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आदिवासी महिला से शादी की सजा! उपसरपंच पर 10 गांवों की पंचायत का तुगलकी कहर

 

मध्यप्रदेश के एक प्रेम विवाह ने उपसरपंच  को मुश्किलों में डाल दिया है। आदिवासी युवती से कोर्ट मैरिज करने पर 10 गांवों की पंचायत ने मिलकर ₹1.30 लाख का जुर्माना ठोंक दिया है। मामला सामने आते ही प्रशासन हरकत में आ गया और जांच के आदेश जारी किए गए हैं। छिंदवाड़ा जिले के हर्रई ब्लॉक के सालढाना गांव के उपसरपंच उरदलाल यादव ने एक आदिवासी युवती पंचवती उईके से कोर्ट मैरिज की थी। लेकिन यह विवाह इलाके के कुछ परंपरावादी लोगों को नागवार गुजरा।

इसके बाद सालढाना समेत आसपास के 10 गांवों के सरपंचों ने एक संयुक्त पंचायत बुलाई और उरदलाल पर समाज की परंपराओं के खिलाफ जाने का आरोप लगाते हुए ₹1.30 लाख का जुर्माना लगा दिया।  शादी सितंबर 2023 में हुई थी, लेकिन उपसरपंच ने अब तक पंचायत द्वारा तय की गई जुर्माना राशि नहीं चुकाई है। नाराज पंचायत सदस्य बिरजू पिता जहरलाल ने इस मामले को लेकर हाल ही में जनसुनवाई में शिकायत दर्ज कराई। पंचायत ने प्रशासन से मांग की है कि उपसरपंच से यह रकम वसूल की जाए। जनसुनवाई के दौरान अधिकारियों ने मामले को गंभीरता से लिया है।

प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, पंचायत द्वारा लगाया गया यह जुर्माना संवैधानिक और कानूनी अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।  अधिकारियों ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है और जरूरत पड़ने पर संबंधित पंचायतों पर कार्रवाई के संकेत दिए हैं। सरपंच पति सुरेंद्र यादव ने मीडिया को बताया कि “10 गांव की पंचायत ने यह फैसला सर्वसम्मति से लिया था। अब तक जुर्माना नहीं चुकाया गया है।” उपसरपंच उरदलाल यादव का कहना है, “मैंने बालिग आदिवासी महिला से उसकी सहमति से कोर्ट मैरिज की है।

यह कानूनी विवाह है। मैं किसी सामाजिक दबाव में नहीं आऊंगा और जुर्माना देने की स्थिति में भी नहीं हूं।” कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी पंचायत या सामाजिक समूह किसी व्यक्ति पर इस तरह का आर्थिक दंड नहीं लगा सकता, खासकर जब विवाह पूरी तरह से कानूनी और सहमति से किया गया हो। ऐसे मामलों में सामाजिक बहिष्कार, जुर्माना या दबाव डालना भारतीय संविधान और मानवाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है। यह मामला न केवल एक प्रेम विवाह से जुड़ा है, बल्कि यह दर्शाता है कि किस तरह आज भी कुछ क्षेत्रों में पंचायतें अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर निजी मामलों में हस्तक्षेप करती हैं। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस सामाजिक अन्याय के खिलाफ क्या कदम उठाता है और क्या वाकई संविधान के अनुसार न्याय होता है।

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