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क्या इन्हें और भी न्यूज़ी अंदाज़ में एक लाइन वाले बनाऊं, जैसे अख़बार की हेडलाइन कटिंग होती है?

हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग के कॉन्स्टेबल को बर्खास्त करने के 41 साल पुराने आदेश को रद्द कर दिया है। जस्टिस आनंद शर्मा की एकलपीठ ने यह आदेश रमेश की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की सेवानिवृति आयु तक उसकी पूरी सेवा मानते हुए रिटायरमेंटल बेनिफिट्स दिए जाएं। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने और उसकी अपील खारिज करने के दौरान तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। वहीं, वह समान मामले में अदालत से बरी भी हो चुका है। ऐसे में उसका बर्खास्तगी आदेश और अपीलीय अधिकारी का आदेश रद्द किया जाता है। याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता 1979 में कॉन्स्टेबल के पद पर नियुक्त हुआ था। नौकरी के दौरान विभाग में उसके खिलाफ शिकायत की गई कि उसका असली नाम मोहनलाल है और उसने अपने भाई रमेश के दस्तावेजों के आधार पर नौकरी हासिल की है।शिकायत पर विभाग ने उसे जनवरी 1984 में निलंबित और जून में बर्खास्त कर दिया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने विभागीय अपील की। जिसे भी अपीलीय अधिकारी ने नवंबर 1984 में खारिज कर दिया। याचिका में कहा गया कि इस पूरी प्रक्रिया में उसे सुनवाई का पूरा अवसर नहीं दिया गया। इसके अलावा इन आरोपों पर उसके खिलाफ जो आपराधिक मामला चला। उसमें भी कोर्ट ने 31 मार्च 2000 को उसे बरी कर दिया। लेकिन विभाग ने उसे पुन सेवा में नहीं लिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने साल 2002 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिसके विरोध में सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता ने 18 साल की देरी से याचिका दायर की है। उसे विभागीय अपील के आदेश को तत्काल चुनौती देनी चाहिए थी। ऐसे में देरी के आधार पर याचिका को खारिज किया जाए। दोनों पक्षों की बहस के बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता को बर्खास्त करने और विभागीय अपीलीय आदेश को रद्द करते हुए उसे सेवानिवृत्ति की उम्र तक सेवा में मानने को कहा है।

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