आर्मेनिया की नेशनल असेंबली (संसद) में मंगलवार को सत्तापक्ष और विपक्ष के सांसदों में जमकर मारपीट और गाली गलौच हुई। आर्मेनिया में पहले से ही तनावपूर्ण राजनीतिक माहौल इस घटना के बाद और गर्मा गया। इस मामले की शुरुआत तब हुई जब विपक्षी सांसद आर्तुर सर्गस्यान की संसदीय छूट (इम्युनिटी) खत्म करने और गिरफ्तारी को लेकर एक प्रस्ताव पर बहस हो रही थी। सत्ताधारी दल ने सर्गस्यान पर आपराधिक आरोपों का हवाला देकर उनकी संसदीय छूट खत्म कर गिरफ्तारी की मांग की। हालांकि, इन आरोपों की डिटेल नहीं दी गई। विपक्ष ने इस प्रस्ताव को बदले की भावना से प्रेरित और विपक्ष की आवाज कुचलने की कोशिश करार दिया। सत्र शुरू होने के बाद जल्द ही गाली-गलौज, धक्का-मुक्की और फिर हाथापाई शुरू हो गई। सांसद एक-दूसरे पर मुक्के चलाते और बोतलें फेंकते दिखाई दे रहे हैं। इसके बाद सिक्योरिटी गार्ड्स ने दखल देकर मामले को कंट्रोल किया।
अपनी स्पीच में सर्गस्यान ने कहा कि: “आर्मेनिया तानाशाही का गढ़ बन गया है, जहां सब कुछ पहले से तय, लिखित और मंजूर होता है। प्रधानमंत्री निकोल पशिनयान की सरकार विपक्षी नेताओं पर तख्तापलट की कोशिश का आरोप लगाकर कार्रवाई कर रही है।” इससे पहले सोमवार को पशिनयान ने कहा था कि वह आर्मेनियाई अपोस्टोलिक चर्च को ईसाई-विरोधी, व्यभिचारी, राष्ट्र-विरोधी और राज्य-विरोधी लीडरशिप से आजाद करेंगे। इसके बाद संसद में विपक्ष के दो नेता, पूर्व रक्षा मंत्री सेयान ओहानयान और आर्ट्सविक मिनासयान की संसदीय छूट खत्म करने के लिए वोटिंग हुई। इसके बाद दोनों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई का रास्ता साफ हो गया। संसद के डिप्टी चेयरमेन रूबेन रूबिनयान ने तनाव बढ़ता देख संसद सत्र स्थगित कर दिया।
अजरबैजान से युद्ध में हार के बाद हालात खराब हुए आर्मेनिया को 2020 में अजरबैजान के खिलाफ नागोर्नो-कारबाख युद्ध में हार सामना करना पड़ा था, जिसके बाद से देश के राजनीति हालात अस्थिर बने हुए हैं। 2020 में अजरबैजान ने आर्मेनिया पर हमला कर दिया था। करीब छह हफ्ते चले युद्ध के बाद अजरबैजान की एकतरफा जीत हुई और उसने विवादित इलाके का बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया था। इस युद्ध में दोनों देशों के 6500 से ज्यादा लोग मारे गए थे। युद्ध विराम के लिए रूस को आगे आना पड़ा था। इस हार के बाद से प्रधानमंत्री निकोल पशिनियन और उनकी सिविल कॉन्ट्रैक्ट पार्टी पर विपक्ष का दबाव बढ़ता जा रहा है। विपक्षी दल, खास तौर पर ‘आर्मेनिया गठबंधन’, सरकार पर संविधान का दुरुपयोग करने और लोकतंत्र को कमजोर करने का आरोप लगा रहा है।
उस पर 1994 से आर्मेनिया के जातीय गुटों का कब्जा : नागोर्नो-कारबाख इलाका 20 साल से भी ज्यादा समय से आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच विवाद का कारण बना हुआ है। कोई भी देश इसे स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं देता। 1988 से दोनों यूरेशियन देश नागोर्नो-कारबाख इलाके पर कब्जा करना चाहते हैं। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय रूप से अजरबैजान का हिस्सा है, लेकिन उस पर 1994 से आर्मेनिया के जातीय गुटों का कब्जा है। यह दक्षिण कॉकेशस में ईरान, रूस और तुर्की की सीमा पर एक महत्वपूर्ण सामरिक (स्ट्रैटेजिक) इलाका है।