4 हजार का डॉग, बेचने पर फाइन 10 रुपए; बैन के बाद भी बिक रहा मांस

 

नगालैंड में लोग डॉग, सांप या चूहे का मांस खाते हैं या यूं ही उनके बारे में ऐसी बातें कही जाती हैं। इसका जवाब तलाशने मैं सूरजकुंड से 2200 किमी दूर दीमापुर के ट्राइब मार्केट में पहुंचा। इसे शहर का सुपर मार्केट भी कहते हैं। रविवार को छोड़कर यहां हफ्ते के 6 दिन चहल-पहल रहती है, लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ बुधवार को होती है। इस दिन पूरे राज्य से लोग यहां सामान बेचने आते हैं।

मैंने बाजार घूमना शुरू किया। बाहरी हिस्से में किराने के सामान की दुकानें हैं। अंदर जाने पर ट्राइबल ड्रेस और ग्रॉसरी शॉप हैं। इसके ठीक सामने सीमेंट के लंबे-लंबे प्लेटफॉर्म बने हुए थे और उन पर सब्जियां, फ्रूट, अनाज, दाल, मसाले और अचार बिक रहे थे।

हम थोड़ा आगे बढ़े और उस लेन में पहुंचे, जहां मीट बिकता है। यहीं हमें उस सवाल का जवाब मिल गया, जो हम सूरजकुंड से लेकर चले थे। आगे रास्ते पर 25-30 जिंदा कुत्ते बोरियों में बांधकर रखे गए थे। टोकरियों में रखकर इनका मांस बिक रहा था।

मार्केट में मेंढक, ईल, पक्षी, चूहे, सब मिलते हैं
मार्केट में घुसते ही ये किसी नॉर्मल सब्जी मंडी की तरह लगता है। पर इसकी पहचान अंदर बने मीट मार्केट की वजह से है। यहां जगह-जगह जिंदा ईल से भरे कंटेनर रखे हैं। प्लास्टिक की थैलियों में मेंढक रखे हैं। पिंजरों में चूहे कैद हैं और प्याज के ढेर की तरह जिंदा कीड़े बिक रहे हैं।

हमारी नजर बोरियों में बंधे कुत्तों पर गई। ये शोर न करें, इसलिए इनके मुंह पतली रस्सी से बंधे हैं। अब हमें ऐसे शख्स की तलाश थी, जो हमें मार्केट के बारे में बता सके। यहां हमें बिंडाग ला मिल गईं, जो दीमापुर मार्केट एसोसिएशन से जुड़ी हैं। बिंडाग ला बताती हैं कि मार्केट में दुकान लगाने के लिए दिन के 50 रुपए देने पड़ते हैं। इसमें 40 रुपए अथॉरिटी ऑफिस और 10 रुपए नगर निगम को जाते हैं। ये पैसे देकर कोई भी दुकान लगा सकता है, भले डॉग मीट बेचे या सब्जी। बिंडाग ला के मुताबिक, डॉग मीट पर एक बार बैन लग चुका है। इससे बहुत दिक्कत हो गई थी। बैन के बाद हमने कुछ दिन इसे बेचना बंद कर दिया था। फिर हमारी बात शुरू हुई और अब दोबारा बिक्री शुरू हो गई है।

वे कहती हैं, ‘हमारे यहां सभी लोग डॉग मीट नहीं खाते। इसमें बहुत प्रोटीन होता है, इसलिए प्रेग्नेंट महिलाएं, कैंसर के मरीज, इलाज करवा रहे या ऑपरेशन करवा चुके लोग इसे खाते हैं। इसके सूप में बहुत ताकत होती है।’

क्या डॉग मीट की सप्लाई बाहर भी होती है? इसके जवाब में बिंडाग ला कहती हैं कि ‘यहां से मीट सप्लाई नहीं होता। हां, यहां बने सामान, ब्लैक चावल, बीन्स और यहां उगने वाले दुर्लभ पत्तों को बाहर भेजा जाता है।’

आखिर में बिंडाग ला फिर दोहराती हैं, ‘सभी लोग इस मीट को नहीं खाते, इसलिए दीमापुर के किसी भी होटल में यहां से डॉग मीट की सप्लाई नहीं होती।’ इस बाजार में डॉग के अलावा मेंढक, भैंस और हिरण का मीट भी बिकता है। हिरण के शिकार पर भी बैन है। हमें यहां भैंस का चमड़ा भी बिकता दिखा। भारत में फूड सिक्योरिटी एंड स्टैंडर्ड एक्ट 2006 के तहत मांस के लिए कुत्तों को मारने की इजाजत नहीं है। इसके बावजूद यहां डॉग मीट बिक रहा है।

2016 में डॉग मीट बैन करने की मांग शुरू हुई:
नगालैंड में डॉग मीट खाने की पुरानी परंपरा रही है, लेकिन यह सबसे ज्यादा सुर्खियों में साल 2016 में आया। तब डॉग मीट की बिक्री पर बैन लगाने के लिए राज्य सरकार को कानूनी नोटिस भेजा गया था।

इसके बाद दीमापुर सुपर मार्केट में जानवरों के साथ होने वाली क्रूरता दिखाने के लिए टूरिस्ट, जर्नलिस्ट और सोशल एक्टिविस्ट आने लगे। नगालैंड में डॉग मीट बेचने के खिलाफ कई एनिमल वेलफेयर एक्टिविस्ट खड़े हो गए और मामला हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

सरकार के इस फैसले के खिलाफ जुलाई 2020 में दीमापुर के मांस बेचने वाले कारोबारी गुवाहाटी हाईकोर्ट की कोहिमा बेंच चले गए थे। अपनी याचिका में उन्होंने कहा था कि इस फैसले से उनका कारोबार प्रभावित हुआ है। याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एस. हुकातो स्वू ने अगली सुनवाई तक राज्य सरकार के बैन वाले फैसले पर स्टे लगा दिया था। 3 साल से ज्यादा होने के बावजूद अदालत में यह याचिका सुनवाई के लिए पेंडिंग है।

डॉग मीट खाने की पुरानी परंपरा
दीमापुर के रहने वाले सुरो सेमो बताते हैं कि हमारे 15 ट्राइब्स हैं और यहां डॉग मीट खाने की पुरानी परंपरा रही है। देश के दूसरे हिस्सों में जैसे लोग मटन और चिकन खाते है, उसी तरह हम डॉग मीट खाते हैं। 2020 से पहले हम हफ्ते में एक बार डॉग मीट खा लेते थे, अब ऐसा नहीं कर पाते। बैन की वजह से यह काफी महंगा बिक रहा है। सुरो सेमो के मुताबिक, दीमापुर के मार्केट में ज्यादातर कुत्ते असम से लाए जाते हैं।

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