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सोने का सिंहासन डोला: 12 साल की सबसे बड़ी गिरावट ने उड़ाए निवेशकों के होश!

सोना, जिसे हमेशा से ही सबसे सुरक्षित निवेश (Safe Haven) माना जाता रहा है, इस समय भारी उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहा है. रिकॉर्ड तोड़ ऊंचाइयों को छूने के बाद, सोने की कीमतों में पिछले 12 सालों की सबसे भीषण एक दिनी गिरावट दर्ज की गई है. यह तेज बिकवाली मंगलवार को शुरू हुई और बुधवार को भी जारी रही.बाज़ार में अचानक आई इस घबराहट का मुख्य कारण निवेशकों द्वारा की जा रही भारी मुनाफावसूली (Profit-Taking) है. इस साल सोने और चांदी की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई थी, जिससे यह चिंता बढ़ रही थी कि कहीं यह एक ‘बबल’ (बुलबुला) तो नहीं बनता जा रहा. अब वही निवेशक, जो ऊंचे दामों पर बैठे थे, अपना मुनाफा समेटने के लिए बाज़ार में टूट पड़े हैं, जिससे कीमतों का यह क्रैश देखने को मिला है.

बाज़ार विश्लेषकों का कहना है कि यह गिरावट मुख्य रूप से ‘प्रॉफिट-टेकिंग’ की एक लहर है, जो देखते ही देखते सुनामी में बदल गई. केसीएम ट्रेड के मुख्य बाज़ार विश्लेषक टिम वॉटरर के अनुसार, “मुनाफावसूली का सिलसिला एक ‘स्नोबॉल’ (बर्फ के गोले) की तरह बढ़ता गया.” उन्होंने कहा कि सोने की कीमतें उस स्तर पर पहुंच गई थीं जो बाज़ार में पहले कभी नहीं देखी गईं, ऐसे में व्यापारियों के लिए मुनाफा काटने का यह एक बड़ा प्रलोभन था.

आंकड़ों पर नज़र डालें तो, मंगलवार को सोने की कीमतों में 6.3% तक की भारी गिरावट आई थी, जो पिछले 12 साल में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है. यह सिलसिला थमा नहीं और बुधवार को सोना एक समय 2.9% और टूटकर $4,004.26 प्रति औंस पर आ गया. चांदी की हालत तो और भी खराब रही. पिछले सत्र में 7.1% लुढ़कने के बाद, चांदी बुधवार को 2% से ज़्यादा गिरकर $47.6 के आसपास पहुंच गई.

सोने-चांदी की इस भारी गिरावट का असर दुनिया भर के अन्य बाज़ारों पर भी देखने को मिल रहा है, हालांकि शेयर बाज़ारों में वैसी घबराहट नहीं है. एशियाई बाज़ारों में मिला-जुला रुख रहा. जहाँ ऑस्ट्रेलियाई और हांगकांग के शेयर सूचकांक वायदा बाज़ार में गिरे, वहीं जापानी बाज़ारों में स्थिरता दिखी.

इसके विपरीत, अमेरिकी शेयर बाज़ार (वॉल स्ट्रीट) इस उठापटक से ज़्यादातर अछूते रहे. मंगलवार को S&P 500 लगभग सपाट बंद हुआ. विश्लेषकों का कहना है कि शेयर बाज़ार के निवेशक फिलहाल अमेरिका में कंपनियों द्वारा पेश किए जा रहे मज़बूत तिमाही नतीजों पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए हैं.

इस पूरी उथल-पुथल के बीच एक बड़ा पेंच अमेरिकी सरकार का ‘शटडाउन’ है, जो रिकॉर्ड स्तर पर लंबा खिंचने की कगार पर है. इस शटडाउन के कारण एक आर्थिक ‘डेटा वैक्यूम’ यानी आंकड़ों का खालीपन पैदा हो गया है, जिसने कमोडिटी व्यापारियों को अंधेरे में रख दिया है.

दरअसल, शटडाउन की वजह से कमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन (CFTC) की साप्ताहिक रिपोर्ट जारी नहीं हो पा रही है. यह रिपोर्ट बाज़ार के लिए बेहद ज़रूरी होती है, क्योंकि यही बताती है कि हेज फंड और अन्य बड़े संस्थागत निवेशक अमेरिकी सोने और चांदी के वायदा बाज़ार में कितनी खरीदारी या बिकवाली कर रहे हैं (यानी उनकी ‘पोजीशन’ क्या है).

इस डेटा के अभाव में, विश्लेषकों को केवल अनुमान लगाना पड़ रहा है. एएनज़ेड ग्रुप होल्डिंग्स लिमिटेड के विश्लेषकों ब्रायन मार्टिन और डेनियल हाइन्स ने एक नोट में कहा, “हमारा अनुमान है कि बाज़ार में ऐसी (खरीदारी की) पोजीशन बहुत ज़्यादा बन गई थी और अंततः उसी के कारण यह बड़ी बिकवाली शुरू हुई.”

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सोने का सुनहरा दौर (बुल ट्रेंड) खत्म हो गया है? बाज़ार के ज़्यादातर विशेषज्ञ ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि कीमतों में आई यह गिरावट एक ‘करेक्शन’ (सुधार) है, जो इतने बड़े उछाल के बाद स्वाभाविक है.

सिटी इंडेक्स के फवाद रज़ाकज़ादा के अनुसार, सोने की हालिया रैली ‘असाधारण’ थी. इसे गिरती ब्याज दरों, दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा लगातार की जा रही खरीदारी और भविष्य में मौद्रिक नीति में और ढील दिए जाने की उम्मीदों से बल मिला था. उन्होंने कहा, “बाज़ार शायद ही कभी सीधी रेखा में चलते हैं. यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि व्यापक तेज़ी का रुख खत्म हो गया है.”

विश्लेषकों का मानना है कि सोने को समर्थन देने वाले दीर्घकालिक कारक (Long-term drivers) अभी भी मौजूद हैं. कई विश्लेषक यह भी मानते हैं कि बहुत से निवेशक जो पिछली बड़ी रैली में खरीदारी करने से चूक गए थे, वे इस गिरावट को ‘बाय द डिप’ यानी गिरावट में खरीदारी करने के एक मौके के तौर पर देख सकते हैं. यह नई खरीदारी बाज़ार को और ज़्यादा गिरने से रोक सकती है.

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