का एक बड़ा हिस्सा फर्जी लाभार्थियों और स्कूलों की मिलीभगत से डकारा जा रहा है।
शिक्षा सुधार के लिए सेवा निवृत डीएसपी वीर पाल भदौरिया का कहना है, “सरकार को तत्काल सभी आय प्रमाण पत्रों की जांच करानी चाहिए। जो फर्जी निकले, उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए और स्कूल की मान्यता भी रद्द हो।”
उत्तर प्रदेश में RTE एक्ट जरूरतमंदों के लिए एक उम्मीद थी, लेकिन सरकारी तंत्र की ढिलाई और निजी स्कूलों की लालच ने इस कानून को कागज़ी बना दिया है। अब जब केंद्र सरकार ने संज्ञान लिया है, तो देखना होगा कि क्या इस बड़े घोटाले पर कार्रवाई होती है या फिर यह भी एक और फाइल बनकर सरकारी अलमारियों में बंद हो जाएगी।