.दादुर करते हैं करतल ध्वनि, जब वर्षा ऋतु आती है

– शैलेन्द्र साहित्य सरोवर की 397 वीं साप्ताहिक रविवासरीय काव्य गोष्ठी आयोजित
– काव्य गोष्ठी में भाग लेते कवि एवं सात्यिकार।
फतेहपुर। शहर के मुराइन टोला स्थित हनुमान मंदिर में शैलेन्द्र साहित्य सरोवर के बैनर तले 397 वीं साप्ताहिक रविवासरीय सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन अनिल कुमार तिवारी निर्झर की अध्यक्षता एवं शैलेन्द्र कुमार द्विवेदी के संचालन में हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में मंदिर के पुजारी भार्गव महाराज उपस्थित रहे। काव्य गोष्ठी का शुभारंभ करते हुए अनिल कुमार तिवारी निर्झर ने वाणी वंदना मे अपने भाव प्रसून प्रस्तुत करते हुए कहा कि पहला प्रणाम माता ज्ञानदायिनी के नाम, दूसरा प्रणाम हिंद धाम के ही नाम है, तीसरा प्रणाम करूं देश प्रेमियों के नाम, चौथा शिवा-राणा-स्वाभिमान को प्रणाम है।। पुनः कार्यक्रम को गति देते हुए काव्य पाठ में कुछ इस प्रकार से अपने अंतर्भावों को प्रस्तुत किया सावन मनभावन हुआ, बरसे बदरा खूब। धान ठिठौली कर रहे, मुस्काई है दूब।। डा. सत्य नारायण मिश्र ने अपने भावों को एक छंद के माध्यम से कुछ इस प्रकार व्यक्त किया मैं अबला घर में पड़ी, तन दाझत दिन-रैन। बसि बिदेस निष्ठुर पिया, हरि लीन्हो मों चैन।। केपी सिंह कछवाह ने पढ़ा परहित से बढ़कर नहीं, कोई बड़ा है धर्म। यही वेद का सार है, यही सृष्टि का मर्म।। दिनेश कुमार श्रीवास्तव ने अपने भावों को मुक्तक में कुछ इस प्रकार पिरोया पुनीत गंगधार से पवित्र केश-जाल है। सुकंठ में पड़ी हुई भुजंग-तुंग-माल है। प्रदीप कुमार गौड़ ने अपने क्रम में काव्य पाठ में कुछ इस प्रकार भाव प्रस्तुत किये कोयल गायक, बादल वादक, बिजली नृत्य दिखाती है। दादुर करते हैं करतल ध्वनि, जब वर्षा ऋतु आती है।। रवींद्र तिवारी ने काव्य पाठ में अपने भावों को कुछ इस प्रकार शब्द दिए मन के भीतर बैठा रावण, सदा राम से लड़ता है। त्याग सत्य को भ्रम में झूमें, यह मानव की जड़ता है।। काव्य गोष्ठी के आयोजक एवं संचालक शैलेन्द्र कुमार द्विवेदी ने अपने भाव एक गीत के माध्यम से कुछ यों व्यक्त किये मरें स्वदेश के लिए, जिएं स्वदेश के लिए। कराल कालकूट भी पियें स्वदेश के लिए।। स्वमातृ भूमि से बड़ा न धर्म है, न कर्म है, जो हों अनेक घाव भी सियें स्वदेश के लिए।। कार्यक्रम के अंत में पुजारी ने सभी को आशीर्वाद प्रदान किया। आयोजक ने आभार व्यक्त किया।

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