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बहेरा सादात में हज़रत अली की शहादत पर उठा ताबूत

– अज़ादारों ने मनाया मौला अली की शहादत का शोक
– शिया व सुन्नी समुदाय के लोग हुए शामिल

प्रेमनगर, फतेहपुर। बहेरा सादात में रसूल अल्लाह के दामाद और चचा ज़ात भाई हज़रत अली की शहादत पर मजलिसें हुईं जिसमें प्रयागराज के मौलाना खादिम अब्बास और मौलाना सय्यद आबिद हुसैन मंझनपुर जिला कौशांबी ने खिताब किया। मजलिस को खिताब कर मौला अली की शहादत का ज़िक्र करते हुवे मौला अली की जीवनी पर प्रकाश डाला गया साथ ही बताया गया कि मौला अली उस बुलंद हस्ती का नाम है जिसकी सारी जिंदगी इबादत में गुज़री, ये वो मौला अली हैं जिनकी पैदाइश काबे के अंदर तेरह रजब तीस हिज़री को हुई और शहादत मस्जिदे कूफ़ा में इक्कीस रमज़ान चालीस हिज़री को हुई। ऐसा अली जिसकी चार साला हुकूमत में एक भी इंसान भूखा नहीं सोया और न ही इनकी हुकूमत में एक भी चोरी हुई। ये वो अली थे जो खुद भूखे रहकर दूसरों को खाना खिलाते थे। जिस अली ने शबे हिज़रत रसूल अल्लाह के बिस्तर पर लेट कर रसूल की जान बचाई उसी अली को उन ना समझ मुसलमानों ने उन्नीस रमज़ान को हालते नमाज़ में सजदे की हालत में जख्मी करवा दिया। उन्नीस रमज़ान को मस्जिदे कूफ़ा में इब्ने मुलजिम ने हज़रत अली के सर पे उस वक्त ज़हर से बुझी तलवार का वार किया जब अली सजदे में थे और इक्कीस रमज़ान को आपकी शहादत हुई थी। मौला अली की याद में बहेरा सादात में मस्जिद से ताबूत निकाला गया और मौला अली के चाहने वालों ने रसूल अल्लाह के चचा ज़ात भाई और दामाद को अपनी नम आंखों से पुरसा दिया। इस दौरान साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार शहंशाह आब्दी ने बताया कि ये कार्यक्रम बहेरा सादात गांव में सदियों से होता चल आ रहा है और इस कार्यक्रम में शिया-सुन्नी दोनों समुदाय के लोग शामिल होते हैं। आगे बताया कि प्रत्येक वर्ष 19 रमज़ान से लेकर 21 रमज़ान तक मौला अली की शहादत की शोक सभा आयोजित होती है। इस दौरान दर्जनों की तादाद में अज़ादार मौजूद रहे हैं।

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