पाकिस्तान के सिंध प्रांत के घोटकी जिले में टिकटॉक क्रिएटर सुमीरा राजपूत की शनिवार को उनके घर में संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। जिस महिला की मुस्कान ने टिकटॉक पर लाखों दिल जीते, अब वो आवाज हमेशा के लिए खामोश हो गई. पाकिस्तान के सिंध प्रांत के घोटकी जिले में रहने वाली टिकटॉक क्रिएटर सुमीरा राजपूत की संदिग्ध हालात में मौत हो गई है. उनकी बेटी का कहना है कि सुमीरा पर कुछ लोग जबरन शादी का दबाव बना रहे थे और मना करने पर उन्हें जहर दे दिया गया. सुमीरा के टिकटॉक अकाउंट पर 58 हजार फॉलोअर्स और 10 लाख से ज्यादा लाइक्स थे. वह समाज में महिलाओं के आत्मविश्वास और स्वतंत्रता की मिसाल बन चुकी थीं. सुमीरा को वर्चुअल दुनिया ने पहचान दी. लेकिन असल जिंदगी में उनका अंत इतनी दर्दनाक और रहस्यमयी होगा किसी ने नहीं सोचा था.
बेटी बोली- मां को जहर दिया गया…
सुमीरा की 15 वर्षीय बेटी ने कैमरे के सामने कहा, “कुछ लोग हमारी मां से जबरन निकाह करना चाहते थे. जब उन्होंने मना किया, तो उन्होंने मां को जहर दे दिया. इस बयान के बाद पूरे पाकिस्तान में सनसनी फैल गई. पुलिस ने दो लोगों को हिरासत में लिया है लेकिन अभी तक कोई FIR दर्ज नहीं की गई है. घोटकी के जिला पुलिस अधिकारी अनवर शेख ने बेटी के बयान की पुष्टि की है, मगर मामले की जांच धीमी गति से चल रही है.
कैमरे के पीछे का दर्द
सुमीरा राजपूत सिर्फ एक सोशल मीडिया स्टार नहीं थीं बल्कि वे अपने संघर्षों की कहानी भी थीं. वीडियो में चाहे जितनी मुस्कान दिखती हो, असल जिंदगी में वे अकेलेपन और दबाव से जूझ रही थीं. उनकी बेटी भी टिकटॉक पर उतनी ही सक्रिय है और उसके भी 58 हजार फॉलोअर्स हैं. दोनों मां-बेटी मिलकर छोटे-छोटे वीडियो बनाती थीं, जिनमें हंसी थी, रिश्ते थे… और अब एक अधूरी कहानी रह गई है.
यह कोई पहली घटना नहीं है. पिछले महीने इस्लामाबाद में 17 साल की सना यूसुफ की उसके ही घर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हमलावर ने उसे कई बार शादी के लिए कहा था और मना करने पर गोलियां चला दी थीं. साल 2016 में कंदील बलोच, पाकिस्तान की पहली सोशल मीडिया सेलेब्रिटी को उनके ही भाई ने गला घोंटकर मार डाला था. वजह बताई गई “परिवार की इज्जत मिटा रही थी.”
सस्टेनेबल सोशल डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (SSDO) के मुताबिक, 2024 में पाकिस्तान में 547 ऑनर किलिंग के मामले दर्ज हुए. पाकिस्तान के प्रमुख मानवाधिकार संगठन HRCP के महासचिव हैरिस खालिक कहते हैं “कानून से ज्यादा कबीलाई सोच का बोलबाला है. तानाशाही सोच अब भी जिंदा है और महिलाएं उसकी सबसे बड़ी शिकार हैं.”
सुमीरा की मौत ने एक बार फिर सवाल खड़े किए हैं कि क्या एक महिला का ‘ना’ कहना पाकिस्तान में अब भी जानलेवा अपराध माना जाता है? क्या ऑनलाइन प्रसिद्धि और स्वतंत्र आवाज को पुरुषवादी सोच पचा नहीं पाती? और सबसे बड़ा सवाल- कब तक?