हनुमान जयंती पर जवारा मेले का भव्य आयोजन

देवमई, फतेहपुर। शनिवार को हनुमान जयंती के पावन अवसर पर देवमई ब्लॉक के मुसाफा गांव में पारंपरिक जवारा मेले का रंगारंग और भव्य आयोजन हुआ। पूरे गांव में दिनभर श्रद्धा और उत्सव का वातावरण बना रहा। ग्रामीणों ने देवी के प्रति आस्था प्रकट करते हुए परंपरागत रीतियों का पालन किया और पूरे उत्साह से आयोजन को सफल बनाया। गांव के काली माता मंदिर में पूजा-अर्चना का सिलसिला शुरू हो गया। महिलाओं ने पारंपरिक विधि से जवारा कलश रखे और सिर पर धारण कर गांव की परिक्रमा के लिए तैयार हुईं। दोपहर बाद डीजे की भक्ति धुनों के बीच सैकड़ों महिलाओं और युवतियों ने जवारा लेकर पूरे गांव में भ्रमण किया, जिसमें ग्रामीणों की भारी भागीदारी रही। युवाओं और बच्चों ने सांस्कृतिक ष्साँगष् प्रस्तुत किए, जिनमें धार्मिक पात्रों के स्वरूप आकर्षण का केंद्र रहे। बच्चों और किशोरों ने तरह-तरह की पोशाकें पहनकर आयोजन में जान डाल दी। मेले की एक विशेष झलक सींग लगवाए युवाओं की टोली रही। ये युवक सिर पर सींग, शरीर पर सिंदूर, भभूत और रक्षासूत्र बांधे हुए थे। उनके चेहरे पर गंभीरता और भक्ति का भाव था। लोक परंपरा के अनुसार, सींग लगाना शक्ति स्वरूप देवी या उनके गणों का प्रतीक होता है। ऐसा रूप धारण कर भक्त देवी की सेवा और रक्षा का संकल्प लेते हैं। इन युवकों ने दण्डवत परिक्रमा कर अपनी आस्था प्रकट की। यह दृश्य श्रद्धालुओं के लिए भावविभोर कर देने वाला रहा। जवारा यात्रा गांव के प्रसिद्ध काली माता मंदिर से प्रारंभ होकर चौराहे पर स्थित श्री बूढ़ेनाथ स्वामी मंदिर तक निकाली गई। यात्रा मार्ग में ग्रामीणों ने जगह-जगह जलपान, प्रसाद और शरबत वितरण की व्यवस्था की, जिससे श्रद्धालुओं को कोई असुविधा न हो। इस शुभ अवसर पर गांव की गलियों को झंडियों, रंग-बिरंगी लाइटों, फूलों और तोरण द्वारों से सजाया गया। मंदिरों में विशेष सजावट की गई और भजन-कीर्तन भी हुए। मेले को देखते हुए गांव में कई स्थानों पर अस्थाई दुकानें लगाई गई थीं। मिठाई, खिलौने, पूजा सामग्री, गुब्बारे और बच्चों की पसंदीदा चीजों की खरीददारी करने के लिए ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी। दुकानदारों के चेहरों पर संतोष और ग्राहकों के चेहरों पर प्रसन्नता देखने लायक थी। इस आयोजन ने गांव की सामूहिक एकता, सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक आस्था को एक मंच पर प्रस्तुत किया। हर वर्ग के लोगों ने अपनी भागीदारी निभाकर कार्यक्रम को सफल बनाया। बुजुर्गों ने इसे वर्षों पुरानी परंपरा का अमूल्य प्रतीक बताया।

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