बिहार विधानसभा चुनाव में चाहे एनडीए हो या फिर महागठबंधन, हर किसी की कोशिश महिला मतदाताओं को अपनी तरफ साधने की है. महिला मतदाताओं की संख्या ही है, जिसे अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए राजनीतिक दल जी जान से लगे हुए हैं. यह भी कहा जा सकता है कि बिहार में महिला मतदाताओं का नया वोट बैंक आकार ले रहा है.
बिहार के राजनीतिक परिदृश्य को देखा जाए तो हाल फिलहाल के दिनों में सबसे बड़ा निर्णायक परिवर्तन महिला मतदाताओं का है. बिहार में आरक्षण पहले से ही वोट बैंक रहा है. राज्य सरकार के द्वारा जब जातीय सर्वे कराया गया तो यह बात भी सामने आई थी कि यह समीकरण भी एक वोट बैंक है.
वहीं, धार्मिक समीकरण भी वोट बैंक का आकार ले चुका है, लेकिन इन सब में सबसे अहम अगर कोई वोट बैंक है तो वह महिला वोट बैंक है. अगर यह कहा जाए कि बिहार में महिला वोट बैंक एक राजनीतिक चेतना है, जो बिहार जैसे राज्य में सत्ता की दिशा को तय कर रही है तो शायद गलत नहीं होगा.
बदल रहे हैं सियासी हालात
दरअसल बिहार में राजनीति का मुख्य केंद्र एक जातीय समीकरण रहा है. चाहे नरेंद्र मोदी फैक्टर हो या फिर कोई अन्य जातीय समीकरण. सबकी अपनी अहमियत रही है. हाल के दिनों तक राजनीतिक दल पुरुष मतदाताओं को केंद्र में रखकर अपनी रणनीति को बनाते थे. लेकिन जिस तरह से सियासी परिदृश्य में महिलाओं की इंट्री हुई है. इसने सारे समीकरणों को बदल करके रख दिया है. सभी राजनीतिक दल अब महिलाओं को अपनी प्राथमिकता दे रहे हैं. सभी राजनीतिक दलों की सोच यही है कि अगर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना है तो महिलाओं को साधना ही होगा.
आंकड़ें बता रहे हैं कहानी
- अगर मतदान के आंकड़ों पर यकीन किया जाए तो यह भी बहुत कुछ कहानी कह रहे हैं. 2024 में राज्य में प्रति हजार पुरुषों पर महिला मतदाताओं की संख्या 910 थी. जबकि 2025 में यह आंकड़ा बढ़ के 914 हो गया.
- पिछले 10 सालों के इतिहास को देखा जाए तो हर चुनाव में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं ने वोटिंग की है. 2015 से लेकर 2024 तक हर चुनाव में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों से ज्यादा रही.
- पिछले चार विधानसभा और लोकसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी ने सभी राजनीतिक दलों को चौंका दिया है.
- 2015 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों को देखा जाए तो उस समय 56.88% मतदान हुआ था. इसमें महिला मतदाताओं ने करीब 60.48% की भागीदारी की थी, जबकि पुरुषों की इस मतदान में भागीदारी 53.3% थी.
- इसी प्रकार 2020 के विधानसभा चुनाव में 57.027 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. जिसमें पुरुषों ने जहां 54.45 प्रतिशत मतदान किया था, वहीं महिलाओं की मतदान का प्रतिशत 56.6% था.
दो लोकसभा चुनाव के भी बदले आंकड़ें
केवल इतना ही नहीं पिछले दो लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को अगर देखा जाए तो इनमें भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 40 लोकसभा सीटों पर 57.33% मतदान हुआ था. जिन में महिला मतदाताओं ने 59.58% मतदान किया था. जबकि पुरुष मतदाताओं का मतदान का प्रतिशत केवल 54.9% रहा था.
सबने की साधने की कोशिश
पिछले कुछ दिनों में सीएम नीतीश कुमार ने बिहार की हर महिला वर्ग के लिए कुछ न कुछ घोषणा की थी. इनमें जीविका दीदी, आशा वर्कर से लेकर के आंगनबाड़ी महिलाएं तक शामिल थे. सीएम ने बिहार की महिला शिक्षिकाओं के भी कई मांगों को मान लिया था. बिहार में बडी संख्या में महिला शिक्षिका कार्यरत हैं.
अगर आंकड़ों पर यकीन करें तो बिहार में 2.99% कुर्मी महिला मतदाता हैं. वहीं 14.46 प्रतिशत यादव, 0.6% कायस्थ, 19.6 प्रतिशत शेड्यूल कास्ट, 17.8 प्रतिशत मुस्लिम, 3.7% ब्राह्मण, 3.4% राजपूत, 2.9% भूमिहार महिला मतदाता हैं.
इन मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए न केवल योजनाओं की शुरूआत की गयी थी, बल्कि एक के बाद एक कई तोहफे देकर के बाद सियासी धमाका भी किया था.
पक्ष हो या विपक्ष सबकी एक चाहत
महिला मतदाताओं की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने माई बहन योजना के बारे में घोषणा की थी. जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने भी इस पर अपने मुहर लगाया था. न केवल महागठबंधन बल्कि एनडीए के घटक दलों की तरफ से भी महिला मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए कई घोषणाएं की गई. सीएम नीतीश कुमार ने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो महिला मतदाताओं के अकाउंट में सीधे 10 हजार रुपए देने तक की पहल कर डाली.
अन्य राज्यों में भी महिला वोटर्स का चला जलवा
दरअसल बिहार ही नहीं बल्कि हाल के दिनों में देश के अन्य राज्यों में हुए चुनाव के और उसके परिणाम को देखा जाए तो महिला मतदाताओं ने एक निर्णायक भूमिका को अदा किया है. हाल में संपन्न हुए झारखंड विधानसभा चुनाव हो या फिर मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव. सत्ता के सिंहासन पर वहीं पहुंचा, जिसे महिलाओं ने चाहा. झारखंड में मैय्या सम्मान योजना के दम पर हेमंत सोरेन ने अपनी वापसी की, वहीं दूसरी तरफ से मध्य प्रदेश में लाडली लक्ष्मी योजना ने सत्ता में वापसी में बीजेपी के लिए राह आसान किया था.