दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएससी, आईआईटी दिल्ली एमएससी से करने के बाद आईआईटी कानपुर में केमिस्ट्री से पीएचडी में दाखिला। यूजीसी की 37 हजार रुपये महीने की फेलोशिप। इतना सबकुछ होने के बाद भी न जाने कौन सी मजबूरी के आगे मेधावी अंकित यादव ने घुटने टेक दिए। इस घटना के बाद से सभी स्तब्ध हैं। छह महीने पहले जुलाई-2024 में ही अंकित ने पीएचडी में दाखिला लिया था। वह प्रो. पारितोष सारथी सुब्रमण्यम के अंडर पीएचडी कर रहे थे। नोएडा के सेक्टर 71 निवासी अंकित शुरू से ही मेधावी रहे हैं।
डीन स्टूडेंट अफेयर प्रो. प्रतीक सेन ने बताया कि अंकित को यूजीसी की पांच साल की फेलोशिप मिली थी। शुरुआती दो साल के लिए 37 हजार रुपये मासिक और शेष तीन सालों के लिए 41 हजार रुपये मिलते हैं। प्रो. सेन ने कहा कि पीएचडी का जो भी तनाव होता है वह तीन साल के बाद शुरु होता है। शुरुआत में तो पीएचडी कोर्स वर्क किया जाता है, लेकिन नवंबर में कोर्स वर्क खत्म हो गया। फिर एक महीने करीब लैब में रिसर्च किया। जनवरी में पीएचडी का पहला सेमेस्टर शुरू हुआ था।
उन्होंने कहा कि अभी तो पढ़ाई शुरू नहीं हुई थी, तो पढ़ाई से तनाव का कोई सवाल ही नहीं। जानकारी के अनुसार अंकित को आखिरी बार रविवार रात करीब 10:30 बजे टहलते हुए देखा गया था। प्रो. प्रीतक ने कहा कि उसने न तो कभी कोई काउंसिलिंग सेशन में भाग लिया। न ही उसके डिप्रेशन में होने की बात सामने आई। छात्रों को डबल रूम देने पर मंथन किया गया, ताकि छात्र अकेलापन न महसूस करें। लेकिन हर बार छात्र ही डबल रूम के लिए मना कर देते हैं। निजता की बात कहकर इसे सिंगल ही रखा गया है।