मकराना विधायक जाकिर हुसैन गैसावत ने सीवर के पानी में बैठकर नारे लगाए। फिर SDM को धक्का मार दिया। सोशल मीडिया पर लिखा-शांति के रास्ते का आखिरी दरवाजा युद्ध है। इधर तेवर तो भरतपुर सांसद संजना जाटव जी के भी तीखे रहे। CMHO को मीटिंग में जमकर झाड़ पिलाई। साथ ही, BJP से निकाले गए नेताजी ने भी माहौल बनाने की कोशिश की। रंग जम नहीं पाया। राजस्थान की राजनीति और ब्यूरोक्रेसी की ऐसी ही खरी-खरी पढ़िए… मकराना में नगर परिषद के सामने रोड पर सीवर का पानी भर गया। मुद्दा सियासी था। विधायकजी ने लपक लिया। पालथी मारकर उसी पानी में जमकर बैठ गए। चार समर्थक भी टिक गए। नारेबाजी शुरू। विधायकजी ने थप्पड़कांड का चैप्टर पढ़ा था। चमकने का बुनियादी नियम यह कि जनहित का मामला बताकर किसी अफसर को लपेट लो। सामने से SDM को आता देख विधायकजी की मनोकामना पूरी हुई। किसी ठेकेदार पर भड़कते हुए विधायक महोदय ने SDM को ही धक्का मार डाला। फिर नियम नंबर-2 का ऐलान किया-जहर खाकर मर जाऊंगा। नेताजी आए तो थे शहरी सेवा शिविर का निरीक्षण करने, लेकिन अपनी ही शक्ति का परीक्षण करने में जुट गए। माहौल बनाकर सोशल मीडिया पर गुजराती गीत के साथ पोस्ट डाली। लिखा- शांति के रास्ते का आखिरी दरवाजा युद्ध का होता है।0 लोगों ने यंग सांसद महोदया को खलिहान में बाजरा समेटते देखा। झोली फैलाकर वोट मांगते देखा। जीतने पर डांस करते देखा। इसका मतलब ये नहीं कि हल्के में लिया जाए। भरतपुर में दिशा की मीटिंग चल रही थी। अस्पताल का महत्वपूर्ण मुद्दा चल रहा था। CMHO साहब बेफिक्री से फोन चला रहे थे। बस, इतना देख महोदया ने रौद्र रूप धारण कर लिया। पहले तो अस्पताल के मुद्दों की बारिश कर दी। ले तीर- बच्ची को ऑक्सीजन नहीं मिला। और ले- हॉस्पिटल में जगह-जगह गुटखा-तंबाकू के निशान हैं। ये भी ले- कोई फोन-मैसेज करे तो जवाब नहीं देते हो। CMHO साहब के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। मैडम को हो क्या गया? भैया नौरात्रे चल रहे हैं। संभल कर रहो। आरती उतार दी जाएगी। अफसर जी बगलें झांकने लगे। मैडम फिर दहाड़ीं-मीटिंग में नहीं बैठना तो जा सकते हो। वे भाजपा के प्रवक्ता थे। उन्हें बोलने के लिए रखा था। वे पार्टी के खिलाफ ही बोलने लगे। पार्टी ने 6 साल के लिए निकाल दिया। अब वे मुखर होकर बोलते हैं। उन्हें मंच की भी जरूरत नहीं। उनका नाम कृष्ण कुमार जानू है। झुंझुनूं में सुप्रीम कोर्ट के जज जिस रास्ते से निकलने वाले थे, उसे आमजन के लिए रोका गया। पूर्व प्रवक्ता महोदय ने खुद को आमजन महसूस करते ही कमजोर फील किया। फिर क्या था। बेरिकेडिंग से बाहर आ गए। सड़क को मंच बना लिया। न जाने किसे संबोधित कर बोलने लगे- आम आदमी कब तक लाइन में लगा रहेगा? वर्दी कब तक सरकारी पगार लेने वालों की खिदमत करेगी? कानून नौकरशाहों को समर्पित क्यों है? जनता कब जागेगी? जागी तो नेपाल जैसी क्रांति हो जाएगी। जब जानू महाशय को लगा कि उन्हें कोई सीरियसली नहीं ले रहा तो वहां से गुजरते राहगीर का हाथ पकड़ लिया। बोले-बताओ बाबा, क्या ये सही हो रहा है? बाबा हाथ छुड़ाकर आगे निकल गया। इससे पहले पूर्व प्रवक्ता महोदय इंसल्ट फील करते, उन्होंने पैंतरा बदला- देखो, यही मजबूरी है। आम आदमी व्यवस्था के खिलाफ बोलता ही नहीं। बिजली अफसरों की खैर नहीं। बाड़मेर में नई खेप तैयार हो गई है। हर टूटे खंभे की रिपोर्टिंग की जा रही है। कौआ मरने पर भी मौके से वॉक-थ्रू किए जा रहे हैं। सरकारी स्कूल के 12 साल के बच्चे ने माहौल बना दिया। दो खंभों पर रखे ट्रांसफॉर्मर का वीडियो बनाया। बच्चे ने रिपोर्टिंग की। लहजा इतना शानदार कि अच्छे-अच्छे रिपोर्टर कोचिंग ले लें। शर्ट पर माइक लगाकर नन्हा रिपोर्टर तैयार। जो खबर प्रस्तुत की वह इस प्रकार थी- नमस्कार साथियों, हमारी न्यूज में आपका स्वागत है। ये देखिये यहां पीएसस के साथ थुंबा (खंभा) जुड़ा है, जो टूट चुका है। डीपी (ट्रांसफॉर्मर) एक थुंबे पर खड़ी है। सरकार से निवेदन है कि इसे बनवा दे। ये देखिए। यहां कौआ मर गया है। थुंबा सही से लगाना चाहिए। बारिश में पशु इनके नीचे से निकलते हैं तो करंट लग सकता है। बच्चे की रिपोर्टिंग देख लगता है कि पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल है।
