हरियाणा के यमुनानगर में सिविल सर्जन (CMO) डॉ. मंजीत सिंह को 3 मिनट 26 सेकेंड की कॉल रिकॉर्डिंग ने कानूनी शिकंजे में फंसा दिया है। यह मोबाइल कॉल CMO ने हेल्थ डिपार्टमेंट के तहत प्रोजेक्ट में लगी लेडी डॉक्टर को की थी। लेडी डॉक्टर की ओर से यह कॉल रिकॉर्डिंग पेनड्राइव में कोर्ट के समक्ष पेश की गई। जिसके आधार पर आरोपी सीएमओ की अग्रिम जमानत अर्जी खारिज हो गई। एडिशनल सेशन जज रंजना अग्रवाल की कोर्ट ने कहा-रिकॉर्डिंग सुनकर स्पष्ट हो रहा है कि आरोपी ने कार्यस्थल पर एक महिला कर्मचारी के प्रति यौन रूप से अश्लील शब्द कहे और यौन उत्पीड़न किया।
यह अत्यंत आपत्तिजनक और अश्लील भाषा है। पुलिस द्वारा इस ऑडियो कॉल रिकॉर्डिंग की फोरेंसिक जांच भी कराई जा सकती है। इन आरोपों पर पक्ष जानने के लिए सीएमओ डॉ. मंजीत सिंह से संपर्क का प्रयास किया, लेकिन उनका मोबाइल फोन लगातार स्विच ऑफ आ रहा है और वह ऑफिस में भी नहीं आए। बताया जा रहा है कि जो कॉल रिकॉर्डिंग कोर्ट में पेश की गई, वो 20 सितंबर की है। उस दिन सीएमओ ने लेडी डॉक्टर को वॉट्सऐप कॉल की। जिसमें कहा-
अभी नहीं तो कभी नहीं, 10 से 15 मिनट में तैयार हो जाओ। घबरा क्यों रही हो और मुझे नजरअंदाज क्यों कर रही हो। मैं तेरे साथ संबंध बनाना चाहता हूं। आगे से किसी काम के लिए मत आना। मुझे तुम्हारे साथ संबंध बनाना है। किसी से भी इस बारे में बात न करना।
लेडी डॉक्टर का कहना है कि इस मामले में फील्ड मैनेजर ने भी उनके ऊपर दबाव बनाया। उन्होंने कहा कि वह सीएमओ के निर्देश पर उसे लेने आ रहा है। लेडी डॉक्टर ने आरोप लगाया कि एक बार सीएमओ ने उनकी जाति को लेकर कहा कि तुम लोगों को नौकरी भी बड़ी आसानी से मिल जाती है, इसे बचा कर रखो। पीड़िता ने बताया कि एक दिन सीएमओ ने उसे कॉल कर अश्लील और यौन शोषण संबंधित टिप्पणियां की। यह सारी बात उसने अपनी मां को बताई। मां ने कॉल रिकॉर्ड करने को कहा।
20 सितंबर को दोपहर में उसके पास सीएमओ ने वॉट्सऐप पर कॉल की। कॉल पर सीएमओ ने उसके साथ बहुत ही ज्यादा अश्लील बातें कीं। जो उसने रिकॉर्ड कर लीं। अब यही कॉल रिकॉर्डिंग सीएमओ के लिए मुश्किल का कारण बन गई है। लेडी डॉक्टर ने यह कॉल रिकॉर्डिंग पुलिस के समक्ष पेश की, जिसके आधार पर सीएमओ के खिलाफ 22 सितंबर शाम को बीएनएस की धारा 75(2) यानी यौन उत्पीड़न, 78 स्टॉकिंग व एसएसी एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज हुआ। गिरफ्तारी से बचने के लिए सीएमओ ने कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका लगाई। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने और कॉल रिकॉर्डिंग सामने आने के बाद कोर्ट ने सीएमओ की याचिका खारिज कर दी।
लेडी डॉक्टर की शिकायत में ये प्रमुख बातें
- सिविल अस्पताल की महिला कंसल्टेंट डॉक्टर ने 22 सिंतबर को महिला पुलिस थाने में सीएमओ के खिलाफ शिकायत दी।
- जिसमें उसने कहा- सीएमओ का व्यवहार बिल्कुल भी उचित नहीं है। सीएमओ बातचीत में ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं जो किसी महिला कर्मचारी के साथ करना अत्यंत आपत्तिजनक है।
- उनके कार्यालय में जाने से पूर्व भी डर और असहजता महसूस होती है।
- उनका ऐसा ही अभद्र व्यवहार अन्य महिला कर्मचारियों के साथ भी है, और वह अक्सर कार्यस्थल पर नशे की हालत मे रहते हैं।
- पीड़िता ने कहा कि सीएमओ अक्सर बिना कारण से उसे अपने कार्यालय में बुला लेते थे। उनकी बातों से बहुत असहजता महसूस होती थी। वह बड़े अधिकारी थे, इसीलिए कई बार चाह कर भी बोलना मुश्किल होता था।
अब जानिए कोर्ट में दोनों पक्षों की ओर से क्या दलीलें दी गईं….
सीएमओ के वकील ने गिनाए 2 तर्क- पद को लेकर राजनीति गिरफ्तारी से बचने के लिए सीएमओ डॉ. मंजीत ने कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका लगाई। जिस पर बुधवार को सुनवाई हुई। सीएमओ की पैरवी कर रहे वकील ने तर्क दिया- डॉ. मनजीत को इस मामले में झूठा फंसाया गया है। यह मामला अस्पताल में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के पद के लिए राजनीति के कारण दर्ज किया गया। इस संबंध में समाचार पत्रों में कई समाचार प्रकाशित हुए थे। इस राजनीति के कारण, पुलिस अनावश्यक रूप से आवेदक को परेशान कर रही थी।
दूसरी दलील में वकील ने कहा- डॉ. मनजीत ने शिकायतकर्ता को केवल आधिकारिक उद्देश्य से कॉल किया था, क्योंकि एक वीडियो कॉन्फ्रेंस चल रही थी। शिकायतकर्ता से कुछ भी बरामद नहीं करना। डॉ. मनजीत पर एससी/एसटी अधिनियम के तहत भी अपराध नहीं बनता, क्योंकि शिकायत में यह नहीं बताया गया कि शिकायतकर्ता की जाति का नाम लेकर अपमानजनक शब्द सार्वजनिक रूप से कहे गए थे। हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता नहीं थी। इसलिए, आवेदक अग्रिम जमानत का हकदार है।
मामले में पीड़िता लेडी डॉक्टर के एडवोकेट ने कोर्ट को तर्क दिया कि आरोपी ने कार्यस्थल पर महिला कर्मचारी को अश्लील शब्द कहे। पुलिस द्वारा उचित जांच के बाद केस दर्ज किया गया। मामले में बाकी की जांच अभी लंबित है और डाॅक्टर मनजीत प्रत्यक्ष रूप से केस में शामिल है। मामले की तह तक जाने के लिए आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ करना आवश्यक है, इसलिए वह अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि जांच अभी प्रारंभिक चरण में है। ऐसे में अगर आरोपी को अग्रिम जमानत मिल जाती है तो जांच अधिकारी के अनुसार इस बात की संभावना है कि वह मामले की जांच में बाधा डालेगा। इतना ही नहीं पीड़ित व अन्य महत्त्वपूर्ण गवाहों पर दबाव डालेगा और साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ करेगा। कोर्ट ने कहा कि मामला एसएसी-एसटी एक्ट से भी जुड़ा है तो इससे गंभीरता और बढ़ जाती है। ऐसे हालात में सीएमओ को अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती।
आगे क्या कर सकता है आरोपी सीएमओ…
1.पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में अपील दाखिल करना: सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ CrPC की धारा 439 के तहत हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की नई याचिका या अपील दाखिल कर सकता है। सूत्रों के अनुसार, डॉ. मंजीत पहले से ही वकीलों के माध्यम से हाईकोर्ट का रुख करने की तैयारी में हैं।
2. सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP): अगर हाईकोर्ट भी जमानत अस्वीकार कर दे, तो CrPC धारा 439 के तहत सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट हाल ही में (सितंबर 2025) अग्रिम जमानत के मामलों में हाईकोर्ट्स के फैसलों पर सख्ती बरत रहा है, लेकिन व्यक्तिगत परिस्थितियों पर विचार करता है।
3. स्वयं सरेंडर करना और रेगुलर बेल की मांग: पुलिस के सामने सरेंडर कर CrPC धारा 437/439 के तहत रेगुलर बेल (गिरफ्तारी के बाद) की याचिका दाखिल कर सकता है। इससे NBW (नॉन-बेलेबल वारंट) जारी होने का खतरा कम हो जाता है।
4. जांच में सहयोग और साक्ष्यों की चुनौती: पुलिस जांच में स्वेच्छा से बयान दर्ज करा सकता है, या कोर्ट के माध्यम से ऑडियो रिकॉर्डिंग की फोरेंसिक जांच की मांग कर सकता है। अगर साबित हो कि रिकॉर्डिंग फर्जी या एडिट की हुई है, तो केस कमजोर हो सकता है।
CMO पद को लेकर हुआ विवाद, बाद में महिला सीएमओ का ट्रांसफर: यमुनानगर में CMO पद पर पोस्टिंग को लेकर खूब विवाद चला है। डॉ. मंजीत सिंह और डॉ. पूनम चौधरी के बीच विवाद इस साल शुरू हुआ। जब 20 मार्च को स्वास्थ्य विभाग ने अंबाला से डॉ. चौधरी को यमुनानगर का सीएमओ लगाया। डॉ. मंजीत का करनाल बायो-लेबोरेट्री में ट्रांसफर किया। इस ट्रांसफर के करीब एक सप्ताह बाद ही डाॅ. चौधरी को करनाल ट्रांसफर कर डॉ. मनजीत को यमुनानगर सीएमओ का एडिशनल प्रभार सौंपा गया।
हाईकोर्ट तक पहुंचा मामला: इस ट्रांसफर को डॉ. पूनम चौधरी ने नियमों के खिलाफ बताते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट की ओर रुख किया। सिंगल बैंच ने ट्रांसफर के ऑर्डर पर स्टे कर दिया। लेकिन जब वह यमुनानगर सीएमओ का पदभार संभालने के लिए आईं तो डॉ. मनजीत ने उन्हें चार्ज नहीं सौंपा।
डीसी को करना पड़ा हस्तक्षेप: तब इस मामले में यमुनानगर डीसी पार्थ गुप्ता को हस्तक्षेप करना पड़ा। जिसके बाद डॉ. पूनम ने सीएमओ का पदभार संभाला। हालांकि कोर्ट की डबल बैंच ने ट्रांसफर से स्टे ऑर्डर खत्म कर दिया और डाॅ. पूनम पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। जिसके बाद डॉ. पूनम काे फिर से यमुनानगर सीएमओ की कुर्सी छोड़नी पड़ी और 30 मई को डॉ. मंजीत ने दोबारा यमुनानगर सीएमओ का पदभार संभाल लिया।