अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनका प्रशासन मनमाने फैसले के लिए जाने जाते हैं. लेकिन, वह भूल जाते हैं कि अमेरिका की लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं काफी मजबूत हैं. वे किसी भी व्यक्ति को मनमाने फैसले लेने की छूट नहीं दे सकती. कुछ ऐसा ही हुआ है एक भारतीय रिसर्चर के मामले में. दरअलस, भारतीय रिसर्चर बदर खान सूरी के निष्कासन (देश से निकाले जाने) पर अमेरिकी अदालत ने रोक लगा दी है. सूरी एक पोस्टडॉक्टरल फेलो हैं और अमेरिका में छात्र वीजा पर पढ़ाई और अध्यापन का काम कर रहे हैं. अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) ने उन पर हमास का प्रचार करने और यहूदी विरोधी बातें फैलाने का आरोप लगाया था.
इसके बाद डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने उन्हें देश से निकालने की कोशिश की, लेकिन अब अदालत ने इस कार्रवाई पर रोक लगी दी है. बदर खान सूरी जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में शोधकर्ता हैं. उन्हें हाल ही में अमेरिकी आव्रजन अधिकारियों ने हिरासत में लिया था. डीएचएस ने दावा किया कि सूरी सोशल मीडिया पर हमास का प्रचार कर रहे थे और उनकी एक संदिग्ध आतंकवादी से करीबी दोस्ती है, जो हमास का वरिष्ठ सलाहकार है. डीएचएस की सहायक सचिव ट्रिशिया मैकलॉघलिन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, “बदर खान सूरी सक्रिय रूप से हमास का प्रचार कर रहे हैं और यहूदी विरोधी बातें फैला रहे हैं. उनकी एक संदिग्ध आतंकवादी से नजदीकी है.
हालांकि, बदर खान सूरी के वकील ने इन आरोपों को खारिज कर दिया. वकील ने अदालत में दायर एक याचिका में कहा कि सूरी को निशाना इसलिए बनाया जा रहा है क्योंकि उनकी पत्नी एक फिलिस्तीनी हैं और उन्होंने अपने विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त किए, जो अमेरिकी संविधान में संरक्षित हैं. सूरी की पत्नी का नाम मफेज़े सालेह है. उन्होंने कहा, “मेरे पति की हिरासत ने हमारी जिंदगी को पूरी तरह से उलट-पुलट दिया है. हमारे तीन बच्चों को अपने पिता की बहुत जरूरत है. वे उन्हें बहुत याद करते हैं. एक मां के तौर पर मुझे अपने बच्चों और खुद की देखभाल के लिए उनके सहारे की सख्त जरूरत है.
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि जब तक कोई नया फैसला नहीं आता, बदर खान सूरी को अमेरिका से नहीं निकाला जा सकता. जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि सूरी को अमेरिका में शोध के लिए वीजा दिया गया था. वे इराक और अफगानिस्तान में शांति स्थापना पर अपना डॉक्टरेट शोध कर रहे हैं. यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब हाल के हफ्तों में अमेरिकी आव्रजन अधिकारियों ने कई छात्रों और शोधकर्ताओं की जांच शुरू की है. उदाहरण के लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय के स्नातक छात्र महमूद खलील, जो एक प्रमुख फिलिस्तीनी कार्यकर्ता हैं, को 8 मार्च को गिरफ्तार किया गया.
उनकी गिरफ्तारी कैंपस में फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनों में हिस्सा लेने के बाद हुई. इसी तरह कोलंबिया की एक अन्य छात्रा लका कोर्डिया, जो वेस्ट बैंक की फिलिस्तीनी हैं, को “छात्र वीजा की अवधि से अधिक समय तक रुकने” के आरोप में हिरासत में लिया गया. वहीं, कोलंबिया की एक और छात्रा रंजनी श्रीनिवासन ने खुद को देश से निकालने का फैसला किया, जिसे “सेल्फ-डिपोर्टेशन” कहा जाता है. बदर खान सूरी का मामला अमेरिका में छात्रों और शोधकर्ताओं के खिलाफ बढ़ती कार्रवाइयों का हिस्सा माना जा रहा है.
उनके समर्थकों का कहना है कि यह उनकी पत्नी की पहचान और उनके विचारों के कारण हो रहा है. दूसरी ओर, डीएचएस का दावा है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है. फिलहाल, अदालत के इस फैसले से सूरी को राहत मिली है और वे अमेरिका में रहकर अपना शोध जारी रख सकते हैं, जब तक कि कोई नया आदेश नहीं आता. यह मामला अमेरिका में आव्रजन नीतियों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस को और तेज कर सकता है.