‘उन्हें (पति शुभम) देखे 83 दिन हो गए। पता नहीं- कहां होंगे। अब तो ठंड भी पड़ने लगी है। कैसे भूल सकती हूं। उनकी लंबी उम्र के लिए अभी तो करवाचौथ व्रत किया है।’ कोमल की ये बातें शरीर में सिहरन पैदा कर देती हैं। वो 5 अगस्त को धराली में आई प्राकृतिक आपदा में पति को गंवा चुकी हैं। शुभम का वहां गेस्ट हाउस था। आपदा आई, तो शुभम मलबे के साथ बह गए थे। अभी तक उनका शव नहीं मिला। कोमल एक-डेढ़ महीने तो धराली रहीं, फिर परिवार के लोग उत्तरकाशी ले आए। धराली में पहाड़ से आए लाखों टन मलबे में 68 लोग लापता हैं। इनके जिंदा होने की उम्मीद में करीब 20 परिवार आज भी वहीं बैठे हैं। हालातों से टूट चुकी सरोजनी देवी ने कुछ दिन पहले ही भागीरथी नदी में कूदकर जान दे दी।
अब मलबा ही पहचान: भाई को ढूंढ़ने रोज आता हूं, मलबे को घंटों देखता हूं, फिर चला जाता हूं…32 साल के युवा सौरभ पंवार का बीते 83 दिन से एक ही रुटीन है। वो सुबह उठते हैं। आपदा के 30 फीट के मलबे के किनारे आकर ठहर जाते हैं। घंटों यहीं बैठते हैं, शाम होते ही घर लौट जाते हैं। सौरभ ने बताया कि छोटा भाई गौरव की याद भुला नहीं पा रहा हूं। इसलिए एंटी डिप्रेशन दवाएं ले रहा हूं।
धराली में तबाही के बाद की तस्वीरें…


धराली में नई ‘आपदा’: युवा एंटी डिप्रेशन की दवाएं ले रहे हैं। एसडीएम भटवाड़ी शालिनी नेगी ने बताया कि धराली में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कैंप कर रहे हैं। डॉक्टरों ने पीड़ितों की काउंसलिंग की है। जो आत्महत्या हुई है, उसकी जांच शुरू कर दी है।
मुआवजा बैंकों ने किस्त के नाम पर काट लिया: सरोजिनी के बेटे 35 साल के प्रदीप ने बताया कि आपदा में हमारा होटल, घर, बगीचा, इनोवा टैक्सी सब बह गए। प्रशासन ने 5 लाख रुपए मुआवजा दिया था, वो बैंक ने लोन की किस्त के नाम पर काट लिया। इसी से मां टूट गई थी। आपदा के बाद से वो कभी नहीं सोई। आखिर में उन्होंने जान दे दी। मैं भी डिप्रेशन से जूझ रहा हूं। काउंसलिंग करा रहा हूं।
टेंट में रह रहे परिवार बर्फबारी कैसे झेलेंगे
धराली की सूरतदेवी का घर भी आपदा में बह गया। सरकार ने उन्हें रहने के लिए टेंट दिए हैं। कड़ाके की सर्दी शुरू हो चुकी है। जल्द ही बर्फबारी भी होने वाली है। ऐसे में सरिता को चिंता सता रही है कि वे टेंट में कैसे रहेंगे।
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