बांदा। मई दिवस के अवसर पर बांदा शहर में प्रतीक फाउंडेशन की ओर से महिला कवयित्री और लेखिकाओं ने एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में शिरकत की। कार्यक्रम की शुरुआत छात्राओं के समूह नृत्य से हुई ,जो बाबू केदारनाथ अग्रवाल की प्रसिद्ध कविता “बसंती हवा हूं…” पर आधारित था। बस्तर से आई प्रसिद्ध कवयित्री पूनम वासम ने अपनी कविताओं में महिला संघर्ष को उकेरा और आदिवासी जीवन में जल जंगल जमीन के लगाव को बहुत सहज रूप में प्रस्तुत किया। उनकी कविता ’धान रोपना एक कला है/ शहीद मंगली के लिए/ नमक हमेशा नमकीन नहीं होता /आमचो महाप्रभु मारलो ने खूब ध्यान आकर्षित किया। पुस्तक चर्चा में “वे गुनाहगार औरते[डॉ सबीहा रहमानी] और बंद दरवाजे और खिड़कियां [श्रद्धा निगम] पर डॉ उमा राग ने महत्वपूर्ण वक्तव्य देते हुए पितृसता के बिंदुओं को रेखांकित किया। कार्यक्रम में महिलाओं के जीवन को खरोचने वाली पितृसत्ता पर चर्चा बनी रही साथ ही महिलाओं के श्रम के मूल्य और सम्मान को मई दिवस के साथ रेखांकित किया। मयंक खरे ने “गमपुर के लोग” जैसी कविताओं के बहाने साहित्य में ताजगी लाने का जिक्र किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ सबीहा रहमानी ने किया व कार्यक्रम में श्रद्धा निगम, अंजू, अखिलेश श्रीवास्तव चमन, जवाहर लाल जलज, सुधीर सिंह, लायक सिंह, राजकीय महिला डिग्री कॉलेज की छात्राएं व शिक्षक और शहर के कई बुद्धजीवी नागरिक उपस्थित रहे।