उत्तर भारत में नवजात में जन्मजात हृदय रोग का खतरा सबसे ज्यादा है। चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में प्रति एक लाख बच्चों में से 20 इसकी चपेट में आ रहे हैं। यह आंकड़ा देश के अन्य प्रदेशों से कहीं ज्यादा है। चिंता की बात यह है कि लोग बच्चों में होने वाली अन्य बीमारियों के प्रति तो सचेत हो रहे हैं, लेकिन इस गंभीर मर्ज की अनदेखी की जा रही है। बच्चों को इलाज देरी से मिल रहा है जिससे स्थिति गंभीर हो रही है।
इसका खुलासा पीजीआई के एडवांस पीडियाट्रिक सेंटर के प्रो. अरुण कुमार बरनवाल ने अपने अध्ययन में किया है। उन्होंने देश के अलग-अलग प्रदेशों में जन्मजात हृदय रोग की स्थिति को दर्शाते हुए बचाव के उपाय भी बताए हैं। प्रो. अरुण बरनवाल के इस अध्ययन को इंडियन पीडियाट्रिक जरनल में 15 फरवरी 2023 को प्रकाशित किया गया है।
देश को जोन में बांट कर करना होगा काम
प्रो. अरुण कुमार बरनवाल ने बताया कि बचाव के लिए पीजीआई समेत अन्य उच्च चिकित्सा संस्थानों को पूरी तरह तैयार करना होगा। वहीं देश को पांच जोन में बांटकर हर जोन में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करना होगा।
इसके साथ ही इंस्टीट्यूट ऑफ नेशनल इम्पॉरटेंट के रूप में माने जाने वाले दिल्ली एम्स, पीजीआई चंडीगढ़ में विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने होंगे। इसमें पीडियाट्रिक कॉर्डियोलॉजी, पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर, पीडियाट्रिक कॉर्डियक सर्जरी, पीडियाट्रिक कॉर्डियक एनेस्थीसिया, पीडियाट्रिक कॉर्डियक रेडियो-इमेजिंग, पीडियाट्रिक परफ्यूजन टेक्नोलॉजी, पीडियाट्रिक कॉर्डियक नर्सिंग, पीडियाट्रिक कॉर्डियक क्रिटिकल केयर नर्सिंग जैसे विषयों पर फोकस करना होगा।
ऐसा कर ही जन्मजात हृदय रोग से ग्रस्त बच्चों को समय रहते बेहतर इलाज उपलब्ध कराया जा सकेगा। इसके साथ ही आयुष्मान भारत योजना, जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम और राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत इस बीमारी के इलाज का प्रावधान करना होगा।
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