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बुंदेलखंड अब बच्चों के खेलों, चित्रकला के बाद कविता,लेखनी से भी बोलेगा”

 

-कविता से पुल बनता है – पीढ़ियों के बीच
‘कविता कुछ कहती है – एक काव्य यात्रा’ : बाल रचनात्मकता और साहित्यिक उत्तराधिकार की पुनर्स्थापना

बांदा। भागवत प्रसाद मेमोरियल अकादमी जो उच्च स्तरीय शिक्षा के साथ- साथ चाहे वो बच्चों का शारीरिक विकास हो,बौद्धिक विकास,खेलों के प्रति प्रतिस्पर्धा हो, इसमें खो=खो, कबड्डी, क्रिकेट, शतरंज,आदि खेल शामिल है चित्रकला हो के बाद अब बच्चों को लेखनी एवं कविता के माध्यम से आगे बढ़ने का कार्य कर रही है इसी क्रम में महादेवी कुशवाहा फाउंडेशन फॉर आर्ट एंड कल्चर एवं केदार स्मृति न्यास के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित “कविता कुछ कहती है – एक काव्य यात्रा” केवल एक कविता कार्यशाला नहीं थी – यह साहित्य और संवेदना का एक ऐसा संगम था, जिसने बुंदेलखंड की सांस्कृतिक चेतना को एक नई दिशा देने का संकल्प लिया।
यह आयोजन उस रिक्तता को भरने का प्रयास था, जो बाबू केदारनाथ अग्रवाल जैसी विराट प्रतिभा के अवसान के बाद बुंदेलखंड की रचनात्मक चेतना में बन गई थी। लेकिन इस पुनर्संरचना की जड़ें केवल केदार जी की कविता में नहीं, बल्कि महादेवी कुशवाहा जी की दृष्टि, करुणा और संस्कृति-बोध में भी थीं।

महादेवी कुशवाहा जी: संवेदना का जीवंत रूप
महादेवी कुशवाहा जी का जीवन एक स्त्री-सशक्तिकरण, सेवा और सृजनशीलता का प्रतिमान रहा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि से उठकर उन्होंने यह साबित किया कि शिक्षा और संस्कृति का दीपक घर के आँगन से ही जलाया जा सकता है।
उनका मानना था:
> “बच्चों को केवल अक्षर नहीं, संवेदना भी सिखाई जानी चाहिए।
क्योंकि वही संवेदना एक दिन कविता बनती है,
और कविता समाज को बदलती है।”
उनके इन्हीं विचारों को साकार करने के लिए इस फाउंडेशन की स्थापना की गई, जो आज की पीढ़ी को संवेदनशील और सृजनशील नागरिक बनाने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
कविता: एक बीज, जो भविष्य की जड़ों में बसेगा
इस आयोजन में 12 से अधिक विद्यालयों से आए 100+ छात्र-छात्राओं ने कविता लेखन में भाग लेकर यह सिद्ध किया कि रचनात्मकता उम्र नहीं, दृष्टि की बात है।
जब देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार – प्रिया वर्मा, दीपक जायसवाल, और अल्पना वर्मा — बच्चों को यह सिखा रहे थे कि कैसे शब्दों में बिंब रचते हैं और कैसे कविता आत्मा से फूटती है, तब वास्तव में एक नई साहित्यिक पीढ़ी के बीज बोए जा रहे थे।
यह केवल एक कार्यशाला नहीं – महादेवी जी की विरासत और केदार जी के काव्य दृष्टिकोण का पुनःसंगम था।
एक खोई हुई कड़ी का पुनराविष्कार
बाबू केदारनाथ अग्रवाल ने कविता को खेतों, चिड़ियों और नदियों की आवाज़ बनाया था। आज जब उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धा निगम जी की शिष्याओं ने उन्हीं की कविता पर नृत्य प्रस्तुत किया, तो लगा जैसे कविता पुनः देह धारण कर रही हो।
केदार जी की कविताओं में प्रकृति, श्रम और प्रेम – सब एक साथ जीवित रहते हैं, और यह आयोजन एक श्रद्धांजलि थी उन मूल्यों को, जो अब विद्यार्थियों की लेखनी में उभरने लगे हैं।
एक साहित्यिक परंपरा की पुनःस्थापना
कार्यक्रम में मिथलेश शरण चौबे, विवेक चतुर्वेदी, प्रिया वर्मा, दीपक जायसवाल और अल्पना वर्मा जैसी विभूतियों की उपस्थिति केवल गौरव का विषय नहीं थी — वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरण की प्रक्रिया थी।
बच्चों ने सीखा कि कविता केवल शब्द नहीं, सोच और संवेदना का विस्तार है। उन्होंने देखा कि हर फूल की मुस्कान, हर बूँद की आवाज़, और हर नदी की कल-कल – कविता ही है।
एक शृंखला, जो साहित्य को शून्य से पुनः जोड़ती है
अंकित कुशवाहा जी, रामलखन कुशवाहा जी, संध्या कुशवाहा जी, डॉ0शबाना रफीक, और आयोजन समिति ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि विद्यालय, संस्थाएँ और संवेदनशील नेतृत्व साथ आएं, तो हम साहित्य और समाज के बीच की दूरी को पाट सकते हैं।
और सबसे महत्वपूर्ण – यह कार्यक्रम महादेवी कुशवाहा जी की स्मृति और दृष्टि को यथार्थ में बदलने की प्रक्रिया का हिस्सा था।
यह कविता की शक्ति है — वह शून्य में से भी संवाद रचती है।
और इस आयोजन ने एक बार फिर से कहा
“कविता कुछ कहती है…”
और इस बार उसने कहा:
“बुंदेलखंड अब बच्चों की लेखनी से बोलेगा।”

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